IASbaba's Daily Current Affairs Analysis - हिन्दी
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(PRELIMS Focus)
श्रेणी: पर्यावरण
प्रसंग: जवाहरलाल नेहरू उष्णकटिबंधीय वनस्पति उद्यान एवं अनुसंधान संस्थान (JNTBGRI), तिरुवनंतपुरम के शोधकर्ताओं ने लाल आइवी पौधे (स्ट्रोबिलैंथेस अल्टरनेटा) का उपयोग करके एक घाव भरने वाला पैड विकसित किया है, जिसे स्थानीय रूप से मुरीकूटी पचा (murikooti pacha) कहा जाता है।
प्रमुख बिंदु:
- सक्रिय घटक: लाल आइवी से पृथक किया गया एक नया अणु, एक्टियोसाइड, कम सांद्रता (0.2%) पर भी प्रभावी है।
- प्रौद्योगिकी: इलेक्ट्रो-स्पन नैनोफाइबर का उपयोग करके निर्मित बहु-स्तरीय पैड।
- विशेषताएं: बहुत पतला, जैवनिम्नीकरणीय, गैर-विषाक्त, FDA-अनुमोदित पॉलिमर, जिसमें नियोमाइसिन सल्फेट मिलाया गया है।
- कार्य: छिद्रयुक्त नैनोफाइबर संरचना गैस विनिमय को सक्षम बनाती है, जिससे तेजी से उपचार में सहायता मिलती है।
- पृष्ठभूमि: यह पौधे का कटने और घावों के उपचार के लिए पारंपरिक उपयोग पर आधारित है।
Learning Corner:
लाल आइवी पौधा (Red Ivy Plant -Strobilanthes alternata)
- यह एक औषधीय पौधा है जो सामान्यतः केरल और अन्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
- इसे स्थानीय तौर पर मुरीकुट्टी पाचा के नाम से जाना जाता है।
- पारंपरिक रूप से ग्रामीण क्षेत्र में चिकित्सा रूप में कटने, घाव और त्वचा संबंधी रोगों के उपचार के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
- पत्तियां लाल-बैंगनी रंग की होती हैं, जिसके कारण इस पौधे को “लाल आइवी” नाम दिया गया है।
- एक्टियोसाइड जैसे जैवसक्रिय यौगिकों से समृद्ध, रोगाणुरोधी, सूजनरोधी और घाव भरने वाले गुणों के लिए जाना जाता है।
- हाल ही में जेएनटीबीजीआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा उन्नत बायोडिग्रेडेबल घाव-उपचार पैड विकसित करने के लिए अध्ययन किया गया।
स्रोत: द हिंदू
श्रेणी: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
संदर्भ: शोधकर्ताओं ने डेंगू, जीका और चिकनगुनिया के वाहक एडीज मच्छरों से निपटने के लिए अद्यतन रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।
- वर्तमान चुनौतियाँ: पाइरेथ्रॉइड वेपोराइज़र का प्रभाव सीमित है; वोलबाचिया-आधारित नियंत्रण महंगा है। एडीज़ अत्यधिक अनुकूलनशील होते हैं, दिन में काटते हैं, और छोटे जल निकायों में प्रजनन करते हैं।
- व्यक्तिगत सुरक्षा: डीईईटी मानक विकर्षक बना हुआ है, लेकिन पिकारिडिन और 2-अंडेकेनोन जैसे सुरक्षित विकल्प भी ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।
- सामुदायिक कार्रवाई: स्थिर पानी को हटाने के लिए समुदायों को प्रशिक्षित करने से डेंगू के मामलों में 26% की कमी आई; प्रभावी लार्वानाशकों ने जोखिम को और कम कर दिया।
- दृष्टिकोण: एक “नीचे से ऊपर” की रणनीति की आवश्यकता है – लोगों को ज्ञान और किफायती उपकरणों से सशक्त बनाना, साथ ही “सुबह 10 बजे 10 मिनट” जैसे सरकारी अभियान भी चलाने होंगे।
- नीति आह्वान: समुदाय-नेतृत्व वाली पहलों के साथ बड़े पैमाने पर नियंत्रण को संयोजित करने वाले राष्ट्रीय मिशन की वकालत करता है।
Learning Corner:
डेंगू, जीका और चिकनगुनिया और उनके वाहकों पर नोट
- डेंगू:
- डेंगू वायरस (फ्लेविवायरस) के कारण होने वाला वायरल रोग।
- लक्षण: तेज बुखार, गंभीर सिरदर्द, मांसपेशियों/जोड़ों में दर्द, चकत्ते; गंभीर मामलों में, डेंगू रक्तस्रावी बुखार/शॉक।
- वेक्टर: एडीज़ एजिप्टी (प्राथमिक) और एडीज़ एल्बोपिक्टस (द्वितीयक)।
- जीका:
- जीका वायरस (फ्लैविवायरस) के कारण होता है।
- लक्षण: हल्का बुखार, दाने, नेत्रश्लेष्मलाशोथ (conjunctivitis); प्रमुख चिंता जन्म दोष (माइक्रोसेफली) है जब गर्भवती महिलाएं संक्रमित होती हैं।
- वेक्टर: एडीज़ एजिप्टी और एडीज़ एल्बोपिक्टस।
- चिकनगुनिया:
- चिकनगुनिया वायरस (अल्फावायरस, टोगाविरिडे परिवार) के कारण होता है।
- लक्षण: अचानक तेज बुखार, गंभीर जोड़ों का दर्द (अक्सर लंबे समय तक रहने वाला), सिरदर्द, चकत्ते।
- वेक्टर: एडीज़ एजिप्टी और एडीज़ एल्बोपिक्टस।
ये तीनों रोग मच्छर जनित वायरल संक्रमण हैं, जो मुख्य रूप से दिन में काटने वाले एडीज मच्छरों द्वारा फैलते हैं।
स्रोत: द हिंदू
श्रेणी: इतिहास
प्रसंग: 11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था।
- कार्यक्रम: “अमेरिका की बहनों और भाइयों” के साथ शुरू हुआ, जिसके लिए दो मिनट तक खड़े होकर तालियां बजाई गईं।
- संदर्भ: पश्चिमी प्रभुत्व के समय भारत के वेदांत दर्शन को प्रस्तुत किया।
- संदेश: सभी धर्मों के प्रति सार्वभौमिक सहिष्णुता, स्वीकृति और सद्भाव की वकालत की, तथा सांप्रदायिकता और कट्टरता की निंदा की।
- प्रतिक्रिया: श्रोतागण बहुत प्रभावित हुए; उनकी विद्वत्ता और उपस्थिति की व्यापक रूप से प्रशंसा की गई।
- विरासत: पश्चिम में वेदांत और भारतीय आध्यात्मिकता के प्रवेश को चिह्नित किया, वैश्विक विचारकों को प्रभावित किया और वर्तमान योग और कल्याण आंदोलन की जड़ें रखीं।
Learning Corner:
स्वामी विवेकानन्द (1863-1902)
- रामकृष्ण परमहंस के शिष्य और रामकृष्ण मिशन के संस्थापक।
- पश्चिम में वेदांत और योग के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- विश्व धर्म संसद, शिकागो (1893) में अपने भाषण के बाद उन्हें विश्वव्यापी मान्यता मिली, जहाँ उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता और सार्वभौमिक भाईचारे पर बात की।
- उन्होंने सामाजिक सुधार, शिक्षा और गरीबों के उत्थान की वकालत की तथा मानवता की सेवा को ईश्वर की सच्ची पूजा बताया।
- आध्यात्मिक राष्ट्रवाद पर बल दिया, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को शक्ति, आत्मविश्वास और सांस्कृतिक गौरव के विचार से प्रेरित किया।
- 39 वर्ष की अल्पायु में (1902) उनका निधन हो गया, लेकिन उन्होंने दर्शन, अध्यात्म और राष्ट्र-निर्माण पर अमिट छाप छोड़ी।
स्रोत : द इंडियन एक्सप्रेस
श्रेणी: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
प्रसंग: नासा के पर्सिवियरेंस रोवर को मंगल ग्रह पर संभावित पूर्व जीवन का अब तक का सबसे मजबूत साक्ष्य मिल गया है।
- खोज स्थल: सूखी हुई नदी डेल्टा चेयेवा फॉल्स से चट्टान का नमूना।
- निष्कर्ष: मिट्टी, गाद, कार्बनिक कार्बन, सल्फर, ऑक्सीकृत लोहा और फास्फोरस की उपस्थिति – सूक्ष्मजीव जीवन के लिए अनुकूल तत्व।
- महत्व: जीवन के प्रमाण की ओर अब तक का सबसे निकटतम कदम माना जा रहा है, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
- सावधानी: विशेषताएं गैर-जैविक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप भी हो सकती हैं; इसका प्रमाण अभी तक स्थापित नहीं हुआ है।
- अगला कदम: भविष्य के मंगल नमूना वापसी मिशन के तहत पृथ्वी पर वापसी के लिए नमूने एकत्र किए जाएंगे, हालांकि वित्तपोषण संबंधी चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं।
Learning Corner:
अब तक भेजे गए मंगल ग्रह पर रोवर (2025 तक):
सोजर्नर (Sojourner- 1997) – नासा
- पहला सफल मंगल रोवर, मंगल पाथफाइंडर मिशन का हिस्सा।
- गतिशीलता और प्रौद्योगिकी का परीक्षण किया गया; चट्टानों और मिट्टी का अध्ययन किया गया।
स्पिरिट/ Spirit (2004–2010) – नासा
- मंगल अन्वेषण रोवर मिशन के तहत उतरा।
- गुसेव क्रेटर का अन्वेषण किया; अतीत में पानी के साक्ष्य मिले।
- 2009 में रेत में फंस गया; अंतिम बार 2010 में संपर्क हुआ।
ऑपरचुनीटि / Opportunity (2004–2018) – नासा
- स्प्रिट के साथ, मेरिडियानी प्लैनम पर उतरा।
- प्राचीन जल गतिविधि के मजबूत साक्ष्य मिले।
- लगभग 15 वर्षों तक संचालित (90 दिनों के लिए नियोजित)।
क्यूरियोसिटी (2012-वर्तमान) – नासा
- मंगल विज्ञान प्रयोगशाला मिशन का हिस्सा।
- गेल क्रेटर में परमाणु ऊर्जा चालित रोवर।
- भूविज्ञान, जलवायु और सूक्ष्मजीव जीवन की स्थितियों का अध्ययन किया।
- अभी भी चालू है।
पर्सिवियरेंस (2021–वर्तमान) – नासा
- जेज़ेरो क्रेटर में उतरा।
- खगोल जीव विज्ञान पर ध्यान केन्द्रित कर प्राचीन जीवन के संकेतों की खोज की गई।
- भविष्य में पृथ्वी पर वापस लौटने के लिए नमूने एकत्र करना।
- इसके अलावा इंजीन्यूटी हेलीकॉप्टर भी तैनात किया गया , जो किसी अन्य ग्रह पर उड़ान भरने वाला पहला विमान है।
ज़ुरोंग/ Zhurong (2021-2023) – चीन, सीएनएसए
- मंगल ग्रह पर सफलतापूर्वक संचालित होने वाला पहला गैर-नासा रोवर।
- तियानवेन-1 मिशन का हिस्सा।
- यूटोपिया प्लैनिटिया का अन्वेषण किया गया; जलयुक्त खनिजों की उपस्थिति की पुष्टि की गई।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस‘
श्रेणी: अंतर्राष्ट्रीय
प्रसंग: भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम के बीच वाराणसी में हुई वार्ता के बाद मॉरीशस के लिए 680 मिलियन डॉलर के विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की।
- अनुदान ($215 मिलियन): राष्ट्रीय अस्पताल, आयुष केंद्र, पशु चिकित्सा विद्यालय और हेलीकॉप्टरों के लिए।
- अनुदान-सह-ऋण सहायता ($440 मिलियन): हवाई अड्डे के एटीसी टावर, सड़क परियोजनाओं (एम4, रिंग रोड) और बंदरगाह उपकरण के लिए।
- बजटीय सहायता ($25 मिलियन): चागोस समुद्री संरक्षित क्षेत्र के बंदरगाह पुनर्विकास और निगरानी के लिए।
- समझौता ज्ञापन : सात, जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष (एक उपग्रह ट्रैकिंग स्टेशन सहित) को कवर करते हुए है।
- फोकस: बुनियादी ढांचे, रोज़गार, स्वास्थ्य सेवा, समुद्री सुरक्षा और स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को मजबूत करना।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
(MAINS Focus)
परिचय (संदर्भ)
ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना भारत की सबसे महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचे और रणनीतिक विकास पहलों में से एक है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, एक ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा, बिजली संयंत्र और टाउनशिप शामिल हैं।
हालांकि, क्षेत्र की पारिस्थितिक संवेदनशीलता तथा निकोबारी और शोम्पेन जैसे विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) की उपस्थिति के कारण, इस परियोजना ने अपनी रणनीतिक दृष्टि के लिए समर्थन और पारिस्थितिक और सामाजिक प्रभावों पर चिंताओं को आकर्षित किया है।
परियोजना के बारे में
- यह भारत सरकार द्वारा शुरू की गई सामरिक और राष्ट्रीय महत्व की एक एकीकृत विकास परियोजना है।
- घटकों में शामिल हैं:
- अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (आईसीटीटी): क्षमता 14.2 मिलियन टीईयू।
- ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा
- 450 एमवीए गैस और सौर-आधारित बिजली संयंत्र।
- 16,610 हेक्टेयर में फैली हुई टाउनशिप।
- ग्रेट निकोबार को हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री और हवाई संपर्क के केंद्र में बदलने की परिकल्पना की गई है।
परियोजना का महत्व
परियोजना में निम्नलिखित कार्य होंगे:
- भारत की नौसैनिक उपस्थिति और समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने की क्षमता को बढ़ाना।
- व्यापार, रसद और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना।
- द्वीपों में आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देना।
- जनजातीय कल्याण और पारिस्थितिक सुरक्षा के साथ बुनियादी ढांचे के विकास को संतुलित करना
- हिंद महासागर में बढ़ती चीनी उपस्थिति का मुकाबला करना।
सतत विकास के लिए पहल
जनजातीय कल्याण, जैव विविधता संरक्षण और आपदा लचीलेपन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाए हैं।
पर्यावरण
- एक विस्तृत पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) किया गया। ईआईए वह अध्ययन है जो निर्माण शुरू होने से पहले इस बात का अध्ययन करता है कि कोई परियोजना पर्यावरण (वन, वन्यजीव, वायु, जल आदि) को कैसे प्रभावित करेगी।
- एक पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) तैयार की गई। इसमें निर्माण और संचालन के दौरान नकारात्मक प्रभावों को कम करने या “शमन” करने के उपाय सूचीबद्ध हैं।
- निर्माण कार्य शुरू होने से पहले ही वन्यजीव संरक्षण योजनाओं के लिए अनुसंधान संस्थानों को 81.55 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं।
आपदा प्रबंधन
- सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, एक जोखिम मूल्यांकन अध्ययन किया गया जिसमें मानव-जनित जोखिमों (जैसे प्रदूषण या दुर्घटनाएँ) और प्राकृतिक आपदाओं (जैसे भूकंप, सुनामी और चक्रवात) दोनों का परीक्षण किया गया। इसके आधार पर, एक आपदा प्रबंधन योजना तैयार की गई।
जनजातीय कल्याण
- इस परियोजना से निकोबारी और शोम्पेन जैसे आदिवासी समूहों को विस्थापित नहीं किया जाएगा, जिनकी परियोजना क्षेत्र में एकमात्र बस्तियाँ न्यू चिंगेन (New Chingen) और राजीव नगर में हैं। निर्माण और संचालन, दोनों चरणों के दौरान इन जनजातियों के कल्याण की निगरानी के लिए एक विशेष समिति का गठन किया गया है।
- विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) के अधिकारों और कल्याण की रक्षा के लिए भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण सहित विशेषज्ञों के साथ भी परामर्श किया गया। अंडमान और निकोबार प्रशासन ने यह सुनिश्चित करने के लिए बजटीय प्रावधान किए हैं कि परियोजना के दौरान और उसके बाद भी जनजातीय कल्याणकारी उपाय जारी रहें।
- ग्रेट निकोबार द्वीप समूह की विकास योजना शोम्पेन नीति, 2015 और जारवा नीति का अनुसरण करती है।
- शोम्पेन अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का एक विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) है जो अलग-थलग रहते हैं और जंगलों पर निर्भर रहते हैं।
- नीति में कहा गया है कि द्वीप पर कोई भी बड़ी विकास परियोजना जनजातीय मामलों के मंत्रालय, जनजातीय कल्याण निदेशालय और अंडमान आदिम जनजाति विकास समिति (एएजेवीएस) से परामर्श के बाद ही की जानी चाहिए।
- एएजेवीएस (अंडमान आदिम जनजाति विकास समिति) एक सरकारी संस्था है जो द्वीपसमूह में आदिवासी समूहों के कल्याण की देखभाल करती है। जारवा नीति, 2004 के तहत , इसे जारवा और शोम्पेन जैसे सभी निजी जनजातियों का ट्रस्टी (कानूनी संरक्षक) घोषित किया गया था।
- परियोजना की समीक्षा के लिए गठित विशेषज्ञों के समूह, अधिकार प्राप्त समिति (Empowered Committee) ने पुष्टि की है कि जनजातीय हितों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा और किसी भी जनजातीय व्यक्ति को विस्थापन (अपनी भूमि से हटाने) की अनुमति नहीं दी जाएगी।
भूमि विकास
- यह परियोजना अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के कुल क्षेत्रफल का केवल 2% ही कवर करती है।
- लगभग 130.75 वर्ग किलोमीटर वन भूमि को परिवर्तित किया जाएगा, जो द्वीपसमूह के कुल वन क्षेत्र का मात्र 1.82% है।
- लगभग 65.99 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हरित क्षेत्र रहेगा, जहां कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा।
- वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के अनुसार, चूंकि अंडमान एवं निकोबार में 75% से अधिक वन क्षेत्र है, इसलिए अन्य राज्यों में प्रतिपूरक वनरोपण किया जा सकता है।
- इस परियोजना के लिए, हरियाणा में 97.30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को वृक्षारोपण के लिए चिन्हित किया गया है, ताकि वन भूमि का उपयोग कम किया जा सके।
आगे की राह
- पर्यावरण एवं जनजातीय सुरक्षा उपायों के लिए निगरानी तंत्र को मजबूत करना।
- भूकंपीय जोखिमों को ध्यान में रखते हुए आपदा-रोधी बुनियादी ढांचे का निर्माण करना।
- प्रत्येक स्तर पर जनजातीय समूहों के साथ पारदर्शी परामर्श सुनिश्चित करना।
- सतत पर्यटन और नीली अर्थव्यवस्था संबंधों को बढ़ावा देना।
- संचयी प्रभावों का आकलन करने के लिए दीर्घकालिक पारिस्थितिक अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करना।
निष्कर्ष
ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना महज एक बुनियादी ढांचा योजना नहीं है, बल्कि यह एक रणनीतिक दृष्टिकोण है जो भारत की आर्थिक महत्वाकांक्षाओं को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में राष्ट्रीय सुरक्षा की अनिवार्यताओं से जोड़ता है।
यदि इसे वास्तविक पारिस्थितिक संवेदनशीलता और सामुदायिक भागीदारी के साथ क्रियान्वित किया जाए, तो यह भारत के विकास पथ में अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी और सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए एक आदर्श मॉडल के रूप में सामने आ सकता है।
मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना जनजातीय कल्याण को रणनीतिक और विकासात्मक आवश्यकताओं के साथ किस प्रकार संतुलित करती है? (250 शब्द, 15 अंक)
परिचय (संदर्भ)
स्पेन, आयरलैंड और नॉर्वे सहित कई यूरोपीय देशों ने 2024-25 में औपचारिक रूप से फिलिस्तीन राज्य को मान्यता दे दी है।
यह मान्यता भू-राजनीतिक, नैतिक और घरेलू दबावों को प्रतिबिंबित करती है, तथा इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के प्रति यूरोप के दृष्टिकोण को नया रूप देती है।
फिलिस्तीन – संक्षिप्त परिचय
- फिलिस्तीन से तात्पर्य मुख्यतः पश्चिमी तट, गाजा पट्टी और पूर्वी येरुशलम से है।
- यहाँ की बहुसंख्यक आबादी अरब मूल की है।
- 1947 में संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना में अलग यहूदी और अरब राज्यों का प्रस्ताव रखा गया था।
- 1948 में इजरायल का निर्माण हुआ, जिसके परिणामस्वरूप फिलिस्तीनियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन (नकबा) हुआ।
- 1967 में छह दिवसीय युद्ध के बाद इजरायल ने पश्चिमी तट, गाजा और पूर्वी येरुशलम पर कब्जा कर लिया।
- फिलिस्तीनी प्राधिकरण (पीए) फतह के अधीन पश्चिमी तट के कुछ हिस्सों पर शासन करता है
- हमास ने 2007 से गाजा पर नियंत्रण कर रखा है।
- प्रमुख संघर्ष मुद्दों में भूमि विवाद, शरणार्थियों के वापसी का अधिकार, इजरायली बस्तियां और यरुशलम की स्थिति शामिल हैं।
- फिलिस्तीन को 2012 से संयुक्त राष्ट्र में गैर-सदस्य पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थित समाधान दो-राज्य समाधान है जिसमें पूर्वी येरुशलम को फिलिस्तीन की राजधानी बनाया जाएगा।
अब मान्यता को अत्यावश्यक क्यों बनाया गया है?
- 7 अक्टूबर (इज़राइल पर हमले) के बाद गाजा में युद्ध मुख्य कारण बन गया।
- इजराइल की बड़े पैमाने पर सैन्य प्रतिक्रिया से बड़े पैमाने पर विनाश और मानवीय संकट पैदा हो गया।
- इस स्थिति ने यूरोपीय देशों को झकझोर दिया तथा पुरानी यथास्थिति को अस्वीकार्य बना दिया।
- इसके अलावा, इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने दो-राज्य समाधान को खुले तौर पर खारिज कर दिया।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में दक्षिण अफ्रीका के मुकदमे में इज़राइल पर नरसंहार संधि का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया। इन कानूनी कार्यवाहियों ने यूरोप पर कार्रवाई करने का दबाव और बढ़ा दिया।
- कई सरकारों के लिए, दो-राज्य समाधान को जीवित रखने के लिए फिलिस्तीन को मान्यता देना अब आवश्यक माना जा रहा है।
यूक्रेन ने संप्रभुता पर यूरोप के रुख को किस प्रकार नया रूप दिया है?
- 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने यूरोप को राष्ट्रीय संप्रभुता पर कड़ा रुख अपनाने और बलपूर्वक भूमि अधिग्रहण को अस्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। इसने फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों पर इज़राइल के कब्ज़े के प्रति यूरोप की निष्क्रियता को उजागर किया।
- बुद्धिजीवियों, मीडिया और नागरिक समाज ने यूरोप के दोहरे मानदंडों में पाखंड की ओर इशारा किया।
- सरकारों पर अब निरंतरता बनाए रखने का दबाव है। यह “निरंतरता का अंतर” यूरोप की विश्वसनीयता के लिए एक बोझ बन गया है।
- फिलिस्तीन को मान्यता देना नीतियों को सिद्धांतों के साथ पुनः संरेखित करने के एक तरीके के रूप में देखा जाता है।
यूरोपीय देशों में घरेलू राजनीतिक दबाव क्या हैं?
- यूरोप में जनता की राय सभी संघर्षों में समान रूप से अंतर्राष्ट्रीय कानून लागू करने के पक्ष में प्रबल हो गई है।
- मानवाधिकार समूह सक्रिय रूप से अभियान चला रहे हैं, जिससे सरकारों पर दबाव बढ़ रहा है।
- युवा मतदाता और प्रगतिशील वर्ग, जो मध्य-वामपंथी और हरित दलों के प्रमुख समर्थक हैं, बयानों से आगे बढ़कर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
- सरकारों को डर है कि निष्क्रियता से उन्हें राजनीतिक और चुनावी तौर पर नुकसान हो सकता है।
- फिलिस्तीन को मान्यता देना, वहां के नागरिकों की नैतिक अपेक्षाओं के साथ संरेखण दर्शाने का एक तरीका माना जाता है।
मान्यता का महत्व
- यह दो-राज्य समाधान के लिए वैश्विक प्रयास को मजबूत करता है, तथा इसके क्षरण के बीच इसे जीवित रखता है।
- यह एक प्रतीकात्मक संदेश है कि गाजा मानवीय संकट के दौरान यूरोप निष्क्रिय नहीं रहेगा।
- यह यूक्रेन के प्रति यूरोप के रुख के समान ही अंतर्राष्ट्रीय कानून और संप्रभुता के अनुरूप कार्य करने के यूरोप के प्रयास को रेखांकित करता है।
- वैश्विक मंच पर यूरोप की नैतिक विश्वसनीयता और सॉफ्ट पावर को बढ़ाता है।
- इससे संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर फिलिस्तीन की स्थिति को बल मिलेगा।
- यह मान्यता को “शांति के लिए पुरस्कार” के रूप में देखने से हटकर इसे शांति के लिए एक पूर्वापेक्षा के रूप में देखने का संकेत है।
चुनौतियां
- मान्यता मोटे तौर पर प्रतीकात्मक है और इससे फ़िलिस्तीन की ज़मीनी हक़ीक़त में कोई सीधा बदलाव नहीं आता। इज़राइल इस कदम को अस्वीकार करता है और बस्तियों का विस्तार जारी रखता है, जिससे इसका व्यावहारिक प्रभाव सीमित हो जाता है।
- इससे यूरोप के भीतर आंतरिक विभाजन और गहरा हो सकता है, क्योंकि कुछ देश ऐतिहासिक जिम्मेदारियों के कारण सावधानी बरतना पसंद करते हैं।
- ठोस अनुवर्ती कार्रवाई (आर्थिक या राजनीतिक दबाव) के बिना, मान्यता को प्रतीकात्मक दिखावा माना जा सकता है।
निष्कर्ष
कई यूरोपीय देशों द्वारा फ़िलिस्तीन को मान्यता देना एक शक्तिशाली नैतिक और कूटनीतिक संकेत दर्शाता है जिसका उद्देश्य द्वि-राज्य समाधान को पुनर्जीवित करना और अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति यूरोप की प्रतिबद्धता को पुनः स्थापित करना है। दीर्घकालिक शांति के लिए, मान्यता के साथ-साथ निरंतर राजनीतिक जुड़ाव, मानवीय समर्थन और सभी हितधारकों पर बातचीत की ओर लौटने का दबाव भी ज़रूरी है।
मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
यूरोपीय देशों द्वारा फ़िलिस्तीन को मान्यता देना परिवर्तनकारी से ज़्यादा प्रतीकात्मक है। चर्चा कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)