IASbaba's Daily Current Affairs Analysis - हिन्दी
Archives
(PRELIMS MAINS Focus)
श्रेणी: अंतर्राष्ट्रीय
संदर्भ : ईरान की संसद अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के साथ सभी प्रकार के सहयोग को निलंबित करने के लिए कानून बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
संदर्भ का दृष्टिकोण:
प्रमुख बिंदु:
- इसमें निम्नलिखित को रोकने का प्रस्ताव है:
- आईएईए निगरानी कैमरों की स्थापना
- साइट पर निरीक्षण
- आईएईए को रिपोर्ट करना
- ये उपाय तब तक स्थगित रहेंगे जब तक ईरान को IAEA की तटस्थता और उसके परमाणु स्थलों के लिए सुरक्षा आश्वासन पर “वस्तुनिष्ठ गारंटी” नहीं मिल जाती।
ईरान का दृष्टिकोण:
- ईरानी नेताओं ने IAEA पर पक्षपातपूर्ण तथा राजनीतिक प्रभाव में कार्य करने का आरोप लगाया है।
- इस कदम को ईरान के परमाणु बुनियादी ढांचे और राष्ट्रीय संप्रभुता के लिए कथित खतरों की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
- आईएईए ने एक आपातकालीन बैठक बुलाई है तथा आगे और तनाव बढ़ने से रोकने के लिए नए सिरे से कूटनीति अपनाने का आग्रह किया है।
- पश्चिमी देशों ने चिंता व्यक्त करते हुए चेतावनी दी है कि निगरानी में कमी से परमाणु प्रसार का खतरा बढ़ सकता है।
आशय:
- यदि यह विधेयक पूर्ण संसद द्वारा पारित हो गया तो इससे ईरान के परमाणु कार्यक्रम में पारदर्शिता में भारी कमी आएगी।
- इससे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ सकती है तथा ईरान का अंतर्राष्ट्रीय अलगाव और गहरा सकता है।
Learning Corner:
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए)
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) 1957 में स्थापित संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है । इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में है।
उद्देश्य:
- परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना ।
- परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना (अप्रसार)।
- परमाणु सुरक्षा एवं संरक्षा सुनिश्चित करना ।
महत्वपूर्ण कार्य:
- सुरक्षा और सत्यापन:
- सदस्य देशों में परमाणु सुविधाओं का निरीक्षण करना ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि परमाणु सामग्री का उपयोग हथियार कार्यक्रमों में नहीं किया जा रहा है।
- तकनीकी सहायता:
- यह देशों को चिकित्सा, कृषि, ऊर्जा आदि में उपयोग के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी विकसित करने में सहायता करता है।
- मानक और सुरक्षा:
- परमाणु परिचालन और विकिरण सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानक निर्धारित करता है।
- संकट निगरानी:
- परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुपालन की निगरानी करता है।
संरचना:
- सामान्य सम्मेलन (General Conference): सभी सदस्य राष्ट्र प्रतिवर्ष मिलते हैं।
- गवर्नर्स बोर्ड: प्रमुख नीतिगत निर्णय लेता है।
- सचिवालय: महानिदेशक की अध्यक्षता में दैनिक कार्यों का निष्पादन करता है।
स्रोत: THE HINDU
श्रेणी: अंतर्राष्ट्रीय
संदर्भ: ईरानी संसद ने अपने परमाणु स्थलों पर हाल ही में अमेरिकी हवाई हमलों के जवाब में होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है
जलडमरूमध्य का सामरिक महत्व
- ईरान और ओमान के बीच स्थित, यह वैश्विक तेल शिपमेंट का 20-30% और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) निर्यात का एक बड़ा हिस्सा संभालता है।
- बंद होने से वैश्विक आपूर्ति को झटका लगेगा और तेल की कीमतें बढ़ जाएंगी।
भारत पर प्रभाव
- भारत आयात करता है:
- ~50% कच्चा तेल
- ~60% प्राकृतिक गैस जलडमरूमध्य से होकर गुजरती है।
- नाकाबंदी से निम्नलिखित हो सकता है:
- कीमत 110-130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचाई जाएगी ।
- घरेलू ईंधन मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलेगा, परिवहन और उत्पादन लागत में वृद्धि होगी, तथा सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को नुकसान पहुंचेगा।
Learning Corner:
होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz)
होर्मुज जलडमरूमध्य विश्व के सबसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री चोकपॉइंट्स में से एक है, जो ईरान और ओमान के बीच स्थित है, यह फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है ।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- चौड़ाई: सबसे संकीर्ण बिंदु लगभग 33 किमी (21 मील) चौड़ा है।
- शिपिंग लेन: प्रत्येक दिशा में केवल 3 किमी चौड़ी, 2 किमी का बफर जोन।
- तेल पारगमन:
- वैश्विक समुद्री तेल शिपमेंट का 20-30% वहन करता है ।
- प्रतिदिन लगभग 17-18 मिलियन बैरल तेल गुजरता है।
- प्राकृतिक गैस: तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) के लिए प्रमुख मार्ग, विशेष रूप से कतर से।
भू-राजनीतिक महत्व:
- इसकी सीमा उत्तर में ईरान और दक्षिण में संयुक्त अरब अमीरात और ओमान से लगती है।
- ईरान ने पहले भी पश्चिम के साथ तनाव के दौरान जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी थी।
- यहां कोई भी व्यवधान वैश्विक ऊर्जा संकट और तेल की कीमतों में उछाल का कारण बन सकता है ।
स्रोत: THE HINDU
श्रेणी: इतिहास
संदर्भ : ओकिनावा ने 23 जून 2025 को ओकिनावा की लड़ाई की समाप्ति की 80वीं वर्षगांठ मनाई
ऐतिहासिक संदर्भ:
- ओकिनावा की लड़ाई 1 अप्रैल 1945 को शुरू हुई और 22 जून 1945 को समाप्त हुई ।
- यह द्वितीय विश्व युद्ध की सबसे घातक लड़ाइयों में से एक थी, जिसमें लगभग 200,000 लोग मारे गये, जिनमें 188,000 से अधिक जापानी (जिनमें कई ओकिनावा के नागरिक थे) और 12,000 अमेरिकी शामिल थे ।
- लगभग 25% आबादी मार दी गयी थी।
- इस विनाश के कारण 27 वर्षों तक वहां अमेरिकी कब्ज़ा रहा और वहां अमेरिकी सैन्य उपस्थिति लंबे समय तक बनी रही।
परंपरा:
- यह युद्ध ओकिनावा की पहचान और जापान के शांतिवादी दृष्टिकोण का केन्द्र बना हुआ है।
- शांति की आधारशिला (Cornerstone of Peace) जैसे स्मारक मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं तथा युद्ध की वास्तविकताओं को साझा करने तथा शांति की वकालत करने के ओकिनावा के मिशन को रेखांकित करते हैं।
Learning Corner:
द्वितीय विश्व युद्ध की प्रमुख लड़ाइयाँ
स्टेलिनग्राद की लड़ाई/ Battle of Stalingrad (1942-1943)
- स्थान: सोवियत संघ
- लड़ाके: नाजी जर्मनी बनाम सोवियत संघ
- महत्व: पूर्वी मोर्चे पर निर्णायक मोड़; जर्मन वापसी की शुरुआत।
- परिणाम: निर्णायक सोवियत विजय; इतिहास की सबसे खूनी लड़ाइयों में से एक।
अल अलामीन की लड़ाई/ Battle of El Alamein (1942)
- स्थान: मिस्र (उत्तरी अफ्रीका)
- लड़ाके: ब्रिटिश नेतृत्व वाली मित्र सेना बनाम जर्मन-इतालवी धुरी सेना
- महत्व: स्वेज नहर पर धुरी राष्ट्रों का खतरा समाप्त; उत्तरी अफ्रीका में मित्र राष्ट्रों की प्रमुख विजय।
डी-डे / नॉरमैंडी की लड़ाई (D-Day / Battle of Normandy) (6 जून, 1944 – अगस्त 1944)
- स्थान: फ़्रांस
- लड़ाके: मित्र सेनाएँ (अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आदि) बनाम नाजी जर्मनी
- महत्व: इतिहास का सबसे बड़ा जलस्थलीय आक्रमण; यूरोप में पश्चिमी मोर्चे का उद्घाटन।
- परिणाम: पश्चिमी यूरोप की नाजी नियंत्रण से मुक्ति।
मिडवे की लड़ाई (Battle of Midway) (जून 1942)
- स्थान: प्रशांत महासागर
- लड़ाके: संयुक्त राज्य अमेरिका बनाम जापान
- महत्व: प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण मोड़; अमेरिकी नौसेना ने जापानी बेड़े को निर्णायक रूप से पराजित किया।
- परिणाम: जापान ने चार विमानवाहक पोत खो दिए; मित्र राष्ट्रों की ओर गति बढ़ गई।
ब्रिटेन की लड़ाई (Battle of Britain) (1940)
- स्थान: यूनाइटेड किंगडम
- लड़ाके: रॉयल एयर फोर्स (यूके) बनाम लूफ़्टवाफे (जर्मनी)
- महत्व: यह पहला प्रमुख सैन्य अभियान था जो पूरी तरह से वायु सेना द्वारा लड़ा गया।
- परिणाम: ब्रिटिश विजय; ब्रिटेन पर जर्मन आक्रमण को रोका गया।
बल्गे की लड़ाई (Battle of the Bulge) (दिसम्बर 1944 – जनवरी 1945)
- स्थान: बेल्जियम
- लड़ाके: नाजी जर्मनी बनाम मित्र सेना
- महत्व: पश्चिमी मोर्चे पर जर्मनी का अंतिम बड़ा आक्रमण।
- परिणाम: मित्र राष्ट्रों की जीत; जर्मन सेनाएं गंभीर रूप से कमजोर हो गईं।
स्रोत : THE HINDU
श्रेणी: पर्यावरण
प्रसंग : WMO की एशिया में जलवायु की स्थिति 2024 के अनुसार, महाद्वीप वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी गति से गर्म हो रहा है , और 2024 को एशिया में अब तक का सबसे गर्म या दूसरा सबसे गर्म वर्ष माना जा रहा है।
संदर्भ का दृष्टिकोण
मुख्य निष्कर्ष:
- तापमान वृद्धि:
2024 में एशिया का औसत तापमान 1991-2020 के औसत से 1.04°C अधिक था। - चरम मौसम:
गर्मी के कारण गर्म लहरें/ हीट वेव , बाढ़ , सूखा , अत्यधिक वर्षा और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में वृद्धि हुई है। - ग्लेशियर और महासागर:
- मध्य हिमालय और तियान शान में ग्लेशियर पिघलने की स्थिति और खराब हो गई है , जहां निगरानी किए गए 24 में से 23 ग्लेशियरों का द्रव्यमान कम हो गया है।
- समुद्र की सतह का तापमान रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया; समुद्री गर्म लहरें अब तक की सबसे खराब थीं ।
- मानवीय और आर्थिक प्रभाव:
हज़ारों लोगों की मृत्यु हुई, जिनमें से 159 भारत में हीटवेव के कारण हुई, और लगभग 48,000 हीटस्ट्रोक के मामले सामने आए।
संपूर्ण क्षेत्र को भारी आर्थिक क्षति और खाद्य असुरक्षा हुई। - समुद्र स्तर में वृद्धि:
एशिया के प्रशांत और हिंद महासागर के तटों पर समुद्र का स्तर वैश्विक औसत की तुलना में तेजी से बढ़ा, जिससे तटीय क्षेत्रों को खतरा पैदा हो गया।
क्षेत्रीय मुख्य विशेषताएं:
- पश्चिमी चीन , जापान , इंडोचीन , पश्चिम एशिया और साइबेरिया में उच्च विसंगतियाँ देखी गईं ।
- जापान ने अपना अब तक का सबसे गर्म वर्ष देखा , जो 2023 के उच्चतम तापमान को पार कर गया।
Learning Corner:
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization (WMO)
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो मौसम, जलवायु, जल विज्ञान और संबंधित पर्यावरण क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- स्थापना: 1950 (अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन, 1873 से उत्पन्न)
- मुख्यालय: जिनेवा, स्विटजरलैंड
- सदस्य: 193 सदस्य राज्य और क्षेत्र
- मूल संगठन: संयुक्त राष्ट्र (यूएन)
कार्य:
- मौसम और जलवायु निगरानी:
मौसम संबंधी और जल विज्ञान संबंधी आंकड़ों को वैश्विक स्तर पर एकत्रित, मानकीकृत और साझा करता है। - पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: देशों को
चक्रवात, बाढ़, सूखा और हीट वेव जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयारी करने हेतु प्रणालियाँ बनाने में सहायता करती है। - जलवायु परिवर्तन रिपोर्टिंग:
वैश्विक जलवायु की स्थिति और एशिया में जलवायु की स्थिति जैसी प्रमुख रिपोर्टें प्रकाशित करता है, जिसमें तापमान प्रवृत्तियों, समुद्र स्तर में वृद्धि और चरम मौसम पर प्रकाश डाला जाता है। - वैज्ञानिक सहयोग:
जलवायु विज्ञान, जल विज्ञान, समुद्री मौसम विज्ञान और वायुमंडलीय विज्ञान में वैश्विक अनुसंधान और क्षमता निर्माण का समर्थन करता है ।
स्रोत : THE INDIAN EXPRESS
श्रेणी: अर्थशास्त्र
संदर्भ: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) फरवरी 2026 में भारत का पहला व्यापक घरेलू आय सर्वेक्षण आयोजित करेगा, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय आय के आंकड़ों में महत्वपूर्ण अंतराल को समाप्त करना है।
प्रमुख विशेषताऐं:
- उद्देश्य:
घरेलू आय वितरण का आकलन करना , मजदूरी पर प्रौद्योगिकी के प्रभाव को समझना और सूचित आर्थिक योजना का समर्थन करना । - विशेषज्ञ पैनल:
डॉ. सुरजीत एस. भल्ला की अध्यक्षता में एक 8 सदस्यीय तकनीकी विशेषज्ञ समूह (टीईजी) अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप सर्वेक्षण डिजाइन, कार्यप्रणाली, नमूनाकरण और कार्यान्वयन का मार्गदर्शन करेगा । - ऐतिहासिक अंतराल:
यद्यपि भारत लंबे समय से राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) के माध्यम से उपभोग, रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा पर आंकड़े एकत्र करता रहा है , लेकिन अतीत की पद्धतिगत चुनौतियों के कारण कोई भी राष्ट्रव्यापी आय-विशिष्ट सर्वेक्षण कभी पूरा नहीं हुआ है ।
महत्व:
- इससे स्वतंत्रता के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में आय असमानता , आर्थिक गतिशीलता और संरचनात्मक बदलावों का सटीक विश्लेषण संभव हो सकेगा ।
- केन्द्र और राज्य दोनों स्तरों पर नीति निर्माण और संसाधन आवंटन में सहायक होंगे ।
Learning Corner:
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा जारी रिपोर्ट
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) भारत में नीति निर्माण और सामाजिक-आर्थिक नियोजन में सहायता के लिए सांख्यिकीय डेटा एकत्र करने, उसका विश्लेषण करने और उसे प्रकाशित करने के लिए जिम्मेदार है। यह दो मुख्य शाखाओं के माध्यम से कार्य करता है: जो केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) (अब राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, NSO में विलय कर दिया गया है) हैं।
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय /एनएसओ द्वारा जारी प्रमुख रिपोर्टें :
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की रिपोर्ट:
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS): यह सर्वेक्षण रोजगार-बेरोजगारी,
श्रम बल भागीदारी, तथा क्षेत्र एवं लिंग के आधार पर श्रमिक वितरण पर आंकड़े प्रदान करता है। - उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (Consumer Expenditure Survey (CES):
घरेलू व्यय पैटर्न, उपभोग प्रवृत्तियों पर नज़र रखता है, और गरीबी के स्तर का अनुमान लगाने में मदद करता है (अगला दौर 2011-12 के बाद से अपेक्षित है)। - घरेलू सामाजिक उपभोग सर्वेक्षण (Household Social Consumption Surveys): इसमें
स्वास्थ्य , शिक्षा और आवास जैसे विषय शामिल हैं , जो पहुंच, उपयोग और सामर्थ्य के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। - बहु-संकेतक सर्वेक्षण (Multiple Indicator Survey (MIS):
जीवन स्तर, बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच और जनसांख्यिकीय संकेतकों पर डेटा एकत्र करता है।
- केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (Central Statistics Office (CSO) की रिपोर्ट:
- सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product (GDP) अनुमान:
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय आय के लिए स्थिर और वर्तमान मूल्यों पर जीडीपी का त्रैमासिक और वार्षिक अनुमान। - औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production (IIP): यह सूचकांक
विनिर्माण, खनन और बिजली जैसे क्षेत्रों में औद्योगिक उत्पादन में अल्पकालिक परिवर्तनों को मापता है। - उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index (CPI):
ग्रामीण और शहरी उपभोक्ताओं के लिए खुदरा कीमतों के आधार पर मुद्रास्फीति दर की गणना करता है। - उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (Annual Survey of Industries (ASI):
पंजीकृत कारखानों में रोजगार, उत्पादन और निवेश सहित विस्तृत औद्योगिक आंकड़े प्रदान करता है।
- अन्य प्रमुख रिपोर्टें:
- आर्थिक जनगणना (Economic Census):
इसमें भारत की सभी उद्यमशील इकाइयों को शामिल किया गया है, चाहे वे कृषि क्षेत्र की हों या गैर-कृषि क्षेत्र की (फसल उत्पादन को छोड़कर)। - नागरिक पंजीकरण प्रणाली (Civil Registration System (CRS) पर आधारित भारत के महत्वपूर्ण आंकड़े:
राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में पंजीकृत जन्म और मृत्यु पर रिपोर्ट। - घरेलू आय सर्वेक्षण/ Household Income Survey (2026 में आगामी):
यह प्रत्यक्ष घरेलू आय डेटा एकत्र करने वाला पहला पूर्ण स्तर /पैमाने का राष्ट्रीय सर्वेक्षण होगा।
स्रोत: THE INDIAN EXPRESS
(MAINS Focus)
परिचय (संदर्भ)
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के माध्यम से ग्रामीण भारत में एक मौन परिवर्तन सामने आ रहा है। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र न केवल विकास इंजन के रूप में उभर रहा है, बल्कि ग्रामीण सशक्तिकरण, किसानों की आय में वृद्धि और कृषि -औद्योगिक एकीकरण के एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में भी उभर रहा है ।
वर्ष 2014 में इस क्षेत्र का सकल मूल्य संवर्धन 1.34 लाख करोड़ रुपये था। आज, सतत नीतिगत फोकस और संस्थागत पहल के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 2.24 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
खाद्य प्रसंस्करण (food processing) क्या है?
- खाद्य प्रसंस्करण से तात्पर्य भौतिक, रासायनिक या जैविक साधनों का उपयोग करके कच्चे कृषि उत्पादों को उपभोग योग्य खाद्य या मध्यवर्ती खाद्य उत्पादों में परिवर्तित करने से है।
- इसमें सफाई, ग्रेडिंग, पैकेजिंग, संरक्षण और मूल्य संवर्धन जैसे कार्य शामिल हैं।
प्रकार:
- प्राथमिक खाद्य प्रसंस्करण: कच्चे कृषि उत्पादों को आगे के प्रसंस्करण या उपभोग के लिए उपयुक्त रूप में परिवर्तित करने पर ध्यान केंद्रित करना।
-
- उदाहरण:
-
- फल एवं सब्जी प्रसंस्करण: फलों एवं सब्जियों की धुलाई, छंटाई, श्रेणीकरण एवं पैकेजिंग।
- डेयरी प्रसंस्करण: दूध के घटकों (जैसे, क्रीम, स्किम्ड दूध) को अलग करना और पाश्चुरीकरण करना।
- द्वितीयक खाद्य प्रसंस्करण: खाद्य उत्पाद बनाने के लिए खाना पकाने और संरक्षण तकनीकों के प्रयोग पर ध्यान केंद्रित करना।
-
- उदाहरण:
-
- बेकिंग: ब्रेड, केक और पेस्ट्री बनाना।
- रस निष्कर्षण और सांद्रण: फलों का प्रसंस्करण कर उनका रस निकालना और सांद्रण करना।
- तृतीयक खाद्य प्रसंस्करण: बड़े पैमाने पर तैयार खाद्य पदार्थों या सुविधाजनक खाद्य पदार्थों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना।
-
- उदाहरण:
-
- फ्रोजन भोजन: माइक्रोवेव हीटिंग के लिए सम्पूर्ण भोजन तैयार करना और पैकेजिंग करना।
- स्नैक फूड: चिप्स, क्रैकर्स और अन्य पैकेज्ड स्नैक्स का उत्पादन करना।
महत्व
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग कृषि और विनिर्माण के बीच कड़ी का काम करता है।
- यह न केवल औपचारिक क्षेत्र में, जहां यह पंजीकृत कर्मचारियों का 12.38 प्रतिशत है, बल्कि अनौपचारिक क्षेत्र में भी सबसे अधिक संख्या में लोगों को रोजगार देता है।
- खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के अनुसार, पंजीकृत खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में महिलाओं की हिस्सेदारी कुल रोजगार का 12.6 प्रतिशत है, जबकि अपंजीकृत उद्योगों में यह संख्या लगभग दोगुनी यानी 24.7 प्रतिशत है।
- यह क्षेत्र किसानों, विशेषकर महिला किसानों को बेहतर सौदेबाजी शक्ति प्रदान करके उनके सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है, जिससे संकटपूर्ण बिक्री में कमी आएगी और प्रसंस्करणकर्ताओं को निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भारत के सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देता है, जो कि एक बड़ा प्रतिशत है।
- यह उद्योग भारत की निर्यात आय में प्रमुख योगदानकर्ता है, तथा प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रमुखता प्राप्त कर रहे हैं।
- इससे काफी औद्योगिक निवेश आकर्षित होता है, जिससे आर्थिक गतिविधि और विकास को बढ़ावा मिलता है।
- खाद्य प्रसंस्करण कृषि उत्पादों को विपणन योग्य वस्तुओं में परिवर्तित करके, अपव्यय को कम करके, तथा मूल्यवर्धित उत्पाद बनाकर उनके मूल्य में वृद्धि करता है।
- कृषि उपज का प्रसंस्करण करके, उद्योग किसानों को उनके उत्पादों के लिए बेहतर मूल्य दिलाने में मदद करता है, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है और आजीविका में सुधार होता है।
- प्रसंस्करण से शीघ्र नष्ट होने वाले कृषि उत्पादों का शेल्फ आयु /जीवन बढ़ जाता है, तथा खराब होने और बर्बादी के कारण होने वाली हानि कम हो जाती है।
- विभिन्न प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की मांग किसानों को अपनी फसलों में विविधता लाने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे कुछ प्रमुख फसलों पर उनकी निर्भरता कम हो जाती है।
- खाद्य प्रसंस्करण आपूर्ति श्रृंखला को सुव्यवस्थित करने में मदद करता है, जिससे खेत से उपभोक्ता तक कृषि उत्पादों का अधिक कुशल और विश्वसनीय प्रवाह सुनिश्चित होता है।
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ शेल्फ लाइफ बढ़ाकर और पहुंच में सुधार करके, दूरदराज के क्षेत्रों सहित व्यापक आबादी को भोजन उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- फोर्टीफाइड प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ आवश्यक विटामिन और खनिजों को शामिल करके पोषण संबंधी कमियों को दूर करने में मदद कर सकते हैं, जिससे बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य में योगदान मिलता है।
- खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण के माध्यम से, उद्योग खाद्य अपव्यय को कम करने में मदद करता है, तथा यह सुनिश्चित करता है कि अधिक खाद्यान्न उपभोक्ताओं तक पहुंचे।
सरकारी पहल
- प्रधान मंत्री किसान सम्पदा योजना (Pradhan Mantri Kisan SAMPADA Yojana (PMKSY): खाद्य प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने, अपव्यय को कम करने और मेगा फूड पार्कों, कोल्ड चेन और कृषि प्रसंस्करण क्लस्टरों को समर्थन देकर रोजगार पैदा करने के लिए एक व्यापक योजना।
- पीएम सूक्ष्म खाद्य उद्यमों का औपचारिकीकरण (PM Formalisation of Micro Food Enterprises (PMFME): औपचारिकीकरण , प्रशिक्षण, ऋण पहुंच और एसएचजी समर्थन के माध्यम से असंगठित सूक्ष्म खाद्य व्यवसायों का समर्थन करने के लिए आत्मनिर्भर भारत के तहत 10,000 करोड़ रुपये की योजना।
- खाद्य प्रसंस्करण के लिए उत्पादन से संबंद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना : 8,900 करोड़ रुपये के प्रतिबद्ध निवेश के माध्यम से बड़े पैमाने पर खाद्य विनिर्माण को बढ़ावा देने, वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने और रोजगार पैदा करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- ऑपरेशन ग्रीन्स (Operation Greens): प्रारंभ में इसका उद्देश्य टमाटर, प्याज और आलू (TOP) की आपूर्ति को स्थिर करना था, लेकिन अब इस योजना में उचित मूल्य सुनिश्चित करने और बर्बादी को कम करने के लिए 22 शीघ्र खराब होने वाली फसलों को शामिल किया गया है।
- कृषि अवसंरचना निधि (Agriculture Infrastructure Fund (AIF): ₹1 लाख करोड़ रुपये के फंड का उद्देश्य कोल्ड स्टोरेज, पैकहाउस और प्री-प्रोसेसिंग के लिए मूल्य श्रृंखलाओं सहित फार्म-गेट और एकत्रीकरण बुनियादी ढांचे का विकास करना है ।
- एक जिला एक उत्पाद (One District One Product (ODOP) : विपणन, ब्रांडिंग और निर्यात सहायता प्रदान करके अद्वितीय स्थानीय कृषि उत्पादों को बढ़ावा देना, जिलों को राष्ट्रीय खाद्य मूल्य श्रृंखला में एकीकृत करना।
- खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 100% एफडीआई : खाद्य विनिर्माण और खुदरा क्षेत्र में वैश्विक पूंजी और प्रौद्योगिकी को आकर्षित करने के लिए स्वचालित मार्ग के तहत पूर्ण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देता है।
- 10,000 किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organisations (FPOs) का गठन : किसानों को संरचित समूहों में एकत्रित करना ताकि उनकी सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाया जा सके, बेहतर बाजार पहुंच सुनिश्चित की जा सके और मूल्य श्रृंखला एकीकरण को समर्थन दिया जा सके।
- राष्ट्रीय मखाना बोर्ड (2024-25 बजट ) : मखाना के लिए मूल्य संवर्धन, ब्रांडिंग और वैश्विक बाजार पहुंच को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय सुपरफूड्स को बढ़ावा देने के लिए घोषित किया गया ।
- खाद्य परीक्षण एवं विकिरण अवसंरचना के लिए समर्थन : खाद्य सुरक्षा, शेल्फ लाइफ और निर्यात तत्परता में सुधार के लिए परीक्षण एवं अंशांकन प्रयोगशालाओं के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड से मान्यता प्राप्त 100 प्रयोगशालाओं और 50 विकिरण इकाइयों की स्थापना ।
उपलब्धियां
- किसान सम्पदा योजना के अंतर्गत 22,000 करोड़ रुपये के निजी निवेश के साथ 1,604 से अधिक परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। 53 लाख किसान लाभान्वित हुए और 7.6 लाख नौकरियां पैदा हुईं।
- प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्यम औपचारिकीकरण (PMFME) के तहत ₹11,205 करोड़ मूल्य के 1.41 लाख से अधिक ऋण स्वीकृत किए गए , 3.3 लाख एसएचजी सदस्यों को सीड कैपिटल (आरंभिक निवेश) के माध्यम से समर्थन दिया गया
- ऑपरेशन ग्रीन्स को 22 शीघ्र खराब होने वाली फसलों तक बढ़ाया गया
चुनौतियां
फार्म स्तर (Farm Level) पर:
-
गुणवत्ता और खाद्य सुरक्षा मानकों के बारे में जागरूकता का अभाव
- प्रसंस्करण योग्य किस्मों का अभाव
- अपर्याप्त एकत्रीकरण केंद्र और कोल्ड चेन
- पैकहाउस , प्रशीतित वाहनों और मूल्य-श्रृंखला बुनियादी ढांचे की कमी
- बढ़ती आय और संगठित खुदरा व्यापार के कारण प्रसंस्कृत और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य उत्पादों की मांग बढ़ रही है।
- उपभोक्ता व्यवहार में सुविधा, गुणवत्ता और पता लगाने की क्षमता की ओर बदलाव ।
पर्यावरण एवं उत्पादन जोखिम:
- मृदा स्वास्थ्य और जल स्तर में गिरावट
- उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग
- सूक्ष्म सिंचाई और संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन जैसी सतत प्रथाओं की आवश्यकता
आवश्यक कदम
- कोल्ड चेन , पैकहाउस और अंतिम मील परिवहन में निवेश करना
- किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ)-आधारित एकत्रीकरण मॉडल को बढ़ावा देना
- कोडेक्स एलीमेंटेरियस (Codex Alimentarius) और वैश्विक स्वास्थ्य मानकों के बारे में जागरूकता बढ़ाना
- ट्रेसिबिलिटी और पोषण पर जोर देते हुए उपभोक्ता-केंद्रित नवाचार को बढ़ावा देना
- निर्यातोन्मुख प्रसंस्करण और ब्रांडिंग को प्रोत्साहित करना
- जलवायु-स्मार्ट कृषि पर ध्यान केंद्रित करना
- निजी क्षेत्र और सहकारी समितियों के साथ मूल्य श्रृंखला साझेदारी को बढ़ावा देना
- प्रशिक्षण और इनक्यूबेशन के माध्यम से कौशल और उद्यमिता को बढ़ाना
निष्कर्ष
भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र ग्रामीण आजीविका, कृषि-निर्यात और नवाचार के चौराहे पर खड़ा है। निरंतर सुधारों और संस्थागत समर्थन के साथ, यह न केवल भारत को भोजन उपलब्ध करा रहा है – बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की ब्रांडिंग भी कर रहा है। किसानों, विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाकर और स्थानीय उपज को वैश्विक बाजारों के साथ एकीकृत करके, यह आने वाले दशकों में समावेशी विकास, रोजगार और खाद्य सुरक्षा का वादा करता है।
मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
खाद्य प्रसंस्करण भारत की कृषि को मात्रा-आधारित प्रणाली से मूल्य-आधारित अर्थव्यवस्था में बदलने की कुंजी है। इस क्षेत्र के महत्व और इसकी पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए हाल के वर्षों में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
परिचय (संदर्भ)
दक्षिण एशिया वैश्विक स्तर पर सबसे कम आर्थिक रूप से एकीकृत क्षेत्रों में से एक है। भौगोलिक निकटता और साझा इतिहास के बावजूद, SAFTA के तहत अंतर-क्षेत्रीय व्यापार दक्षिण एशिया के कुल व्यापार का केवल 5-7% है – जो EU (45%) , ASEAN (22%), या NAFTA (25%) से बहुत कम है। वर्तमान SAARC देशों के बीच व्यापार $23 बिलियन है , जबकि संभावित $67 बिलियन या उससे अधिक (UNESCAP) है।
बढ़ता आर्थिक राष्ट्रवाद, सीमा विवाद और आतंकी खतरे क्षेत्रीय सहयोग को कमजोर करते हैं। एकीकरण की इस कमी का आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों पर गहरा असर पड़ता है।
सार्क (SAARC) क्या है?
- दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) 1985 में स्थापित एक क्षेत्रीय संगठन है जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया में आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा देना है।
- सदस्य देश: अफ़गानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका ।
- ये राष्ट्र मिलकर विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक हैं तथा गहरे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आर्थिक संबंध साझा करते हैं।
- इनमें भारत- एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में और एक भू-राजनीतिक प्रभावशाली देश के रूप में एक प्रमुख भूमिका निभाता है ।
सार्क में वर्तमान स्थिति/चुनौतियाँ
- दक्षिण एशिया में विश्व की 25% आबादी रहती है , लेकिन इसका सकल घरेलू उत्पाद केवल 5 ट्रिलियन डॉलर है। इसके विपरीत, यूरोपीय संघ (वैश्विक आबादी का 5.8%) का सकल घरेलू उत्पाद 18 ट्रिलियन डॉलर है, और NAFTA का सकल घरेलू उत्पाद 24.8 ट्रिलियन डॉलर है।
- दक्षिण एशिया का व्यापार-जीडीपी अनुपात 47.3% (2022) से गिरकर 42.9% (2024) हो गया है। इस क्षेत्र के भीतर व्यापार लागत माल के मूल्य का 114% है, जो अमेरिका (109%) से अधिक है।
- आर्थिक अस्थिरता अशांति को बढ़ावा देती है; अशांति और संघर्ष व्यापार को बाधित करते हैं । उदाहरण: आतंकवाद और सीमा तनाव के कारण भारत-पाकिस्तान व्यापार 2.41 बिलियन डॉलर (2018) से घटकर 1.2 बिलियन डॉलर (2024) हो गया।
- UNESCAP द्वारा किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि दक्षिण एशिया की व्यापार क्षमता 2020 तक 172 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकती है। हालाँकि, वास्तविक सार्क देशों के बीच व्यापार केवल 23 बिलियन डॉलर था – जो इसकी क्षमता का एक तिहाई से भी कम है। यह अप्रयुक्त क्षमता बांग्लादेश (93% अप्रयुक्त), मालदीव (88%), पाकिस्तान (86%) और नेपाल (76%) जैसे देशों में सबसे अधिक है।
- इसके अलावा, क्षेत्र को बढ़ते व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें संचयी घाटा 2015 में 204.1 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2022 में 339 बिलियन डॉलर हो जाएगा। यह सब तब हो रहा है जब उस अवधि में समग्र व्यापार मात्रा (आयात + निर्यात) बढ़कर 1,335 बिलियन डॉलर हो गई।
- लेकिन शायद सबसे ज़्यादा चिंता का विषय अंतर-क्षेत्रीय व्यापार की लागत है । यह विनिमय किए गए माल के मूल्य का 114% है – जो भौगोलिक दूरी के बावजूद संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ व्यापार करने की तुलना में अधिक महंगा है। यह लागत अकुशलता व्यवसायों को क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखला बनाने से हतोत्साहित करती है और प्रतिस्पर्धा को सीमित करती है। इसके विपरीत, आसियान में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार लागत केवल 76% है, जो अधिक सघन आर्थिक सहयोग और परस्पर निर्भरता को प्रोत्साहित करती है।
- समझौतों पर नियमित रूप से हस्ताक्षर तो किये जाते हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन शायद ही कभी होता है।
- द्विपक्षीय तनाव के कारण शिखर सम्मेलन अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिए गए हैं।
- सार्क मोटर वाहन समझौता या दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय जैसी महत्वपूर्ण पहलें या तो अक्रियाशील हैं या उन्हें पर्याप्त धन नहीं मिल पा रहा है।
- निर्णय लेने और क्रियान्वयन तंत्र को संस्थागत बनाने में विफलता ने सार्क को काफी हद तक प्रतीकात्मक बना दिया है।
कारण
- सीमा विवाद, आतंकवाद, तथा कमजोर परिवहन एवं व्यापार अवसंरचना के कारण प्रमुख द्विपक्षीय व्यापार संबंध, विशेष रूप से भारत और पाकिस्तान के बीच, तथा नेपाल और श्रीलंका के साथ भी खराब हो गए हैं।
- यह विखंडन देशों की अर्थव्यवस्थाओं, क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं या सीमा पार नवाचार नेटवर्क से लाभ उठाने की क्षमता को कम करता है।
आवश्यक कदम
दक्षिण एशियाई आर्थिक एकीकरण को पुनर्जीवित करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है:
- सार्क तंत्र में सुधार और मजबूती : साफ्टा जैसे समझौतों को अक्षरशः लागू किया जाना चाहिए। व्यापार उदारीकरण प्रतीकात्मक नहीं रहना चाहिए, बल्कि इससे टैरिफ में वास्तविक कमी, व्यापार प्रक्रियाओं का सरलीकरण और मानकों की पारस्परिक मान्यता होनी चाहिए।
- सीमा पार बुनियादी ढांचे में निवेश करना: परिवहन गलियारे, ऊर्जा ग्रिड और डिजिटल कनेक्टिविटी का निर्माण व्यवसाय करने की लागत को कम कर सकता है और क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं को बढ़ावा दे सकता है। BBIN (बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल ) और BIMSTEC के तहत भारत की पहलों का विस्तार किया जाना चाहिए और SAARC लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाया जाना चाहिए।
- व्यापार संबंधों का राजनीतिकरण नहीं करना: आर्थिक सहयोग को राजनीतिक शत्रुता से अलग रखना चाहिए। जबकि राजनीतिक संवाद महत्वपूर्ण है, देशों को व्यापार को कूटनीतिक गतिरोधों का बंधक नहीं बनाना चाहिए।
- लोगों के बीच संपर्क को प्रोत्साहित करना: शैक्षिक आदान-प्रदान, पर्यटन और नागरिक समाज साझेदारी को मजबूत करने से विश्वास का पुनर्निर्माण हो सकता है, जो क्षेत्रीय सहयोग के लिए आधारभूत आवश्यकता है।
- सेवाओं में व्यापार और डिजिटल अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करना: दक्षिण एशिया में पर्यटन, फिनटेक , डिजिटल स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में बहुत बड़ी अप्रयुक्त क्षमता है। क्षेत्रीय ढाँचों को इन उभरते क्षेत्रों में सीमा पार निवेश और सहयोग को सुविधाजनक बनाना चाहिए।
निष्कर्ष
सार्क का उद्देश्य अविश्वास और तनाव को समाप्त करना था, लेकिन विश्वास की कमी और क्षेत्रीय संघर्ष SAFTA जैसे समझौतों के पूर्ण कार्यान्वयन में बाधा डालते हैं। राजनीतिक विविधता, क्षेत्रीय विवाद, अल्पसंख्यक मुद्दे और आतंकवाद क्षेत्रीय सहयोग के लिए प्रमुख बाधाएँ हैं। अधिकांश सार्क देश एक-दूसरे के साथ संघर्ष में हैं, जिससे प्रभावी क्षेत्रीय एकीकरण में बाधा आती है। कम व्यापार अवसर का मतलब देश के लोगों में नवाचार, उत्पादन और निवेश की कम क्षमता है। इसलिए, दक्षिण एशियाई क्षेत्र की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए, सदस्यों को अपने द्विपक्षीय संघर्षों को अलग रखते हुए, अंतर-क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से काम करना चाहिए।