DAILY CURRENT AFFAIRS IAS हिन्दी | UPSC प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा – 28th June 2025

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  • June 28, 2025
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IASbaba's Daily Current Affairs Analysis - हिन्दी

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(PRELIMS MAINS Focus)


भारत-अमेरिका व्यापार समझौता (India-U.S. Trade Deal)

श्रेणी: अंतर्राष्ट्रीय

प्रसंग: भारत और अमेरिका 8 जुलाई 2025 की समय सीमा से पहले एक सीमित व्यापार समझौते को पूरा करने के लिए वार्ता के अंतिम चरण में हैं।

प्रमुख अमेरिकी मांगें

  • अमेरिकी निर्यात पर कम टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएं – विशेष रूप से ऑटो, चिकित्सा उपकरण और कृषि सामान (सोया, मक्का, गेहूं, इथेनॉल, सेब) पर।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों के लिए बाजार तक पहुंच।
  • विमानन और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में बेहतर शर्तें।

भारत का रुख

  • किसानों के हितों और खाद्य सुरक्षा की रक्षा के लिए कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को संरक्षण प्रदान किया जाता है।
  • सीमित रियायतें प्रदान की जाएं: जैसे बादाम, पिस्ता और कुछ रक्षा /ऊर्जा वस्तुओं पर टैरिफ में कमी की जाए।
  • भारतीय इस्पात और ऑटो पार्ट्स पर अमेरिकी टैरिफ वापस लेने की मांग।

लंबित मुद्दे

  • कृषि वस्तुओं, इस्पात और ऑटो घटकों पर टैरिफ को लेकर असहमति।
  • अमेरिका तत्काल, व्यापक पहुंच चाहता है; भारत चरणबद्ध दृष्टिकोण को प्राथमिकता देता है।
  • गतिरोध को तोड़ने के लिए वार्ता में शीर्ष स्तर के हस्तक्षेप (मोदी-ट्रम्प) की आवश्यकता हो सकती है।

यदि 8 जुलाई तक कोई समझौता नहीं हुआ तो

  • भारतीय वस्तुओं पर 10% टैरिफ पुनः लगाया जा सकता है।
  • इसका प्रभाव सीमित होने की संभावना है, क्योंकि निर्यात स्थिर बना हुआ है।
  • भारत यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ व्यापार संबंधों को भी मजबूत कर रहा है।

Learning Corner:

भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार

अवलोकन:
भारत और अमेरिका के बीच मजबूत और बढ़ते व्यापारिक संबंध हैं, जिनमें रणनीतिक सहयोग और कभी-कभी व्यापार तनाव दोनों शामिल हैं। अमेरिका भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है, और भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के लिए एक प्रमुख बाजार और रणनीतिक सहयोगी है।

मुख्य तथ्य (2024 के अनुमान के अनुसार):

  • कुल द्विपक्षीय व्यापार: 190 बिलियन डॉलर से अधिक, जिससे अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है
  • भारत का अमेरिका को निर्यात: ~118 बिलियन डॉलर – इसमें फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र, आईटी सेवाएं, रत्न एवं आभूषण, ऑटो पार्ट्स शामिल हैं।
  • अमेरिका से भारत का आयात: ~72 बिलियन डॉलर – इसमें कच्चा तेल, रक्षा उपकरण, विमान, कृषि उत्पाद और प्रौद्योगिकी शामिल हैं।

सहयोग के क्षेत्र:

  • ऊर्जा व्यापार: अमेरिका भारत को कच्चे तेल, एलएनजी और कोयले का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।
  • रक्षा एवं प्रौद्योगिकी: रक्षा खरीद (अपाचे, सी-130, ड्रोन) और तकनीकी सहयोग में वृद्धि ।
  • सेवाएँ और आईटी: अमेरिका भारत के आईटी निर्यात के लिए सबसे बड़ा बाजार है; कई भारतीय पेशेवर एच-1बी वीजा के तहत अमेरिका में काम करते हैं।

चुनौतियाँ एवं संघर्ष:

  • टैरिफ विवाद: अमेरिका अक्सर भारत द्वारा ऑटोमोबाइल और कृषि जैसे उत्पादों पर लगाए गए उच्च टैरिफ की आलोचना करता है।
  • व्यापार बाधाएं: भारत ने अमेरिकी वीज़ा प्रतिबंधों और संरक्षणवादी नीतियों के बारे में चिंता जताई है।
  • डिजिटल व्यापार और डेटा स्थानीयकरण: तकनीकी क्षेत्र में असहमति के उभरते क्षेत्र।

निष्कर्ष:

भारत-अमेरिका व्यापार रणनीतिक और बहुआयामी है, जिसमें वृद्धि की काफी संभावनाएं हैं। हालांकि चुनौतियां बनी हुई हैं, लेकिन दोनों देश गहरी व्यापार साझेदारी के पारस्परिक आर्थिक और भू-राजनीतिक लाभों को चिह्नित करते हैं।

व्यापार समझौतों के विभिन्न प्रकार

व्यापार समझौते दो या दो से अधिक देशों के बीच की संधियाँ हैं जो यह रेखांकित करती हैं कि वे एक दूसरे के साथ व्यापार कैसे करेंगे। ये समझौते टैरिफ और कोटा जैसी व्यापार बाधाओं को कम करने और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। मुख्य प्रकार में शामिल हैं:

द्विपक्षीय व्यापार समझौता (Bilateral Trade Agreement (BTA)

  • किनके बीच में: दो देश
  • उद्देश्य: टैरिफ कम करना, वस्तुओं/सेवाओं में व्यापार बढ़ाना, निवेश को बढ़ावा देना।
  • उदाहरण: भारत-यूएई सीईपीए (व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता)
  • विशेषताएं: विशिष्ट पारस्परिक हितों के अनुरूप; बहुपक्षीय समझौतों की तुलना में वार्ता में तेज प्रगति।

बहुपक्षीय व्यापार समझौता (Multilateral Trade Agreement)

  • किनके बीच में: दो से अधिक देश, आमतौर पर अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के अंतर्गत।
  • उदाहरण: GATT, TRIPS जैसे WTO समझौते
  • उद्देश्य: सभी सदस्यों के लिए एक समान नियम बनाकर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देना।
  • विशेषताएं: दायरा व्यापक है, लेकिन कई हितधारकों के कारण वार्ता में किसी ठोस निर्णय तक पहुँचना कठिन होता है।

मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement (FTA)

  • लक्ष्य: सदस्य देशों के बीच व्यापार किये जाने वाले अधिकांश वस्तुओं पर टैरिफ और कोटा समाप्त करना।
  • उदाहरण: भारत-आसियान एफटीए
  • विशेषताएँ: वस्तुओं, सेवाओं और कभी-कभी निवेश पर ध्यान केंद्रित करता है। सदस्य गैर-सदस्यों के साथ स्वतंत्र व्यापार नीतियाँ बनाए रखते हैं।

सीमा शुल्क संघ (Customs Union)

  • लक्ष्य: संघ के भीतर मुक्त व्यापार और एक सामान्य बाह्य टैरिफ नीति।
  • उदाहरण: यूरोपीय संघ (ईयू)
  • विशेषताएं: एफटीए की तुलना में अधिक आर्थिक एकीकरण, लेकिन बाह्य व्यापार नीतियों पर समन्वय की आवश्यकता है।

सामान्य या कॉमन बाज़ार (Common Market)

  • लक्ष्य: सदस्य राज्यों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, पूंजी और श्रम का मुक्त आवागमन।
  • उदाहरण: यूरोपीय एकल बाज़ार
  • विशेषताएं: गहन राजनीतिक और आर्थिक एकीकरण; सामंजस्यपूर्ण विनियमन और कानून की आवश्यकता है।

व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (Comprehensive Economic Partnership Agreement (CEPA)

  • लक्ष्य: एफटीए से अधिक व्यापक – इसमें व्यापार, निवेश, आईपीआर, विवाद समाधान आदि शामिल हैं।
  • उदाहरण: भारत-जापान सीईपीए
  • विशेषताएं: इसमें टैरिफ और गैर-टैरिफ दोनों मुद्दे शामिल होते हैं; अक्सर क्षेत्र-विशिष्ट सहयोग होता है।

अधिमान्य व्यापार समझौता (Preferential Trade Agreement (PTA)

  • लक्ष्य: चयनित वस्तुओं पर टैरिफ कम करना, समग्र पर नहीं।
  • उदाहरण: भारत-मर्कोसुर पीटीए
  • विशेषताएं: एफटीए की तुलना में कम महत्वाकांक्षी; गहरे समझौतों की ओर एक कदम के रूप में कार्य करता है।

स्रोत: THE HINDU


काजीरंगा-कार्बी आंगलोंग भू-परिदृश्य में ढोल (Dhole in Kaziranga-Karbi Anglong Landscape)

श्रेणी: पर्यावरण

संदर्भ: शोधकर्ताओं ने असम के काजीरंगा-कार्बी आंगलोंग भू-परिदृश्य में लुप्तप्राय ढोल (क्यूऑन अल्पाइनस) – जिसे एशियाई जंगली कुत्ते के रूप में भी जाना जाता है – के पहले कैमरा-ट्रैप साक्ष्य का दस्तावेजीकरण किया है।

यह पुनः खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि पहले यह माना जाता था कि यह प्रजाति इस क्षेत्र में स्थानीय रूप से विलुप्त हो चुकी है।

यह तस्वीर अमगुरी कॉरिडोर (काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों के बीच एक महत्वपूर्ण वन्यजीव संपर्क मार्ग) में ली गई थी, जो राष्ट्रीय राजमार्ग से सिर्फ 375 मीटर की दूरी पर ली गई थी, जो महत्वपूर्ण वन्यजीव आवासों में मानव अवसंरचना द्वारा उत्पन्न खतरे पर जोर देती है।

ढोल को IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय (Endangered) के रूप में वर्गीकृत किया गया है और वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित किया गया है। एशिया भर में इसकी कमी पर्यावास की कमी, शिकार की कमी और मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण हुई है।

यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल काजीरंगा पहले से ही एक सींग वाले गैंडे, बंगाल टाइगर और जंगली भैंस जैसी प्रजातियों का घर है । ढोल की पुनः खोज इस क्षेत्र के संरक्षण मूल्य को बढ़ाती है और पूर्वोत्तर भारत में वन्यजीव गलियारों के संरक्षण के महत्व को उजागर करती है।

Learning Corner:

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान

स्थान:
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत के असम राज्य में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ के मैदानों के किनारे स्थित है।

मुख्य तथ्य:

  • अपने अद्वितीय प्राकृतिक वातावरण और समृद्ध जैव विविधता के लिए यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (1985 से)।
  • ये स्थान एक सींग वाले गैंडे (one-horned rhinoceros) की विश्व की सबसे बड़ी आबादी की मेजबानी के लिए प्रसिद्ध है ।
  • काजीरंगा के पांच विशाल जीवों का घर भी है :
    • एक सींग वाला गैंडा (One-horned Rhinoceros)
    • बंगाल टाइगर (Bengal Tiger)
    • एशियाई हाथी (Asian Elephant)
    • जंगली जल भैंस (Wild Water Buffalo)
    • दलदली हिरण (Swamp Deer)

जैव विविधता:

  • स्तनधारियों की 35 से अधिक प्रजातियों, 500 से अधिक पक्षी प्रजातियों, तथा विविध सरीसृप और वनस्पति जीवन का समर्थन करता है।
  • प्रवासी पक्षियों, नदी डॉल्फिन और ढोल (एशियाई जंगली कुत्ते) जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण निवास स्थान।

संरक्षण की स्थिति:

  • 1974 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित ।
  • 2006 से इसे टाइगर रिजर्व के रूप में मान्यता प्राप्त है ।
  • असम वन विभाग द्वारा प्रबंधित और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) द्वारा समर्थित

चुनौतियाँ:

  • मौसमी बाढ़, अवैध शिकार, पर्यावास विखंडन और मानव-वन्यजीव संघर्ष
  • निकटवर्ती राजमार्गों और बस्तियों से दबाव के कारण वन्यजीव गलियारे प्रभावित हो रहे हैं

महत्व:

  • गैंडे संरक्षण के लिए एक वैश्विक मॉडल
  • ब्रह्मपुत्र बाढ़ क्षेत्र में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण।
  • पूर्वोत्तर भारत में पारिस्थितिकी पर्यटन का प्रमुख केंद्र ।

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की महत्वपूर्ण प्रजातियाँ

एक शृंगी गैंडा /एक सींग वाला गैंडा ( राइनोसेरस यूनिकॉर्निस )

  • काजीरंगा में इस प्रजाति की विश्व में सबसे बड़ी आबादी है।
  • संरक्षण की सफलता की कहानी: 1900 के दशक के आरम्भ में कुछ दर्जन से लेकर आज 2,600 से अधिक वयस्क तक का सफर।
  • आईयूसीएन रेड लिस्ट में सुभेद्य (VU) के रूप में सूचीबद्ध ।

बंगाल टाइगर (पैंथेरा टाइग्रिस)

  • 2006 में टाइगर रिजर्व घोषित किया गया ।
  • काजीरंगा भारत में सबसे अधिक बाघ घनत्व वाले क्षेत्रों में से एक है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची I के अंतर्गत संरक्षित ।

एशियाई हाथी (एलिफ़स मैक्सिमस)

  • यह संपूर्ण उद्यान में झुंडों में पाया जाता है, विशेषकर शुष्क मौसम के दौरान।
  • आईयूसीएन द्वारा लुप्तप्राय (Endangered) के रूप में सूचीबद्ध ।

जंगली जल भैंसा (Wild Water Buffalo (Bubalus arnee)

  • भारत में जंगली भैंसों की सबसे बड़ी आबादी काजीरंगा में है ।
  • आईयूसीएन रेड लिस्ट में लुप्तप्राय (EN) के रूप में वर्गीकृत ।

दलदली हिरण ( बारासिंघा ) (Rucervus duvaucelii)

  • पूर्वी दलदली हिरण उप-प्रजाति इस क्षेत्र के लिए अद्वितीय है।
  • दलदली घास के मैदानों में निवास करता है; जनसंख्या वृद्धि की प्रक्रिया में है।

भारतीय तेंदुआ (Indian Leopard (Panthera pardus fusca)

  • मायावी और रात्रिचर; बाघों के साथ निवास स्थान साझा करता है।

पक्षी प्रजातियाँ

  • प्रवासी पक्षियों सहित 500 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ ।
  • उल्लेखनीय प्रजातियाँ:
    • ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल
    • बंगाल फ्लोरिकन (गंभीर रूप से लुप्तप्राय)
    • पेलिकन, सारस और रैप्टर (Pelicans, Storks, and Raptors)

सरीसृप और जलीय प्रजातियाँ

  • घड़ियाल, भारतीय अजगर, असम रुफ्ड टर्टल (Assam Roofed Turtle), तथा गंगा डॉल्फिन (आस-पास की नदी प्रणालियों में) शामिल हैं।

ढोल (एशियाई जंगली कुत्ता)

वैज्ञानिक नाम: Cuon alpinus

सामान्य नाम: ढोल, एशियाई जंगली कुत्ता, भारतीय जंगली कुत्ता, लाल कुत्ता

संरक्षण स्थिति:

  • आईयूसीएन लाल सूची: लुप्तप्राय (EN)
  • भारत का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची I

भौतिक विशेषताएं:

  • यह मध्यम आकार का कैनिड है, जिसके बाल लाल रंग के , पूँछ घनी काली नोक वाली, तथा कान गोल होते हैं।
  • अपने सामाजिक व्यवहार और समूह में सहकारी शिकार के लिए जाने जाते हैं।

पर्यावास और वितरण:

  • दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के जंगलों, घास के मैदानों और पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • भारत में, वे पश्चिमी घाट , मध्य भारत , पूर्वोत्तर भारत और हिमालय के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं

पारिस्थितिक भूमिका:

  • यह शीर्ष शिकारी है तथा शिकार की आबादी को नियंत्रित करके पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।

खतरे:

  • वनों की कटाई और बुनियादी ढांचे के विकास के कारण पर्यावास की क्षति ।
  • शिकार आधार में गिरावट , विशेष रूप से खंडित वनों में।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष और घरेलू कुत्तों से रोग संचरण।

स्रोत: THE HINDU 


भारतीय संविधान में समानता (Equality in Constitution of India)

श्रेणी: राजनीति

संदर्भ : भारत में संवैधानिक न्यायालय, विशेष रूप से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय, समानता के संवैधानिक सिद्धांत की व्याख्या करने और उसे लागू करने में, विशेष रूप से लैंगिक न्याय और भेदभाव-विरोधी संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रमुख संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण की गारंटी देता है।
  • अनुच्छेद 15: विशिष्ट आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है तथा महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 16: सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद 39(डी): राज्य को पुरुषों और महिलाओं के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करने का निर्देश देता है।

न्यायिक अभ्यास और ऐतिहासिक निर्णय:

मूलभूत समानता:

न्यायालय औपचारिक समानता से वास्तविक समानता की ओर विकसित हुए हैं, तथा संरचनात्मक असुविधाओं को दूर करने के लिए सकारात्मक कार्रवाई की आवश्यकता को स्वीकार किया है।

ऐतिहासिक मामले:

  • सबरीमाला मामला (2018): मंदिर से महिलाओं को बाहर रखने को असंवैधानिक करार दिया गया।
  • पी.बी. विजय कुमार (1995): अनुच्छेद 15(3) के तहत सार्वजनिक नौकरियों में महिलाओं के लिए आरक्षण बरकरार रखा गया।
  • विशाखा केस (1997): यौन उत्पीड़न के दिशा-निर्देश निर्धारित किये गये; लैंगिक न्याय को अनुच्छेद 14, 19 और 21 से जोड़ा गया।
  • धारवाड़ पीडब्ल्यूडी कर्मचारी मामला: समान काम के लिए समान वेतन लागू किया गया।
  • चारु खुराना मामला: समानता के सिद्धांतों को निजी व्यावसायिक निकायों तक विस्तारित किया गया।

कार्यान्वयन में सिद्धांत:

  • सकारात्मक कार्रवाई: संवैधानिक रूप से वैध; वास्तविक समानता के लिए आवश्यक।
  • भेदभाव विरोधी: सम्मान और समानता का उल्लंघन करने वाले कानूनों और प्रथाओं को समाप्त किया जाएगा।
  • समान वेतन: न्यायालय उचित एवं समान पारिश्रमिक के अधिकार को कायम रखते हैं।

Learning Corner:

समानता (Equality)

समानता न्याय का एक मूलभूत सिद्धांत है जो यह सुनिश्चित करता है कि सभी व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष और बिना किसी भेदभाव के व्यवहार किया जाए, चाहे उनकी जाति, लिंग, धर्म, नस्ल या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो। यह एक कानूनी अधिकार और लोकतांत्रिक समाजों के लिए आवश्यक नैतिक मूल्य दोनों है।

समानता के प्रकार:

  1. औपचारिक समानता:
    • कानून के तहत समान व्यवहार।
    • सभी लोग समान नियमों और मानकों के अधीन हैं।
  2. मूलभूत समानता:
    • परिणामों और अवसरों तक वास्तविक जीवन की पहुंच पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • ऐतिहासिक और संरचनात्मक नुकसानों को ठीक करने के लिए सकारात्मक कार्रवाई का समर्थन करता है।
  3. राजनीतिक समानता:
    • समान मताधिकार एवं शासन में भागीदारी।
  4. सामाजिक समानता:
    • जाति, वर्ग, लिंग आदि के आधार पर सामाजिक भेदभाव का उन्मूलन।
  5. आर्थिक समानता:
    • धन का उचित वितरण और संसाधनों तक पहुंच।

भारतीय संविधान में समानता:

  • अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समानता और विधियों का समान संरक्षण।
  • अनुच्छेद 15: धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का प्रतिषेध।
  • अनुच्छेद 16: सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता।
  • अनुच्छेद 39(डी): समान कार्य के लिए समान वेतन (निर्देशक सिद्धांत)।

समानता का महत्व:

  • सामाजिक न्याय और समावेशी विकास को बढ़ावा देता है।
  • व्यक्तियों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा करता है।
  • लोकतंत्र और कानून के शासन को मजबूत करता है।
  • समाज में असमानताओं और संघर्षों को कम करता है।

स्रोत : THE HINDU 


ग्रीन / हरित बांड (Green Bonds)

श्रेणी: पर्यावरण

संदर्भ: ग्रीन बांड अफ्रीका की जलवायु लचीलेपन के लिए एक प्रमुख वित्तीय उपकरण के रूप में उभर रहे हैं, जो नवीकरणीय ऊर्जा, बुनियादी ढांचे और पर्यावरणीय सततता में निवेश को सक्षम बनाते हैं।

नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका और मोरक्को जैसे देशों ने प्रमुख परियोजनाओं के लिए सफलतापूर्वक हरित वित्त जुटाया है, जो पूरे महाद्वीप में सतत वित्त में बढ़ती रुचि को दर्शाता है।

ग्रीन बांड क्यों महत्वपूर्ण हैं?

  • जलवायु वित्त जुटाना: ग्रीन बांड महत्वपूर्ण जलवायु शमन और अनुकूलन परियोजनाओं (जैसे, सौर, जल विद्युत) को वित्तपोषित करने में मदद करते हैं।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: बैंक और कंपनियां अब ग्रीन बांड जारी करने के मूल्य में 60% से अधिक का योगदान दे रही हैं, जिससे बाजार में उनकी भागीदारी बढ़ रही है।
  • जलवायु लक्ष्यों के लिए समर्थन: वे अफ्रीका के पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप हैं, तथा 146 बिलियन डॉलर के वार्षिक जलवायु वित्त अंतराल को संबोधित करते हैं।

प्रमुख चुनौतियाँ

  • जोखिम प्रीमियम: ऋण जोखिम, मुद्रा अस्थिरता और राजनीतिक अस्थिरता की चिंताओं के कारण निवेशक उच्च रिटर्न की मांग करते हैं – जिससे उधार लेने की लागत बढ़ जाती है।
  • संरचनात्मक बाधाएं: कमजोर पूंजी बाजार, खराब नियामक ढांचे और मानकीकृत हरित वित्त मानदंडों की कमी विकास में बाधा डालती है।
  • सीमित निजी निवेश: अफ्रीका में जलवायु वित्त का केवल 18% ही निजी स्रोतों से आता है, जो कुछ ही देशों तक सीमित है।
  • वित्तपोषण असंतुलन: अधिकांश धनराशि शमन कार्यों में खर्च होती है; केवल ~7% ही अनुकूलन परियोजनाओं को सहायता प्रदान करती है, जिनका वित्तपोषण अनिश्चित रिटर्न के कारण कठिन होता है।

Learning Corner:

बांड और उनके प्रकार

बांड क्या है?

बॉन्ड एक निश्चित आय वाला वित्तीय साधन है जो निवेशक द्वारा उधारकर्ता (आमतौर पर सरकार या निगम) को दिया गया ऋण दर्शाता है। इसमें जारीकर्ता एक निर्दिष्ट परिपक्वता तिथि पर मूलधन वापस करने के साथ-साथ आवधिक ब्याज भुगतान (जिसे कूपन भुगतान कहा जाता है) का वादा करता है।

प्रमुख विशेषताऐं:

  • जारीकर्ता: सरकार, निगम या वित्तीय संस्थान
  • अंकित मूल्य: परिपक्वता पर वापस भुगतान की गई राशि
  • कूपन दर: बांडधारकों को दिया जाने वाला ब्याज
  • परिपक्वता: वह तिथि जब मूलधन चुकाया जाता है
  • प्रतिफल/ यील्ड : खरीद मूल्य और ब्याज पर आधारित रिटर्न

बांड के प्रकार:

सरकारी बांड (Government Bonds)

  • सार्वजनिक व्यय के वित्तपोषण के लिए राष्ट्रीय सरकारों द्वारा जारी किया गया।
  • भारत में: जी-सेक (सरकारी प्रतिभूतियाँ)
  • आम तौर पर कम जोखिम और निश्चित रिटर्न प्रदान करते हैं।

कॉरपोरेट बॉन्ड (Corporate Bonds)

  • व्यवसाय विस्तार या परिचालन के लिए पूंजी जुटाने हेतु कंपनियों द्वारा जारी किया गया।
  • सरकारी बांड की तुलना में अधिक जोखिम लेकिन अधिक रिटर्न मिल सकता है

म्यूनिसिपल बांड (Municipal Bonds)

  • स्थानीय या क्षेत्रीय सरकारों द्वारा बुनियादी ढांचा परियोजनाओं (सड़कें, स्कूल) को वित्तपोषित करने के लिए जारी किया गया।
  • निवेशकों को कर लाभ प्रदान किया जा सकता है।

ग्रीन बांड (Green Bonds)

  • पर्यावरणीय दृष्टि से सतत परियोजनाओं (नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु अनुकूलन) को वित्तपोषित करने के लिए उपयोग किया जाता है ।
  • जलवायु परिवर्तन से निपटने और सततता का समर्थन करने का लक्ष्य।

शून्य-कूपन बांड (Zero-Coupon Bonds)

  • छूट पर बेचा गया; कोई आवधिक ब्याज नहीं।
  • निवेशक को परिपक्वता पर एकमुश्त भुगतान (अंकित मूल्य) मिलता है।

मुद्रास्फीति-सूचकांकित बांड (Inflation-Indexed Bonds)

  • रिटर्न को मुद्रास्फीति के अनुसार समायोजित किया जाता है
  • निवेशकों की वास्तविक क्रय शक्ति की रक्षा करना।

परिवर्तनीय बॉन्ड (Convertible Bonds)

  • कॉर्पोरेट बांड जिन्हें निर्दिष्ट शर्तों के अधीन कंपनी इक्विटी शेयरों में परिवर्तित किया जा सकता है।

सॉवरेन बांड (Sovereign Bonds)

  • किसी देश द्वारा विदेशी मुद्रा में जारी किया गया, जो प्रायः अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों को लक्ष्य करता है।

स्रोत : THE HINDU


जीएलपी-1 रिसेप्टर (GLP-1 Receptor)

श्रेणी: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

संदर्भ: सेमाग्लूटाइड/ Semaglutide (2.4 मिलीग्राम) ने वजन घटाने में असाधारण परिणाम दिखाए हैं, जिससे 68 सप्ताह में औसतन 15-17% शरीर के वजन में कमी आई है

यह पुरानी वजन घटाने वाली दवाओं या जीवनशैली हस्तक्षेपों के परिणामों से कहीं ज़्यादा है। दीर्घकालिक अध्ययन पुष्टि करते हैं कि वजन में कमी दो साल तक बनी रहती है

यह काम किस प्रकार करता है

जीएलपी-1 दवाएँ एक प्राकृतिक हार्मोन की नकल करती हैं जो भूख और भोजन के सेवन को नियंत्रित करती हैं । वे परिपूर्णता की भावना को बढ़ाती हैं, भूख को कम करती हैं और रक्त शर्करा को प्रबंधित करने में मदद करती हैं, जिससे रोगियों के लिए कैलोरी-प्रतिबंधित आहार का पालन करना आसान हो जाता है।

सुरक्षा और सहनशीलता

आम तौर पर अच्छी तरह से सहन की जाने वाली ये दवाएँ ज़्यादातर हल्के जठरांत्र संबंधी लक्षण जैसे मतली या दस्त का कारण बनती हैं । गंभीर दुष्प्रभाव दुर्लभ हैं, जो उन्हें दीर्घकालिक उपयोग के लिए उपयुक्त बनाता है

स्वास्थ्य पर प्रभाव

वजन घटाने के अलावा, सेमाग्लूटाइड रक्तचाप को कम करके, लिपिड प्रोफाइल में सुधार करके, तथा मधुमेह और हृदय रोग के जोखिम को कम करके कार्डियोमेटाबोलिक स्वास्थ्य में सुधार करता है।

Learning Corner:

जीएलपी-1 रिसेप्टर्स (GLP-1 Receptors)

जीएलपी-1 रिसेप्टर्स (ग्लूकागन-लाइक पेप्टाइड-1 रिसेप्टर्स) विशेष प्रोटीन रिसेप्टर्स हैं जो मुख्य रूप से अग्नाशयी बीटा कोशिकाओं (pancreatic beta cells) पर पाए जाते हैं और मस्तिष्क, हृदय, पेट और आंतों में भी देखे गए हैं। वे शरीर की प्राकृतिक ग्लूकोज विनियमन प्रणाली का हिस्सा हैं और चयापचय और भूख नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जीएलपी-1 रिसेप्टर्स के कार्य:

  1. इंसुलिन स्राव को बढ़ाना:
    जब रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ता है, तो जीएलपी-1 रिसेप्टर्स अग्नाशयी बीटा कोशिकाओं से इंसुलिन स्राव को उत्तेजित करने में मदद करते हैं।
  2. ग्लूकागन स्राव को रोकना:
    वे ग्लूकागन नामक हार्मोन को रोकते हैं, जो रक्त शर्करा को बढ़ाता है, तथा भोजन के बाद ग्लूकोज के स्तर को कम करने में मदद करता है।
  3. धीमी गति से गैस्ट्रिक खाली होना:
    जीएलपी-1 रिसेप्टर्स पेट के खाली होने की दर को कम करते हैं, जिससे संतृप्ति की अवस्था को बढ़ावा मिलता है और भोजन का सेवन कम हो जाता है।
  4. भूख कम करना:
    मस्तिष्क में इन रिसेप्टर्स की सक्रियता भूख के संकेतों को कम करती है , जिससे वजन घटाने में सहायता मिलती है

चिकित्सीय महत्व:

  • जीएलपी-1 की नकल करने वाली दवाएं (जिन्हें जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट कहा जाता है , जैसे, सेमाग्लूटाइड, लिराग्लूटाइड) का व्यापक रूप से निम्नलिखित के उपचार में उपयोग किया जाता है:
    • टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस – इंसुलिन स्राव में सुधार और रक्त शर्करा को कम करके।
    • मोटापा – भूख को दबाकर और निरंतर वजन घटाने को बढ़ावा देकर।

स्रोत: THE INDIAN EXPRESS


(MAINS Focus)


नाटो शिखर सम्मेलन 2025 (NATO Summit) (जीएस पेपर II - अंतर्राष्ट्रीय संबंध)

परिचय (संदर्भ)

नाटो सहयोगी देश नीदरलैंड के हेग में बैठक कर निर्णय ले रहे थे जिससे नाटो और भी अधिक मजबूत तथा निष्पक्ष गठबंधन बन सके।

नाटो क्या है?

  • उत्तर अटलांटिक संधि संगठन 32 सदस्य देशों का एक सैन्य गठबंधन है, जो मुख्यतः यूरोप और उत्तरी अमेरिका में स्थित हैं।
  • नाटो का मुख्यालय ब्रुसेल्स, बेल्जियम में स्थित है।
  • नाटो लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देता है और सदस्यों को समस्याओं को सुलझाने, विश्वास का निर्माण करने और अंततः संघर्ष को रोकने के लिए रक्षा और सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर परामर्श और सहयोग करने में सक्षम बनाता है।
  • नाटो विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध है। यदि कूटनीतिक प्रयास विफल हो जाते हैं, तो उसके पास संकट-प्रबंधन अभियान चलाने के लिए सैन्य शक्ति है। ये नाटो की स्थापना संधि के सामूहिक रक्षा खंड – वाशिंगटन संधि के अनुच्छेद 5 या संयुक्त राष्ट्र के आदेश के तहत, अकेले या अन्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से किए जाते हैं।

आज नाटो के सदस्य कौन हैं?

मूल 12 देशों के अलावा, सदस्यों में ग्रीस और तुर्की (1952); पश्चिम जर्मनी (1955; बाद में जर्मनी के रूप में); स्पेन (1982); चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड (1999); बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया (2004); अल्बानिया और क्रोएशिया (2009); मोंटेनेग्रो (2017); उत्तर मैसेडोनिया (2020); फिनलैंड (2023); और स्वीडन (2024) शामिल हैं।

नाटो का गठन क्यों किया गया?

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ के प्रभाव और सैन्य उपस्थिति ने संभावित विस्तारवाद के बारे में पश्चिमी देशों में चिंताएँ बढ़ा दीं। चेकोस्लोवाकिया तख्तापलट (1948) और बर्लिन नाकाबंदी (1948-49) ने साम्यवादी प्रसार की आशंकाओं को बढ़ा दिया।
  • नाटो का गठन सोवियत आक्रमण को रोकने और अपने सदस्यों के लिए एकीकृत रक्षा प्रदान करने के लिए एक सैन्य गठबंधन के रूप में किया गया था।
  • इसलिए नाटो का गठन हुआ:
  • सोवियत संघ के विरुद्ध सामूहिक सुरक्षा प्रदान करना।
  • यह सुनिश्चित करना कि एक सदस्य के विरुद्ध हमला सभी के विरुद्ध हमला माना जाए (अनुच्छेद 5)।
  • पश्चिमी देशों के बीच राजनीतिक एकजुटता और सैन्य सहयोग को बढ़ावा देना।

नाटो का वित्तपोषण तंत्र

नाटो का वित्तपोषण दो मुख्य स्रोतों से होता है:

  1. राष्ट्रीय (अप्रत्यक्ष) योगदान
    • ये नाटो वित्तपोषण का सबसे बड़ा हिस्सा हैं।
    • प्रत्येक सदस्य देश अपने स्वयं के सैन्य बल और क्षमताएं रखता है, जिन्हें नाटो को उसकी रक्षा गतिविधियों और संचालनों के लिए प्रदान किया जा सकता है।
  2. प्रत्यक्ष (सामान्य) योगदान
    • इसका उपयोग उन गतिविधियों के लिए किया जाता है जिनसे सभी सदस्यों को लाभ होता है और जिसका वित्तपोषण अकेले एक देश द्वारा नहीं किया जा सकता है, जैसे संयुक्त अभियान, वायु रक्षा और कमांड सिस्टम।
    • प्रत्येक देश की सकल राष्ट्रीय आय से संबंधित सहमत लागत-साझाकरण फार्मूले के आधार पर वित्त पोषित, जो भार-साझाकरण को दर्शाता है

सामान्य वित्तपोषण के प्रमुख घटक

  • नागरिक बजट – नाटो मुख्यालय को वित्तपोषित करता है।
  • सैन्य बजट – नाटो कमांड संरचना को वित्तपोषित करता है।
  • नाटो सुरक्षा निवेश कार्यक्रम – सैन्य बुनियादी ढांचे और क्षमताओं को वित्तपोषित करता है।

उत्तरी अटलांटिक परिषद, संसाधन नीति एवं योजना बोर्ड, बजट समिति और निवेश समिति जैसे निकायों द्वारा समर्थित वित्तपोषण की देखरेख करती है, जिससे प्रभावी योजना और व्यय सुनिश्चित होता है।

शीत युद्ध के बाद नाटो की प्रासंगिकता

  • नाटो अपने सदस्यों को विभिन्न बाहरी खतरों से बचाता है, जिनमें चीन द्वारा उत्पन्न सामरिक और वैचारिक चुनौतियाँ भी शामिल हैं।
  • मध्य और पूर्वी यूरोप को स्थिर करने तथा पूर्व सोवियत ब्लॉक के भीतर स्थिरता को बढ़ावा देने में भूमिका निभाई।
  • सदस्य देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता को कम करके पश्चिमी यूरोप को स्थिर किया, तथा इसकी निरंतर प्रासंगिकता सुनिश्चित की।

नाटो शिखर सम्मेलन 2025 में प्रमुख निर्णय

मुख्य निर्णय 1: नाटो का 5% रक्षा व्यय लक्ष्य

  • नाटो सहयोगी 5% सकल घरेलू उत्पाद रक्षा व्यय लक्ष्य पर सहमत हुए

  • 5% लक्ष्य का विवरण
  1. 3.5% : मुख्य रक्षा व्यय और हथियारों के लिए
  2. 1.5% : रक्षा -संबंधी व्यय के लिए , जिसमें शामिल हैं:
    • महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा
    • साइबर सुरक्षा और नेटवर्क
    • नागरिक तैयारी और लचीलापन
    • रक्षा नवाचार और औद्योगिक आधार को मजबूत बनाना।
  3. अब वे यूक्रेन को आपूर्ति किए जाने वाले हथियारों और गोलाबारूद को भी समीकरण में शामिल कर सकेंगे, जिससे नए लक्ष्य तक पहुंचना थोड़ा आसान हो जाएगा, लेकिन कनाडा और आर्थिक संकट से जूझ रहे कई यूरोपीय देशों के लिए यह अभी भी कठिन होगा।
  4. अगले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद, 2029 में प्रगति की समीक्षा की जाएगी।
  5. सभी लोग इसके पक्ष में नहीं हैं। स्पेन ने आधिकारिक तौर पर समझौते से इनकार कर दिया है। स्लोवाकिया को इस पर संदेह है। बेल्जियम, फ्रांस और इटली को नया लक्ष्य हासिल करने में संघर्ष करना पड़ेगा।

मुख्य निर्णय 2: अनुच्छेद 5: सामूहिक रक्षा खंड

  • अनुच्छेद 5 में कहा गया है कि एक सदस्य पर हमला सभी पर हमला है। सुरक्षा बहाल करने के लिए सदस्य “आवश्यक समझे जाने वाली कार्रवाई करते हैं, जिसमें सशस्त्र बल भी शामिल है”।
  • एक सबके लिए, सब एक के लिए (One for All, All for One)” सिद्धांत ने नाटो की एकता को मजबूत किया है और इसकी सदस्यता का विस्तार किया है।
  • नेताओं ने नाटो के सामूहिक रक्षा खंड, अनुच्छेद 5 के प्रति अपनी “दृढ़ प्रतिबद्धता” की पुनः पुष्टि की।

मुख्य निर्णय 3: यूक्रेन से ध्यान हटाना

  • 2022 से नाटो शिखर सम्मेलनों ने रूस के खिलाफ यूक्रेन का समर्थन किया है। यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को 2024 में नाटो सदस्यता के “अपरिवर्तनीय” होने का आश्वासन मिला है।
  • ट्रम्प के अधीन नीतिगत परिवर्तन
    • ट्रम्प प्रशासन (2025) ने यूक्रेन को दी जाने वाली अमेरिकी सैन्य सहायता को रद्द कर दिया।
    • आलोचना में ज़ेलेंस्की को “कृतघ्न (ungrateful)” कहा।
    • अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान यूक्रेन की नाटो सदस्यता को खारिज कर दिया।
  • हालिया शिखर सम्मेलन के परिणाम
    • यूक्रेन मुद्दा दरकिनार कर दिया गया।
    • घोषणापत्र में रूस को प्रत्यक्ष निंदा के बिना “यूरो-अटलांटिक सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक खतरा” बताया गया।

निष्कर्ष

सोवियत संघ को रोकने पर केंद्रित शीत युद्ध के सैन्य गठबंधन से विकसित होकर साइबर हमलों, आतंकवाद और चीन जैसी उभरती वैश्विक शक्तियों सहित विविध खतरों से निपटने वाला एक व्यापक सुरक्षा संगठन बन गया है। हालाँकि, असमान भार-साझाकरण, भू-राजनीतिक तनाव और अमेरिकी विदेश नीति प्राथमिकताओं में बदलाव जैसी चुनौतियाँ वैश्विक और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में नाटो की अनुकूलनशीलता और प्रासंगिकता का परीक्षण करना जारी रखती हैं।

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न

“अनुच्छेद 5 नाटो के अस्तित्व की आधारशिला है।” वर्तमान भू-राजनीतिक संदर्भ में इसके महत्व का विश्लेषण करें । (250 शब्द, 15 अंक)


एससीओ शिखर सम्मेलन 2025 (SCO Summit 2025) (जीएस पेपर II - अंतर्राष्ट्रीय संबंध)

परिचय (संदर्भ)

भारत ने चीन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है क्योंकि इसमें आतंकवाद पर देश की चिंताओं को नहीं दर्शाया गया है। इसलिए, एससीओ और इसकी प्रासंगिकता के बारे में चर्चा की जा रही है।

एससीओ क्या है?

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना यूरेशिया में राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई है । इसे अक्सर यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा गठबंधन के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसका उद्देश्य आपसी विश्वास का निर्माण करना, आतंकवाद से लड़ना और सदस्य देशों के बीच संपर्क बढ़ाना है।

सदस्य राष्ट्र

एससीओ 10 देशों का समूह है, जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान और बेलारूस शामिल हैं। एससीओ की जड़ें 1996 में गठित “शंघाई फाइव” में निहित हैं, जिसमें चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल हैं।

पर्यवेक्षक राज्य : अफगानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया।

संवाद साझेदार : इसमें तुर्की, श्रीलंका, नेपाल जैसे देश शामिल हैं तथा अन्य देश एससीओ के साथ निकट सहयोग चाहते हैं।

एससीओ का गठन क्यों किया गया?

  • 1991 में यूएसएसआर के 15 स्वतंत्र देशों में विघटन के बाद, इस क्षेत्र में चरमपंथी धार्मिक समूहों और नृजातीय तनावों के सामने आने की चिंताएँ थीं। इन मुद्दों को संभालने के लिए, सुरक्षा मामलों पर सहयोग के लिए एक समूह बनाया गया था।
  • मुख्य उद्देश्य
    • आपसी विश्वास और पड़ोसी देशों के बीच आपस में संबंध को मजबूत करना।
    • क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देना।
    • आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद का मुकाबला करना।
    • आर्थिक सहयोग, सम्पर्कता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ाना।
  • एससीओ उन कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक है , जिसके मुख्य रूप से एशियाई सदस्य हैं और जो सुरक्षा मुद्दों से निपटता है । इसका क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी ढांचा (Regional Anti-Terrorist Structure -RATS) नियमित रूप से बैठकें करता है और सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है।

एससीओ की प्रासंगिकता

  • यूरेशिया में नाटो जैसे पश्चिमी गठबंधनों के प्रतिसंतुलन के रूप में कार्य करता है।
  • यह भारत, चीन और पाकिस्तान को द्विपक्षीय तनाव के बावजूद बातचीत करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
  • ये क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं को बढ़ावा देता है , जैसे चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) और भारत का अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC)
  • आतंकवाद विरोधी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए सफल “शांति मिशन” संयुक्त सैन्य अभ्यास आयोजित करना।
  • चरमपंथ पर खुफिया जानकारी के समन्वय के लिए ताशकंद में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (आरएटीएस) की स्थापना की गई ।
  • इसने व्यापार सुविधा और क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं को बढ़ावा दिया है।
  • छात्र आदान-प्रदान में वृद्धि , पर्यटन को बढ़ावा, तथा सांस्कृतिक उत्सवों से लोगों के बीच संबंध मजबूत होंगे।
  • फिनटेक और ई-कॉमर्स संबंधों को बढ़ावा देने के लिए एससीओ डिजिटल एकीकरण प्लेटफॉर्म का शुभारंभ किया।
  • जलवायु संबंधी आपदाओं में वृद्धि के जवाब में मध्य एशिया में संयुक्त आपदा प्रबंधन अभ्यास शुरू किया गया।

हालिया शिखर सम्मेलन

  • भारत ने चीन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है, क्योंकि उसमें आतंकवाद पर देश की चिंताओं को प्रतिबिंबित नहीं किया गया है।
  • हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले में पीड़ितों को उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर गोली मार दी गई थी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकी समूह लश्कर- ए- तैयबा (LeT) के प्रतिनिधि द रेजिस्टेंस फ्रंट ने हमले की जिम्मेदारी ली है। भारत आतंकवाद के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाता है।
  • जब एससीओ के मसौदा वक्तव्य में पहलगाम का उल्लेख नहीं किया गया, बल्कि बलूचिस्तान में ट्रेन अपहरण की बात की गई , तो भारत ने वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया ।

महत्व

परंपरागत रूप से, रूस और चीन का एससीओ पर प्रभुत्व रहा है । 2022 से यूक्रेन युद्ध के कारण रूस का ध्यान भटकने के साथ , चीन का प्रभाव, खासकर 2025 एससीओ अध्यक्ष के रूप में बढ़ गया है

इसके अलावा, पाकिस्तान चीन का एक प्रमुख सहयोगी बना हुआ है । बीजिंग ने पाकिस्तान को सैन्य सहायता प्रदान की है, खासकर ऑपरेशन सिंदूर के बाद । चीन अपने वैश्विक प्रभाव का इस्तेमाल पाकिस्तान को प्रतिकूल अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावों से बचाने के लिए भी करता है।

इस संदर्भ में, भारत द्वारा एससीओ मसौदा दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से इनकार करना महत्वपूर्ण है। इस वर्ष की एससीओ बैठक में कोई संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं किया गया क्योंकि भारत सहमत नहीं था

भारत ने ‘आतंकवाद पर कोई समझौता नहीं’ के अपने रुख को दोहराया तथा इस बात पर जोर दिया कि आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों के साथ सामान्य रूप से काम करना संभव नहीं है

एससीओ के समक्ष चुनौतियां

  • भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन तनाव के कारण आम सहमति निर्माण सीमित हो गया है, जैसा कि 2025 में रुके हुए एससीओ कनेक्टिविटी मास्टरप्लान में देखा गया है।
  • रूस-चीन के बढ़ते प्रभुत्व से मध्य एशिया के छोटे देशों में संप्रभुता और समान अधिकार को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
  • सामंजस्य की कमी और टैरिफ बाधाओं के कारण अंतर-एससीओ व्यापार कम बना हुआ है।
  • एससीओ के आउटरीच प्रयासों के बावजूद निरंतर सुरक्षा खतरे, मादक पदार्थों की तस्करी और शरणार्थियों की आमद की समस्या का समाधान नहीं हो पाया है।
  • CSTO, EAEU और ब्रिक्स जैसे संगठनों के साथ उद्देश्यों का दोहराव फोकस और संसाधनों को कमजोर करता है।
  • अमेरिका, यूरोपीय संघ तथा अन्य गुटों के साथ सदस्य देशों के अलग-अलग दृष्टिकोण गहन रणनीतिक सामंजस्य में बाधा डालते हैं।

निष्कर्ष

यूरेशिया में सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एससीओ एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय मंच बना हुआ है। हालाँकि, इसकी प्रभावशीलता आंतरिक प्रतिद्वंद्विता, असमान क्षमताओं और भू-राजनीतिक जटिलताओं से बाधित है। आगे बढ़ते हुए, डिजिटल गवर्नेंस, जलवायु लचीलापन और समावेशी कनेक्टिविटी जैसी नई युग की चुनौतियों का समाधान करने की इसकी क्षमता यूरेशिया के रणनीतिक भविष्य को आकार देने में इसकी प्रासंगिकता निर्धारित करेगी।

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न

“अपनी बढ़ती सदस्यता और एजेंडे के बावजूद, SCO की प्रभावशीलता सीमित बनी हुई है।” क्या आप सहमत हैं? उदाहरणों के साथ पुष्टि करें। (250 शब्द, 15 अंक)

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