IASbaba's Daily Current Affairs Analysis - हिन्दी
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(PRELIMS Focus)
श्रेणी: अंतरराष्ट्रीय संगठन
प्रसंग:
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की वार्षिक समीक्षा ने भारत के राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी को ‘C’ ग्रेड दिया है, जो दूसरी सबसे कम रेटिंग है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के बारे में
- प्रकृति:
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) 191 सदस्य देशों का संगठन है। प्रत्येक देश का IMF के कार्यकारी बोर्ड में प्रतिनिधित्व उसकी वित्तीय महत्व के अनुपात में होता है। - स्थापना:
IMF की स्थापना जुलाई 1944 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (ब्रेटन वुड्स, न्यू हैम्पशायर, USA) में की गई थी। - स्थापना का कारण:
उस सम्मेलन में शामिल 44 देशों का उद्देश्य आर्थिक सहयोग का ऐसा ढाँचा बनाना था जिससे 1930 के महान मंदी में योगदान देने वाले प्रतिस्पर्धात्मक मुद्रा अवमूल्यन की पुनरावृत्ति न हो।
मुख्य उद्देश्य
- वैश्विक मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देना
- वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुगम बनाना
- उच्च रोजगार और सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देना
- गरीबी कम करना और व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना
- विनिमय दर स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देना
शासन संरचना
- बोर्ड ऑफ गवर्नर्स:
प्रत्येक सदस्य राष्ट्र के दो गवर्नर होते हैं — एक गवर्नर और एक वैकल्पिक गवर्नर।
- मंत्रिस्तरीय समितियाँ:
बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को दो समितियों द्वारा सलाह दी जाती है—
- अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक व वित्त समिति (IMFC)
- विकास समिति
- कार्यकारी बोर्ड:
24 सदस्यीय बोर्ड, जिसे बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा चुना जाता है।
- प्रबंधन:
IMF का मैनेजिंग डायरेक्टर — कार्यकारी बोर्ड का चेयरमैन और IMF स्टाफ का प्रमुख होता है। नियुक्ति मतदान या सर्वसम्मति से होती है।
सदस्यता
UN का सदस्य होना आवश्यक नहीं है। IMF की सदस्यता IBRD की सदस्यता के लिए अनिवार्य है।
कोटा प्रणाली (Quota System)
IMF में शामिल होते समय प्रत्येक देश को अपनी आर्थिक क्षमता के आधार पर एक quota subscription देना होता है।
मतदान शक्ति सीधे कोटा से जुड़ी होती है।
SDR का उपयोग
- विशेष आहरण अधिकार (SDR) IMF की अकाउंट यूनिट है — मुद्रा नहीं।
- SDR का मूल्य पाँच मुद्राओं की टोकरी से तय होता है: USD, यूरो, जापानी येन, पाउंड स्टर्लिंग, चीनी रेनमिन्बी।
क्षमता विकास
IMF केंद्रीय बैंकों, वित्त मंत्रालयों और कर विभागों को तकनीकी सहायता व प्रशिक्षण उपलब्ध कराता है।
स्रोत: द हिंदू
श्रेणी: रक्षा और सुरक्षा
प्रसंग:
हाल ही में भारतीय नौसेना ने मुंबई के नेवल डॉकयार्ड में आयोजित समारोह में INS माहे को कमीशन किया है।

INS Mahé के बारे में
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- प्रकृति:
यह भारतीय नौसेना के आठ एंटी-सबमरीन वॉरफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट (ASW-SWC) में पहला है। - निर्माण:
यह कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) द्वारा स्वदेशी रूप से डिजाइन व निर्मित है। - नामकरण:
जहाज का नाम मालाबार तट के ऐतिहासिक तटीय शहर “माहे” से लिया गया है। यह शहर अपनी समुद्री विरासत और शांत मुहाने के लिए प्रसिद्ध है, जो जहाज की सुंदरता और शक्ति के संतुलन को दर्शाता है। - मास्कॉट:
चीता — गति और एकाग्रता का प्रतीक। - मोटो:
“Silent Hunters” — जहाज की गोपनीयता, सतर्कता और अटल तत्परता को दर्शाता है। - क्षमताएँ:
- पानी के भीतर निगरानी
- खोज और बचाव अभियान
- लो-इंटेंसिटी मेरिटाइम ऑपरेशन (LIMO)
- जटिल माइन्स बिछाने के कार्य
- विशिष्टता:
78-मीटर लंबा यह पोत डीज़ल इंजन–वॉटरजेट प्रणोदन प्रणाली पर आधारित भारत का सबसे बड़ा युद्धपोत है।
यह प्रणाली उच्च गतिशीलता और कम ध्वनि हस्ताक्षर देती है—शैलो वाटर में पनडुब्बी-रोधी अभियानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण।
- प्रकृति:
- आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम:
80% से अधिक स्वदेशी सामग्री।
- कलारिपयट्टु की भावना:
इसके क्रेस्ट पर उरुमि (लचीली तलवार) दर्शाई गई है।
- डिज़ाइन:
संक्षिप्त डिज़ाइन और उच्च गतिशीलता इसे उथले पानी में संचालन के लिए उपयुक्त बनाती है।
यह RBU-6000 रॉकेट लॉन्चर और हल्के टॉरपीडो लॉन्चर्स से सुसज्जित है।
स्रोत: PIB
श्रेणी: सरकारी योजनाएँ
प्रसंग:
हाल ही में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री ने कहा कि यह कार्यक्रम वैज्ञानिक-उद्यमियों की नई पीढ़ी तैयार कर रहा है।

EIR कार्यक्रम के बारे में
- प्रकृति:
यह NIDHI (National Initiative for Developing and Harnessing Innovations) के तहत शुरू कार्यक्रमों में से एक है। - उद्देश्य:
स्नातक छात्रों को उद्यमिता अपनाने के प्रति प्रोत्साहित करना, जो उन्हें वित्तीय व गैर-वित्तीय सहायता प्रदान करके है। - क्रियान्वयन:
भारत सरकार का विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग + NCL Venture Centre, पुणे। - वित्तीय सहायता:
- प्रति माह ₹30,000 तक — अधिकतम 12 महीने की अवधि।
- मेंटरशिप:
तकनीकी व वित्तीय सलाह, मार्गदर्शन, उद्योग से जुड़ाव। - लैब से बाज़ार तक:
- वैज्ञानिक नवाचारों को बाजार-उपयुक्त समाधान बनाने में सहायता।
- वैज्ञानिक-उद्यमियों को बढ़ावा:
- अनुसंधानकर्ताओं को नवाचार, पेटेंट और व्यावसायीकरण के लिए प्रोत्साहित करता है।
- जोखिम कम करता है:
- टेक-आधारित स्टार्टअप के जोखिमों को कम करके स्टार्टअप इकोसिस्टम को मज़बूत बनाता है।
स्रोत: PIB
श्रेणी: विज्ञान और प्रौद्योगिकी
प्रसंग:
IAU ने मंगल ग्रह पर 3.5 अरब वर्ष पुराने क्रेटर का नाम भारतीय भूविज्ञानी एम. एस. कृष्णन के नाम पर रखा है।

IAU के बारे में
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- प्रकृति:
PhD स्तर के पेशेवर खगोलविदों का वैश्विक संगठन। - स्थापना:
1919 — अंतरराष्ट्रीय खगोलीय गतिविधियों को नियंत्रित करने वाली शीर्ष संस्था। - उद्देश्य:
खगोल विज्ञान को प्रोत्साहित करना व सुरक्षित रखना — अनुसंधान, शिक्षा, संचार, विकास।
- प्रकृति:
- प्रमुख गतिविधियाँ
खगोल संबंधी मूलभूत स्थिरांक और स्पष्ट नामकरण तय करना
नई खोजों का त्वरित प्रसार
अंतरराष्ट्रीय वेध अभियान
भविष्य की बड़ी खगोलीय सुविधाओं पर चर्चा
- विशिष्टता:
खगोलीय पिंडों के नामकरण हेतु मान्यता प्राप्त एकमात्र संगठन। - मुख्यालय: पेरिस, फ्रांस।
सदस्यता: 92 देश (85 राष्ट्रीय सदस्य)।
- शासन:
हर तीन वर्ष में जनरल असेंबली — दीर्घकालिक नीति तय करती है।
स्रोत: द हिंदू
श्रेणी: विविध
प्रसंग:
ग्लास्गो में कॉमनवेल्थ स्पोर्ट्स जनरल असेंबली ने 2030 के शताब्दी संस्करण की मेजबानी के लिए अहमदाबाद को औपचारिक रूप से चुना।

कॉमनवेल्थ गेम्स के बारे में
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- प्रकृति:
विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मल्टी-स्पोर्ट्स आयोजन (ओलंपिक के बाद), 71 देशों/क्षेत्रों के खिलाड़ियों को साथ लाता है।
- प्रकृति:
- पहला संस्करण:
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- 1930 — हैमिल्टन (कनाडा) — British Empire Games
- नामकरण:
1954 — British Empire and Commonwealth Games
- 1978 से — Commonwealth Games
- शासन:
Commonwealth Games Federation (CGF)। - आवृत्ति:
हर 4 वर्ष — “Friendly Games” के नाम से भी जाना जाता है। - भूमिका:
खेल, शिक्षा, संस्कृति और भाषाई विविधता को बढ़ावा देना।
कॉमनवेल्थ राष्ट्र
प्रकृति:
पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों का स्वैच्छिक समूह — विकास, लोकतंत्र व शांति के उद्देश्य।
ऐतिहासिक उत्पत्ति:
- Imperial Conference (1926): ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर समान दर्जा
- London Declaration (1949): आधुनिक कॉमनवेल्थ की स्थापना, गणराज्यों को सदस्यता की अनुमति
सदस्यता:
56 स्वतंत्र राष्ट्र — स्वैच्छिक।
शासन:
Commonwealth Charter द्वारा निर्देशित — सचिवालय: लंदन।
भारत और कॉमनवेल्थ:
- जनसंख्या के आधार पर सबसे बड़ा सदस्य
- चौथा सबसे बड़ा वित्तीय योगदानकर्ता
- भारत ने 1983 सम्मलेन और 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स (दिल्ली) की मेजबानी की
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
(MAINS Focus)
(UPSC GS पेपर III – “समावेशी विकास; रोजगार; श्रम सुधार”)
प्रसंग (भूमिका)
21 नवंबर 2025 से चार श्रम संहिताओं के लागू होने के साथ, भारत ने GST के बाद अपने सबसे महत्वपूर्ण संरचनात्मक सुधारों में से एक की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य श्रम विनियमन का आधुनिकीकरण करना, सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करना, रोजगार का औपचारिककरण बढ़ाना और एक प्रतिस्पर्धी, भविष्य-उन्मुख श्रम परिवेश बनाना है।
मुख्य तर्क
- ऐतिहासिक समेकन
चारों संहिताएँ दशकों से बिखरे विभिन्न श्रम कानूनों को एकीकृत कर चार विधायी ढाँचों में बदलती हैं, जैसा कि द्वितीय राष्ट्रीय श्रम आयोग ने अनुशंसित किया था। इससे स्पष्टता और सरलता बढ़ती है।
- जनसांख्यिकीय लाभ
भारत के 643 मिलियन श्रमिकों और भविष्य के वैश्विक कार्यबल का दो-तिहाई हिस्सा भारत से होने के अनुमान को देखते हुए, सरल श्रम ढाँचा जनसांख्यिकीय लाभ का उपयोग करने के लिए आवश्यक है।
- श्रमिक सुरक्षा
सार्वभौमिक न्यूनतम वेतन, राष्ट्रीय फ्लोर वेज, 48 घंटे का कार्य सप्ताह, अनिवार्य नियुक्ति पत्र और मजबूत OSH मानक जैसी व्यवस्थाएँ न्यायसंगत और सुरक्षित कार्य परिस्थितियाँ सुनिश्चित करती हैं।
- विस्तारित सामाजिक सुरक्षा
सामाजिक सुरक्षा संहिता ESIC का कवरेज पूरे देश में बढ़ाती है, EPFO प्रक्रियाओं को मजबूत करती है, राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा कोष बनाती है तथा निर्माण श्रमिकों को शामिल करती है।
- अनुपालन में सरलता
सिंगल रजिस्ट्रेशन, लाइसेंस और रिटर्न, डिजिटल निरीक्षण और अपराध-मुक्तिकरण MSME क्षेत्र को विशेष रूप से लाभान्वित करते हुए अनुपालन बोझ को कम करते हैं।
चुनौतियाँ / आलोचनाएँ
- क्रियान्वयन अंतराल
राज्यों द्वारा नियमों को केंद्र के अनुरूप न लाने पर असमान कार्यान्वयन की संभावना है।
- असंगठित क्षेत्र का कवरेज
90% असंगठित कार्यबल को सुरक्षा प्रदान करना अभी भी कठिन है।
- गिग वर्करों का एकीकरण
2030 तक 2.35 करोड़ गिग और प्लेटफ़ॉर्म वर्करों के लिए सामाजिक सुरक्षा लागू करने हेतु प्रशासनिक तैयारी और वित्तीय मॉडल आवश्यक हैं।
- औद्योगिक संबंध संबंधी चिंताएँ
उद्योग को लचीलापन मिलने से यूनियनों में सामूहिक सौदेबाजी के कमजोर होने और छंटनी/बंद करने की बढ़ी हुई सीमाओं को लेकर आशंका है।
- जागरूकता की कमी
नियमों की जानकारी न होने से श्रमिकों और छोटे उद्यमों द्वारा अधिकारों और प्रावधानों का लाभ नहीं लिया जा सकता।
आगे की राह (Way Forward)
- राज्य–केंद्र समन्वय: सभी राज्यों में परिभाषाओं, मानकों और शिकायत निवारण तंत्र में समरूपता सुनिश्चित करना।
- डिजिटल क्रियान्वयन: ESI, EPF, गिग-वर्कर रजिस्ट्रेशन और अनुपालन के लिए मजबूत डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म बनाना।
- औपचारिककरण को बढ़ावा: MSMEs को क्रेडिट लाभ, सरल टैक्स और जागरूकता कार्यक्रम देकर औपचारिक बनाने को प्रोत्साहित करना।
- लैंगिक समावेशन: सुरक्षित परिवहन, नाइट-शिफ्ट सुरक्षा, चाइल्डकेयर सहायता और समान वेतन सुनिश्चित करना, जिससे महिलाओं की LFPR 32.8% से आगे बढ़े।
- निरंतर सामाजिक संवाद: उद्योग–श्रम–सरकार के बीच नियमित संवाद बनाए रखना।
निष्कर्ष
चार श्रम संहिताएँ भारत को एक सरल, सुरक्षित और निवेश-अनुकूल श्रम प्रणाली की ओर ले जाती हैं। इसकी सफलता राज्यों के समन्वय, डिजिटल क्षमता और निरंतर सुधार पर निर्भर करेगी।
मुख्य परीक्षा प्रश्न
प्र. चार श्रम संहिताएँ एक सरल, आधुनिक श्रम ढाँचे की ओर बड़े परिवर्तन का संकेत देती हैं। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)
Source: The Hindu
(UPSC GS पेपर II – “अंतर्राष्ट्रीय संगठन; वैश्विक शासन; भारत और प्रमुख शक्तियाँ”)
प्रसंग
2025 जोहान्सबर्ग G20 शिखर सम्मेलन में अमेरिका, चीन और रूस की अनुपस्थिति मंच की अधिकारिकता में गिरावट को दर्शाती है। बदलते सामरिक समीकरणों और एकतरफ़ावाद ने G20 की प्रभावशीलता को कमजोर किया है।
मुख्य तर्क
- महाशक्तियों की अनुपस्थिति
ट्रम्प, शी और पुतिन की अनुपस्थिति ने G20 को “मिडिल-पावर समूह” में बदल दिया है।
- प्लेटफ़ॉर्म की उत्पत्ति
2008 के वित्तीय संकट के दौरान उभरती अर्थव्यवस्थाओं (भारत, चीन, सऊदी अरब, इंडोनेशिया) को शामिल कर वैश्विक प्रतिक्रिया तंत्र बनाया गया था।
- संकट के बाद ठहराव
2008–09 के बाद G20 जलवायु परिवर्तन, व्यापार सुधार और सतत विकास पर सार्थक प्रगति करने में विफल रहा।
- भूराजनीतिक झटके
ट्रम्प के टैरिफ युद्धों, रूस–यूक्रेन संघर्ष और अमेरिका–चीन तनाव ने सर्वसम्मति को असंभव बना दिया।
- एकतरफ़ावादी अमेरिकी रुख
चीन के साथ G-20 को ट्रंप के G2 बनाने की कोशिश और रूस को G8 में वापस लाने की मांग ने G20 की भूमिका कमजोर की है।
चुनौतियाँ / आलोचनाएँ
- वैधता का क्षरण: महाशक्तियों के बिना फैसलों का वैश्विक प्रभाव कम।
- मिडिल-पावर सीमाएँ: प्रमुख आर्थिक अभिकर्ताओं की अनुपस्थिति प्रभाव को सीमित करती है।
- मुख्य मुद्दों पर असफलता: जलवायु वित्त, व्यापार व्यवधान, प्रवासन—सभी पर निष्क्रियता।
- खंडित वैश्विक व्यवस्था: G2, G8, BRICS+ जैसे मंच प्रतिस्पर्धी बन रहे हैं।
- भारत की दुविधा: G20 को “UN आर्थिक सुरक्षा परिषद” का विकल्प मानने की भारत की रणनीति कमजोर पड़ती है।
आगे की राह (Way Forward)
- महाशक्तियों की पुनः भागीदारी
- क्रियात्मक एजेंडा तय करना
- संस्थागत विश्वसनीयता बढ़ाना
- वैकल्पिक मंचों पर जोर – जैसे East Asia Summit
- वैश्विक संस्थाओं में सुधार – UNSC और IMF में व्यापक प्रतिनिधित्व
निष्कर्ष
यदि G20 को विश्व की प्रमुख आर्थिक समन्वय समिति की भूमिका बनाए रखनी है, तो महाशक्तियों की भागीदारी और स्पष्ट एजेंडा अनिवार्य है। अन्यथा यह केवल एक औपचारिक समूह बनकर रह जाएगा।
मुख्य परीक्षा प्रश्न
प्र. “महाशक्तियों की अनुपस्थिति में G20 एक मिडिल-पावर मंच बनता जा रहा है।” परीक्षण कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)
Source: Indian Express










