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IAS UPSC Prelims and Mains Exam (हिंदी) – 4th July 2020
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(PRELIMS + MAINS FOCUS)
एनरिका लेक्सी मामला: अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के निर्णय को भारत स्वीकार करेगा और उसका पालन करेगा
भाग: GS Prelims and Mains II- भारत और इटली संबंध; अंतर्राष्ट्रीय संगठन और कन्वेंशन
समाचार में:
- केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि उसने एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के निर्णय को “स्वीकार और पालन” करने का फैसला किया है, जिसमें निर्णय दिया गया है कि इतालवी मरीन को प्रतिरक्षा (immunity) प्राप्त हैं और भारतीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।
- सरकार ने कहा है कि भारत समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS) के तहत गठित मध्यस्थ न्यायाधिकरण के अधिनिर्णय से बाध्य है।
- न्यायाधिकरण के निर्णय के अनुसार – भारत जीवन की हानि की भरपाई के लिए मुआवज़े का हकदार है। मरीन, जो अब इटली में हैं, वहीं आपराधिक जांच का सामना करेंगे।
न्यायाधिकरण के निर्णय को स्वीकार करने का सरकार का फैसला संविधान के अनुच्छेद 51 (c) और (d) के अनुरूप है।
अनुच्छेद 51 – अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना। राज्य इसके लिए प्रयास करेगा –
- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना;
- राष्ट्रों के बीच न्यायपूर्ण और सम्मानजनक संबंध बनाए रखना;
- एक दूसरे के साथ संगठित लोगों के व्यवहार में अंतरराष्ट्रीय कानून और संधि दायित्वों के लिए सम्मान; तथा
- मध्यस्थता द्वारा अंतर्राष्ट्रीय विवादों के निपटान को प्रोत्साहित करना
ICMR, 15 अगस्त तक वैक्सीन लॉन्च कर सकता है
भाग: GS Prelims and Mains III – विज्ञान – स्वास्थ्य और चिकित्सा
समाचार में:
- Covaxin – हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक इंडिया लिमिटेड (BBIL) द्वारा विकसित Covaxin को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा मानव परीक्षण के लिए मंजूरी मिल गई है।
- परीक्षण लोगों के समूहों पर किया जाता है तथा यह परीक्षण इसलिए होता है कि क्या वैक्सीन मनुष्यों पर सुरक्षित है और सुरक्षात्मक एंटीबॉडी का उत्पादन करती है।
- परीक्षण में विचाराधीन संभावित वैक्सीन SARS-CoV-2 strain है जिसे ICMR-National Institute of Virology से लिया गया है।
- सभी नैदानिक परीक्षणों के पूरा होने के बाद 15 अगस्त, 2020 तक नवीनतम वैक्सीन लॉन्च करने की परिकल्पना की गई है।
मिजोरम के बाद, नागालैंड ने कुत्ते के मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया
भाग: GS Prelims and Mains III – पशु कल्याण और संरक्षण
समाचार में:
- नागालैंड सरकार ने कुत्तों और कुत्ते के मांस के वाणिज्यिक(commercial) आयात और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है।
- मिजोरम सरकार ने मार्च में इसी तरह का निर्णय लिया था।
- यह घोषणा फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन (FIAPO) की एक अपील के बाद की गयी, जो कि पशु अधिकार समूहों का एक सर्वोच्च निकाय है।
क्या आप जानते हैं?
- कुत्ते का मांस – नागालैंड के कुछ समुदायों और पूर्वोत्तर के कुछ अन्य हिस्सों के बीच एक शिष्टाचार माना जाता है, जो पारंपरिक रूप से दशकों से राज्य के कुछ हिस्सों में खाया जाता है।
- नागालैंड में कुछ समुदाय कुत्ते के मांस में औषधीय गुण मानते हैं।
- खाद्य सुरक्षा और मानक (Food Safety & Standards) विनियम 2011 के विनियमन 2.5 द्वारा एफएसएसएआई(FSSAI) उन मांस और मांस उत्पादों को सूचीबद्ध करता है जो उपभोग के लिए उचित होते हैं।
- कुत्ते का मांस सूची में नहीं है, तथा इस प्रकार, मानव उपभोग के लिए अयोग्य माना जाता है।
#बॉयकॉट चीन: चीनी कंपनियों को लक्षित करने के उद्देश्य से आर्थिक उपाय
भाग: GS Mains II – भारत और उसके पड़ोसी; अंतर्राष्ट्रीय संबंध
समाचार में:
- भारत सीमा तनाव के बीच चीनी फर्मों को लक्षित करने के उद्देश्य से कई आर्थिक उपायों पर विचार कर रहा है।
- 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया है तथा केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने कहा कि भारत चीन से बिजली उपकरण आयात नहीं करेगा।
- राज्य बिजली वितरण कंपनियां उपकरणों का पाकिस्तान और चीनी फर्मों से आयात नहीं करेगी क्योंकि यह क्षेत्र रणनीतिक और मूलभूत है, तथा साइबर हमलों के लिए सुभेद्य है।
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री ने कहा है कि चीनी कंपनियों को सड़क परियोजनाओं में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- सरकार चीन को लक्षित करने वाले व्यापार और खरीद पर भी विचार कर रही है।
- सरकार कई क्षेत्रों में चीनी निवेश की जांच भी बढ़ा रही है तथा 5 जी परीक्षणों से चीनी कंपनियों को बाहर रखने के निर्णय का विचार कर रही है।
क्या आप जानते हैं?
- उपरोक्त कदमों से चीनी कंपनियों को अरबों डॉलर की हानि उठाना पड़ सकता है।
- यह भारत का स्पष्ट संदेश है कि वह व्यापार और निवेश संबंधों को सामान्य नहीं रख सकता है, यदि चीन LAC पर अपनी घुसपैठ आरंभ होने से पहले अप्रैल की पूर्व–स्थिति पर लौटने के लिए सहमत नहीं होता है।
- हालाँकि, चीन भारतीय बाजार पर बहुत कम निर्भर है, तुलनात्मक रूप से भारत चीनी आयात पर अधिक निर्भर है।
- भारत अपने कई उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण आयातों के लिए ऑटो पार्ट्स से लेकर सक्रिय दवा सामग्री (APIs) तक चीन पर निर्भर है। APIs 70% से 90% तक APIs चीन से आती हैं।
- भारत को उपरोक्त कई क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
वहनीय कीमत पर चिकित्सा उपकरण (Medical devices at affordable prices)
भाग: GS Prelims and Mains II and IV – सरकार की योजनाएं और नीतियां; कल्याणकारी राज्य; नीतिशास्त्र
समाचार में:
- भारत में सभी चिकित्सा उपकरणों को ड्रग्स के रूप में अधिसूचित किया गया है तथा यह 1 अप्रैल से प्रभावी होने के साथ ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 और ड्रग्स (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 की नियामक व्यवस्था के तहत आया है।
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने महत्वपूर्ण चिकित्सा उपकरणों की एक सूची चिन्हित की है तथा राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) से अनुरोध किया है कि वह वहनीय कीमतों पर इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करे।
राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) की भूमिका
- ड्रग्स (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 के तहत प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में एनपीपीए (NPPA) ने पल्स ऑक्सीमीटर और ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर जैसे महत्वपूर्ण चिकित्सा उपकरणों के निर्माताओं / आयातकों से मूल्य–संबंधित डेटा माँगा है।
- एनपीपीए ने यह सुनिश्चित किया है कि 1 अप्रैल, 2020 तक मौजूदा कीमतें एक साल में 10% से अधिक नहीं बढ़ाई जानी चाहिए।
- एनपीपीए ने उद्योग संघों को बताया कि यह “सामान्य रूपी व्यवसाय” नहीं है तथा अत्यधिक मुनाफा अर्जन का समय नहीं है।
महामारी से संबंधित विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर जयराम रमेश समिति
समाचार में:
- जयराम रमेश की अध्यक्षता में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन संबंधी स्थायी समिति की बैठक 10 जुलाई को होगी, जिसमें भविष्य में COVID-19 और अन्य महामारियों से निपटने की तैयारी पर चर्चा की जाएगी।
- समिति COVID-19 के लिए वैक्सीन पर विचार–विमर्श भी करेगी, जिसमें भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड द्वारा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के साथ भागीदारी से विकसित की जा रही वैक्सीन भी शामिल है।
- संसदीय पैनल ने सरकार द्वारा COVID की प्रतिक्रिया के बारे में जानकारी देने के लिए प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार को भी बुलाया है।
संरक्षित क्षेत्रों में मानव–पशु संघर्ष और यातायात को रोकना
समाचार में:
- कर्नाटक वन विभाग ने नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान में सड़कों से गुजरने वाले वाहनों के लिए समय–मुद्रांकित कार्ड प्रणाली (time-stamped card system) आरंभ करने का फैसला किया है।
- राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में सड़कों के साथ यातायात निगरानी तंत्र मोटर चालकों द्वारा वन कानूनों का बेहतर अनुपालन सुनिश्चित करता है और सड़क दुर्घटना को कम करेगा।
- समय–मुद्राकिंत तंत्र यह सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि मोटर चालक बीच में न रुकें तथा क्षेत्र में गंदगी न करें या वन्यजीवों के लिए समस्या का कारण न बनें।
- प्रत्येक 500 मीटर की दूरी पर स्पीड ब्रेकर के रूप में कार्य करने के लिए रोड हम्प्ड (road humps) के अलावा 30 किमी प्रति घंटे की स्पीड लिमिट लागू की जा रही है।
(मुख्य लेख)
शासन / आर्थिक / सामाजिक
विषय: सामान्य अध्ययन 1,2,3:
- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियां और हस्तक्षेप
- भारतीय अर्थव्यवस्था और संसाधनों के नियोजन, जुटाने से संबंधित मुद्दे
- महिला सशक्तिकरण
ग्रामीण रोज़गार नीतियों को रीसेट करना, महिलाओं के कार्य को मान्यता देना
Context: COVID-19 महामारी का महिलाओं के काम पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है
COVID -19-पूर्व स्थिति (ग्रामीण महिलाओं के लिए)
- ग्रामीण महिलाएं नियमित रोजगार के संकट का सामना कर रही थीं
- राष्ट्रीय श्रम बल सर्वेक्षणों के अनुसार, 2017-18 में वयस्क ग्रामीण महिलाओं की एक चौथाई संख्या श्रम बल में थी (या “आधिकारिक आंकड़ों में “श्रमिक” के रूप में गिनी गयी थी)
- हालांकि, गैर सरकारी संगठनों (NOGs) द्वारा ग्रामीण कर्नाटक के सर्वेक्षण से पता चलता है कि, काम की भागीदारी में मौसम आधारित परिवर्तन होते रहते हैं, लगभग सभी ग्रामीण महिलाएं फसल के मौसम में “श्रमिक” की परिभाषा के अंतर्गत आ जाती हैं।
- उपरोक्त आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण महिलाओं में नियमित रोजगार का संकट है।
- दूसरे शब्दों में, जब महिलाओं को कामगार के रूप में सूचित नहीं किया जाता है, तो यह श्रम बल से किसी भी “वापसी” का कारण होने के बजाय रोजगार के अवसरों की कमी के कारण होता है।
- घर के बाहर भुगतान योग्य कार्य (Paid work outside home)
- ग्रामीण महिलाओं के काम की एक और विशेषता यह है कि कुछ क्षेत्रीय अपवादों (exception) के साथ किसानों के सभी वर्गों की महिलाएं घर के बाहर पेड वर्क (भुगतान योग्य कार्य) में हिस्सा लेती हैं।
- इस प्रकार, जब हम संभावित कार्यबल के बारे में बात करते हैं, हमें ग्रामीण परिवारों के लगभग सभी वर्गों की महिलाओं को शामिल करने की जरूरत है, न कि केवल ग्रामीण श्रमिकों या मैनुअल श्रमिक परिवारों की महिलाओं को।
- ग्रामीण महिलाओं के मध्य आयु आधारित भिन्न–भिन्न आकांक्षाएं
- एक तीसरी विशेषता यह है कि युवा और अधिक शिक्षित महिलाएं अक्सर काम की तलाश में नहीं होती हैं क्योंकि वे कुशल गैर–कृषि कार्य की आकांक्षा रखती हैं, जबकि बड़ी उम्र की महिलाएं मैनुअल श्रम (शारीरिक श्रम) में संलग्न होने के लिए अधिक इच्छुक होती हैं।
- मजदूरी में असमानता
- ग्रामीण भारत की एक चौथी विशेषता यह है कि कुछ अपवादों (exception) को छोड़कर महिलाओं का वेतन पुरुषों के वेतन के समान नहीं होता है। महिला और पुरुष वेतन के बीच का अंतर गैर–कृषि कार्यों के लिए सबसे अधिक है, जोकि रोजगार का नया और उभरता स्रोत है।
- महिलाओं के काम को कम आंकना (Underestimation of women’s work)
- काम के सभी रूपों को चिन्हित करना – आर्थिक गतिविधि और देखभाल कार्य या खाना पकाने में, साफ–सफाई, बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों की देखभाल में कार्य करती हैं, इससे एक महिला का कार्य दिवस बेहद लंबा होता है।
- यह अनुमान लगाया गया है कि महिलाओं द्वारा काम किए गए कुल घंटे (आर्थिक गतिविधि और देखभाल में) सामान्य काल में 61-88 घंटे से लेकर, चरम व्यस्त काल में अधिकतम 91 घंटे (या 13 घंटे एक दिन) तक हो जाते हैं।
- कोई भी महिला प्रति सप्ताह में 60 घंटे से कम काम नहीं करती है।
ग्रामीण महिलाओं पर महामारी और लॉकडाउन का प्रभाव
- महिलाओं के लिए सीमित कृषि गतिविधि :
- संक्रमण की आशंकाओं के कारण अधिक पारिवारिक श्रम तथा कम वैतनिक श्रम करने की प्रवृत्ति बढ़ गई है।
- हालांकि लॉकडाउन के दौरान कृषि गतिविधि जारी रही लेकिन महिलाओं के लिए उपलब्ध रोजगार सीमित था।
- कृषि संबद्ध क्षेत्रों से आय में कमी
- देश भर में महिलाओं के लिए, डेयरी सहकारी समितियों को दूध की बिक्री से आय सिकुड़ गई है क्योंकि दूध की मांग 25% तक गिर गई है (क्योंकि होटल और रेस्तरां बंद थे)।
- मछुआरों के बीच, पुरुष समुद्र में नहीं जा सकते थे, तथा महिलाएं मछली और मछली उत्पादों को संसाधित (process) या बेच नहीं सकती थीं।
- महिलाओं के लिए गैर–कृषि रोजगार का पतन
- निर्माण स्थलों, ईंट भट्ठों, छोटे–मोटे स्टोरों और भोजनालयों, स्थानीय कारखानों और अन्य उद्यमों के पूरी तरह से बंद होने के साथ ही गैर–कृषिगत रोज़गारों पर अचानक विराम लग गया है।
- हाल के वर्षों में, महिलाओं का सार्वजनिक कार्यों में आधे से अधिक कार्यों का योगदान था, लेकिन अप्रैल के अंत तक राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (NREGS) के माध्यम से कोई रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया।
- मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता या आशा (ASHAs), जिनमें 90% महिलाएं हैं, फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मी बन गई हैं, हालांकि उन्हें “श्रमिक” के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है या नियमित वेतन का भुगतान नहीं किया गया है।
- महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण पर प्रभाव
- लॉकडाउन अवधि के दौरान देखभाल कार्य का बोझ बढ़ गया।
- घर में परिवार के सभी सदस्यों का रहना, तथा बच्चों के स्कूल का बंद होना, खाना पकाने, साफ–सफाई, बच्चों की देखभाल और बुजुर्गों की देखभाल के कार्यों में वृद्धि हुई है।
- ग्रामीण महिलाओं के रोज़गार पर लॉकडाउन का प्रतिकूल प्रभाव
- ग्रामीण मौसमी श्रमिकों में से 71% महिलाओं ने लॉकडाउन के बाद अपना रोज़गार खो दिया है; पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 59% था।
- सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आंकड़े भी सुझाव देते हैं कि अप्रैल 2020 में रोज़गार की हानि अप्रैल 2019 की तुलना में, पुरुषों की तुलना में ग्रामीण महिलाओं के लिए बहुत अधिक थी।
आगे की राह
- अल्पकालिक लक्ष्य NREGS का विस्तार होना चाहिए।
- एक मध्यम और दीर्घकालिक योजना में कुशल व्यवसायों और नए उद्यमों में महिला–विशिष्ट रोजगार सृजन करने की आवश्यकता है।
- आशा कर्मियों को श्रमिकों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए तथा उचित वेतन दिया जाना चाहिए।
- अपने घरों से लेकर कार्यस्थलों तक महिलाओं के लिए सुरक्षित और आसान परिवहन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
- स्कूली बच्चों के साथ–साथ बुजुर्गों और बीमारों के लिए स्वस्थ भोजन की उपलब्धता घर में खाना पकाने के कार्यों को कम कर सकता है, जो महिलाओं के देखभाल के बोझ को कम करता है।
निष्कर्ष
यह समय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के परिवर्तन में महिलाओं को समान भागीदार के रूप में देखे जाने का है।
Connecting the dots:
- नारीवाद (Feminism) और उसकी चुनौतियाँ
- जेंडर बजटिंग
महिला / शासन / समाज
विषय: सामान्य अध्ययन 2,3:
- महिला सशक्तिकरण
- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकार की नीतियाँ और हस्तक्षेप
लापता महिलाएं (Missing Females)
Context : हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने स्टेट ऑफ़ द वर्ल्ड पॉपुलेशन (the State of
the World Population) 2020 रिपोर्ट जारी की है, जिसका शीर्षक है ‘मेरी इच्छा के विरुद्ध: महिलाओं और लड़कियों को नुकसान पहुंचाने वाली प्रथाओं का उन्मूलन तथा समानता लाना‘ है।
लापता महिलाओं से क्या तात्पर्य है?
- शब्द “लापता महिलाएं” (missing women) किसी क्षेत्र या देश में महिलाओं की अपेक्षित जनसंख्या के सापेक्ष (relative) महिलाओं की जनसंख्या में कमी को दर्शाता है।
- यह आम तौर पर महिला बच्ची के लिए लिंग–चयनात्मक गर्भपात, महिला शिशु हत्या, तथा अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल और पोषण के कारण होता है।
- यह तर्क दिया जाता है कि ऐसी प्रौद्योगिकियां जो जन्म के पूर्व लिंग चयन को सक्षम करती हैं, जो 1970 के दशक से व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं, लापता महिला बच्चों में वृद्धि के लिए एक बड़ा कारण हैं।
- इस परिकल्पना को सबसे पहले भारतीय नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने दिया था।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की स्टेट ऑफ़ द वर्ल्ड पॉपुलेशन (the State of the World Population) 2020 रिपोर्ट
- “लापता महिलाओं” की संख्या पिछले 50 वर्षों में दोगुनी से अधिक हो गई है – जो 1970 में 61 मिलियन से 2020 में संचयी 142.6 मिलियन तक है।
- भारत में 2020 तक लापता महिलाओं की संख्या 45.8 मिलियन है।
- एक विश्लेषण के अनुसार, लिंग–पक्षपाती लैंगिक चयन का कुल लापता लड़कियों में दो–तिहाई का योगदान है, तथा जन्म के बाद की महिला मृत्यु दर का लगभग एक तिहाई है।
- भारत में प्रति 1,000 महिला जन्मों में महिलाओं की मृत्यु दर 13.5 है जोकि सर्वाधिक है, जो बताती है कि 5 वर्ष से कम आयु की महिलाओं की नौ मौतों में से एक का अनुमान प्रसवोत्तर लिंग चयन को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
- भारत में, प्रत्येक वर्ष 2013 और 2017 के बीच, जन्म के समय लगभग 460,000 लड़कियां लापता हो गयीं, जिसका अर्थ है कि उन्होंने पूर्व–लिंग–चयन के आधार पर जन्म ही नहीं लिया।
- भारत (40%) के साथ चीन (50%) में अनुमानित 1.2 मिलियन लड़कियों में से लगभग 90% कन्या की प्रति वर्ष भ्रूण हत्या में मृत्यु हो जाती हैं।
- लड़के की पसंद अक्सर “विवाह दबाव“(marriage squeeze) की ओर ले जाती है, जहां भावी दूल्हे की संख्या भावी दुल्हन से अधिक होती है। जिससे बाल विवाह को बढ़ावा मिलता है।
- लड़कियों के विरुद्ध हानिकारक प्रथाओं का गहरा और स्थायी आघात होता है – जैसे महिला जननांग विकृति (genital mutilation), बाल विवाह, और बेटों के पक्ष में बेटियों के विरुद्ध चरम पूर्वाग्रह (bias)।
कोविड -19 (Covid-19) प्रेरित चुनौतियां:
- Covid-19 महामारी के कारण आर्थिक व्यवधान और आय–हानि की वजह से बेटियों की तीव्र अवांछितता (intensified unwantedness) और लैंगिक भेदभाव के कारण लड़कियों और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा बढ़ सकती है।
- Covid-19 महामारी विश्व भर में कुछ हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करने में की गई प्रगति को उलटने की चिंता पैदा करती है ।
- भारत में, Covid-19 ने गर्भनिरोधक और गर्भपात सेवाओं तक पहुंच कम कर दी है, जिससे अवांछित गर्भधारण और असुरक्षित गर्भपात में वृद्धि होने की संभावना है।
आगे की राह
- विशेष रूप से लिंग–पक्षपातपूर्ण मानदंडों के मूल कारणों को खत्म करके समस्या से निपटा जाना चाहिए।
- लड़कियों को स्कूल में लंबे समय तक रखने और उन्हें जीवन कौशल सिखाने तथा सामाजिक परिवर्तन में पुरुषों और लड़कों को भी शामिल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- स्कूल में उपस्थिति पर सशर्त नकद हस्तांतरण (cash transfer) का प्रावधान; या स्कूल की फीस, किताबें, ड्रेस और आपूर्ति की लागत को कवर करने के लिए समर्थन।
- ‘अपनी बेटी, अपना धन‘ जैसी सफल नकदी–हस्तांतरण (cash transfer) पहल को अपनी पहुंच और क्षमता में व्यापक किया जाना चाहिए।
- महिलाओं की प्रगति और उपलब्धियों का जश्न मनाने वाले अभियान अधिक प्रतिध्वनित हो सकते हैं, जहां केवल बेटी वाले परिवारों को सफल होते दिखाया जा सकता है।
- जिन देशों ने बाल अधिकारों पर कन्वेंशन जैसी अंतरराष्ट्रीय संधियों की पुष्टि की है, उनका कर्तव्य है कि वे प्रतिकूल परिस्थितियों/ प्रथाओं को समाप्त करें, चाहे वह लड़कियों को परिवार के सदस्यों, धार्मिक समुदायों या राज्यों द्वारा स्वयं दी गयी हो।
Value Addition – संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के बारे में
- यह संयुक्त राष्ट्र महासभा का एक सहायक अंग है तथा एक यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी के रूप में काम करता है।
- संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) द्वारा इसका जनादेश (mandate) स्थापित किया गया है।
- इसे 1967 में ट्रस्ट फंड के रूप में स्थापित किया गया था और 1969 में परिचालन आरंभ हुआ।
- 1987 में, इसे आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष का नाम दिया गया था, लेकिन जनसंख्या गतिविधियों के लिए संयुक्त राष्ट्र कोष के लिए मूल संक्षिप्त नाम, ‘UNFPA’ को बरकरार रखा गया था।
- UNFPA संयुक्त राष्ट्र के बजट द्वारा समर्थित नहीं है, इसके बजाय, यह पूरी तरह से दाता (voluntary) सरकारों, अंतर–सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र, फाउंडेशन और व्यक्तियों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा समर्थित है ।
- UNFPA स्वास्थ्य (SDG3), शिक्षा (SDG4) और लैंगिक समानता (SDG5) पर सतत विकास लक्ष्य से निपटने के लिए प्रत्यक्षतः कार्य करता है
Connecting the dots:
- सतत विकास लक्ष्य
- PCPNDT अधिनियम, 1994
(TEST YOUR KNOWLEDGE)
मॉडल प्रश्न: (You can now post your answers in comment section))
ध्यान दें:
- आज के प्रश्नों के सही उत्तर अगले दिन के डीएनए सेक्शन में दिए जाएंगे। कृपया इसे देखें और अपने उत्तर अपडेट करें।
- Comments Up-voted by IASbaba are also the “correct answers”.
Q.1 उत्तर से दक्षिण दिशा में भारत के निम्नलिखित राष्ट्रीय उद्यानों को व्यवस्थित करें:
- राजाजी राष्ट्रीय उद्यान
- नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान
- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान
- नामदाफा राष्ट्रीय उद्यान
नीचे दिए गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें:
- 1, 3, 2, 4
- 3, 1, 4, 2
- 3, 4, 1, 2
- 1, 4, 3, 2
Q.2 राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) के बारे में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें।
- यह उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीन कार्य करता है
- यह नियंत्रित थोक दवाओं और योगों (formulations) की कीमतों को निश्चित / संशोधित करता है
सही कथनों का चयन करें
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1 और न ही 2
Q.3 भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें
- इसे खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत स्थापित किया गया है
- उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय FSSAI के कार्यान्वयन के लिए प्रशासनिक मंत्रालय है
सही कथनों का चयन करें
- केवल 1
- केवल 2
- 1 और 2 दोनों
- न तो 1 और न ही 2
ANSWERS FOR 3rd July 2020 TEST YOUR KNOWLEDGE (TYK)
1 | B |
2 | A |
3 | B |
4 | B |
5 | B |
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इतालवी मरीन केस के बारे में:
COVID-19 वक्र समतल करने के बारे में:
प्लास्टिक संकट के बारे में: