IASbaba's Daily Current Affairs Analysis - हिन्दी
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(PRELIMS Focus)
श्रेणी: अंतर्राष्ट्रीय संगठन
प्रसंग:
यूक्रेन के विदेश मंत्री ने हाल ही में यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (OSCE) की बैठक में कहा कि वह “वास्तविक शांति, तुष्टीकरण नहीं” चाहता है।
OSCE के बारे में:
- स्वरूप: यह एक गतिशील संगठन है जो पूरे यूरोप और मध्य एशिया में शांति, स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।
- उद्देश्य: यह साझा मूल्यों पर राजनीतिक संवाद के माध्यम से और व्यावहारिक कार्यों के माध्यम से, जो स्थायी अंतर लाते हैं, स्थिरता, शांति और लोकतंत्र पर काम करता है।
- उद्गम: इसका उद्गम 1970 के दशक की शुरुआत से है—हेलसिंकी अंतिम अधिनियम (1975) और सुरक्षा एवं सहयोग पर सम्मेलन (CSCE) की स्थापना से, जिसने शीत युद्ध के दौरान पूर्व और पश्चिम के बीच संवाद और वार्ताओं के लिए एक प्रमुख बहुपक्षीय मंच के रूप में कार्य किया।
- नाम परिवर्तन: 1994 में CSCE का नाम बदलकर Organization for Security and Co-operation in Europe (OSCE) रखा गया, ताकि उसके स्वरूप को अधिक सटीक रूप से दर्शाया जा सके।
- मुख्यालय: इसका मुख्यालय वियना में स्थित है।
- विशिष्टता: यह विश्व का सबसे बड़ा क्षेत्रीय सुरक्षा संगठन है।
- सदस्य देश: इसमें उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के 57 सदस्य देश शामिल हैं। (भारत इसका सदस्य नहीं है)
- शासन: इसके चार निर्णय लेने वाले निकाय हैं, जिनके अलग-अलग अधिकार क्षेत्र हैं:
- शिखर सम्मेलन: OSCE का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय
- मंत्रिस्तरीय परिषदें: केंद्रीय निर्णय लेने और शासकीय निकाय
- स्थायी परिषद: संगठन के दैनिक कार्यों के लिए जिम्मेदार
- सुरक्षा सहयोग मंच: सुरक्षा के राजनीतिक-सैन्य आयाम से संबंधित
नेतृत्व: इसमें चेयरपर्सन-इन-ऑफिस, महासचिव तथा इसके संस्थानों और फील्ड ऑपरेशनों के प्रमुख शामिल हैं।
स्रोत: Reuters
श्रेणी: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
प्रसंग:
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (IIA) ने भारत के पहले अन्तरिक्ष-आधारित अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (UVIT) के 10 वर्ष पूरे होने का उत्सव मनाया, जो AstroSat का मुख्य पेलोड है।
AstroSat के बारे में:
- स्वरूप: यह भारत का पहला समर्पित खगोल विज्ञान मिशन है, जो एक्स-रे, ऑप्टिकल और UV स्पेक्ट्रल बैंड में खगोलीय स्रोतों का एक साथ अध्ययन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- उद्देश्य: विभिन्न खगोलीय पिंडों का एक ही उपग्रह से बहु-तरंगदैर्ध्य अवलोकन संभव बनाना।
- सहयोग: यह ISRO और भारत की प्रमुख अनुसंधान संस्थाओं के साथ—कनाडा और UK के अंतरराष्ट्रीय साझेदारों का संयुक्त प्रोजेक्ट है।
- पेलोड: UVIT, LAXPC, CZTI, SXT और SSM शामिल हैं।
- स्पेक्ट्रम: UV (Near और Far), सीमित ऑप्टिकल तथा X-रे (0.3 keV–100 keV) श्रेणी को कवर करता है।
- प्रबंधन: संपूर्ण मिशन का नियंत्रण ISRO के ISTRAC, बेंगलुरु में MOX से किया जाता है।
AstroSat के प्रमुख कार्य:
- न्यूट्रॉन तारों और ब्लैक होल वाले बाइनरी तारा तंत्रों में उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं को समझना
- न्यूट्रॉन तारों के चुंबकीय क्षेत्रों का अनुमान लगाना
- तारों के जन्म क्षेत्रों और हमारी आकाशगंगा से परे उच्च ऊर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन
- आकाश में नए अल्प-अवधि के चमकीले X-रे स्रोतों का पता लगाना
- UV क्षेत्र में सीमित गहराई का सर्वेक्षण
स्रोत: ETV Bharat
श्रेणी: रक्षा और सुरक्षा
प्रसंग:
संयुक्त सैन्य अभ्यास “हरिमाऊ शक्ति-2025” का पाँचवाँ संस्करण राजस्थान के महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में शुरू हुआ।
इसके बारे में:
- संबंधित देश: भारत और मलेशिया के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास।
- उद्देश्य: संयुक्त रूप से संयुक्त राष्ट्र जनादेश के अध्याय VII के अंतर्गत उप-पारंपरिक अभियानों का अभ्यास करना।
- उद्गम: 2012 में प्रारंभ, यह भारत की एक्ट ईस्ट नीति और वैश्विक शांति स्थापना ढाँचों के प्रति प्रतिबद्धता को मजबूत करता है।
- महत्त्व: दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करता है।
- भारतीय दल: डोगरा रेजिमेंट के सैनिक प्रमुख रूप से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
भारत-मलेशिया के अन्य सैन्य अभ्यास:
- समुद्र लक्षमण (नौसेना)
- उदार शक्ति (वायुसेना)
हरिमाऊ शक्ति 2025 के मुख्य तथ्य:
- दोनों सेनाएँ हेलिपैड सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी अभियानों में घायल सैनिकों की निकासी का अभ्यास करेंगी।
- कॉर्डन, सर्च-एंड-डिस्ट्रॉय मिशन, हेलिबोर्न ऑपरेशन जैसे सामरिक अभ्यास।
- व्यापक युद्धक कौशलों पर संयुक्त प्रशिक्षण और सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं का आदान-प्रदान।
- रक्षा सहयोग को और बढ़ाएगा।
स्रोत: PIB
श्रेणी: अर्थव्यवस्था
प्रसंग:
हाल ही में NHAI को Raajmarg Infra Investment Trust को InvIT के रूप में पंजीकरण के लिए SEBI की सैद्धांतिक स्वीकृति मिली।
InvIT क्या है:
- स्वरूप: यह एक सामूहिक निवेश योजना (CIS) है, जो म्यूचुअल फंड की तरह कार्य करती है और निवेशकों को इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में निवेश का अवसर देती है।
- उद्देश्य: उन इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश अवसरों तक छोटे/रिटेल निवेशकों की पहुँच बढ़ाना, जो पहले केवल बड़े संस्थागत निवेशकों को उपलब्ध थे।
- विनियमन: SEBI (Infrastructure Investment Trusts) Regulations, 2014 के अंतर्गत।
- म्यूचुअल फंड जैसा मॉडल: छोटे निवेशकों से पूंजी एकत्र कर नकदी प्रवाह उत्पन्न करने वाली संपत्तियों में निवेश।
इस नकदी प्रवाह का कुछ हिस्सा लाभांश के रूप में निवेशकों को मिलता है। - न्यूनतम निवेश: एक InvIT IPO में न्यूनतम निवेश ₹10 लाख — इसलिए HNI, संस्थागत व बड़े निवेशकों के लिए उपयुक्त।
- स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडेबल: IPO के बाद एक्सचेंज पर सूचीबद्ध। उदाहरण: IRB InvIT Fund, India Grid Trust।
जुड़ी 4 प्रमुख संस्थाएँ:
- ट्रस्टी
- स्पॉन्सर
- इन्वेस्टमेंट मैनेजर
- प्रोजेक्ट मैनेजर
स्पॉन्सर: इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियाँ/प्राइवेट इक्विटी फर्में—यही InvIT बनाती हैं और संपत्तियाँ ट्रस्ट को हस्तांतरित करती हैं। निवेशकों को जारी यूनिट्स उन्हीं संपत्तियों में स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करती हैं।
स्रोत: PIB
श्रेणी: पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी
प्रसंग:
राजस्थान का पहला अंतर-राज्यीय टाइगर ट्रांसलोकेशन और देश का दूसरा—एक बाघिन को पेंच टाइगर रिजर्व से रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में एयरलिफ्ट किया जाना है।
इस रिज़र्व के बारे में:
- स्थान: बूंदी जिला, राजस्थान।
- स्थापना: 20 मई 1982 को अभयारण्य घोषित; 16 मई 2022 को टाइगर रिज़र्व घोषित।
क्षेत्रफल: 1,501.89 वर्ग किमी
- कोर: 481.90 वर्ग किमी
- बफर: 1,019.98 वर्ग किमी
महत्त्व: रणथंभौर (उत्तर-पूर्व) और मुकुंदरा हिल्स (दक्षिण) के बीच एक महत्वपूर्ण टाइगर कॉरिडोर।
नदी: मेज नदी (चंबल की सहायक नदी) रिज़र्व से होकर बहती है।
स्थलाकृति: अरावली और विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं की उबड़-खाबड़ भौगोलिक संरचनाएँ, घाटियाँ और पठार।
वनस्पति: मुख्य रूप से शुष्क पर्णपाती वन।
फ्लोरा: ढोक (Anogeissus pendula) प्रमुख; अन्य—खैर, रोंज, अमलतास, गुरजन, सालेर आदि।
जीव जगत: तेंदुए और भालू प्रमुख।
अन्य: जंगल कैट, गोल्डन जैकल, लकड़बग्घा, क्रेस्टेड पोर्क्यूपाइन, इंडियन हेजहॉग, रीसस मकाक आदि।
स्रोत: The Week
(MAINS Focus)
(UPSC GS-II – “शासन, पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व”; GS-III – “प्रौद्योगिकी एवं उसका उपयोग”)
प्रसंग (भूमिका)
बायोमेट्रिक उपस्थिति, चेहरे की पहचान, जियो-टैगिंग ऐप्स और फोटो-आधारित सत्यापन जैसे डिजिटल निगरानी उपकरणों का उपयोग भ्रष्टाचार पर नियंत्रण और उत्तरदायित्व लागू करने के लिए कल्याणकारी योजनाओं में बढ़ रहा है। हालाँकि, मनरेगा, PDS, पोषण ट्रैकर और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं से मिले प्रमाण मिश्रित परिणाम और नए जोखिम दिखाते हैं।
सरकारें तकनीक-निगरानी उपकरणों की ओर क्यों बढ़ रही हैं?
- उत्तरदायित्व की कमी: लगातार अनुपस्थित रहने, सेवा वितरण में देरी और छोटे स्तर के भ्रष्टाचार के कारण सरकारें तकनीक-आधारित नियंत्रण तंत्र अपनाती हैं।
- रियल-टाइम मॉनिटरिंग का नैरेटिव: ऐप्स वास्तविक समय निगरानी का भ्रम देते हैं, जिससे राजनीतिक रूप से इन्हें अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ती है, चाहे प्रभाविता कम हो।
- केंद्रीकृत नियंत्रण: डिजिटल सिस्टम ऊपरी नौकरशाही को स्थानीय शासन को मजबूत किए बिना ही फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की निगरानी करने की सुविधा देते हैं।
- त्वरित समाधान का दबाव: जटिल प्रशासनिक समस्याओं को तकनीकी उपकरणों से हल करने योग्य “सरल मुद्दा” मान लिया जाता है, जिससे संस्थागत सुधार टल जाते हैं।
- वस्तुनिष्ठता की धारणा: अधिकारी अक्सर मान लेते हैं कि बायोमेट्रिक्स और फोटो पूरी तरह विश्वसनीय हैं, जबकि इन्हें भी आसानी से हेरफेर किया जाता है।
कल्याणकारी योजनाओं में तकनीकी समाधान की सीमाएँ एवं जोखिम
- हेरफेर जारी ही रहता है: डिजिटल उपस्थिति को अक्सर धोखा दिया जाता है (जैसे NMMS फोटो में बदलाव, ABBA का दुरुपयोग), यह बताता है कि तकनीक मानवीय मिलीभगत समाप्त नहीं करती।
- बहिष्करण का खतरा: बुजुर्ग, दिव्यांग और दूरदराज क्षेत्रों के लाभार्थियों को बायोमेट्रिक विफलता, कमजोर नेटवर्क या ऐप की खराबी के कारण लाभ से वंचित होना पड़ता है।
- कार्यकर्ता हतोत्साहित: अत्यधिक निगरानी कार्यकर्ताओं की गरिमा कम करती है और सेवा गुणवत्ता से ध्यान हटाकर ऐप पालन पर केंद्रित कर देती है।
- गोपनीयता का उल्लंघन: स्तनपान कराती महिलाओं की फोटो या घर की तस्वीरें अपलोड कराने से नैतिक मुद्दे उठते हैं और कल्याणकारी सिस्टम पर भरोसा घटता है।
- झूठा उत्तरदायित्व: ऐप उपस्थिति तो देखता है, प्रदर्शन नहीं — कर्मचारी डिजिटल रूप से उपस्थित दिख सकते हैं पर काम की गुणवत्ता खराब रहती है।
- प्रशासनिक बोझ: “100% फोटो सत्यापन” जैसे निर्देश कार्यक्रम प्रबंधन से ध्यान हटाकर डिजिटल कागजी कार्रवाई में लगा देते हैं।
- भ्रष्टाचार के नए रास्ते: अधिकारी “बायोमेट्रिक फेल” का झूठा दावा कर सकते हैं या गलतियों को ठीक करने के बदले रिश्वत मांग सकते हैं।
- एग्नोटोलाॅजी (Agnotology) की चिंता: विफलताओं की अनदेखी संकेत देती है कि नीतियों पर व्यापारी या अन्य हितधारक असर डाल रहे हैं।
लेकिन तकनीक कई सार्थक अवसर भी प्रदान करती है
- बेहतर पारदर्शिता: आंध्र प्रदेश के e-PDS जैसे डिजिटल ट्रेल समुदाय ऑडिट के साथ मिलकर लीकेज घटाते हैं; केवल बायोमेट्रिक्स पर आधारित सिस्टम यह प्रभाव नहीं दिखाते।
- रियल-टाइम डेटा: तमिलनाडु का इंटीग्रेटेड चाइल्ड न्यूट्रिशन डैशबोर्ड और राजस्थान का e-Hospital, एनालिटिक्स के माध्यम से स्टॉक-आउट और सेवा अंतर को चिन्हित करते हैं।
- मध्यस्थ कम होते हैं: केन्या की मोबाइल-मनी वेलफेयर ट्रांसफर जैसी प्रणालियाँ सरल इंटरफेस के जरिए मैनुअल हेरफेर कम करती हैं।
- लक्षित हस्तक्षेप: ब्राज़ील के बोर्सा फ़मीलिया में जियो-टैगिंग का प्रभावी उपयोग उपेक्षित क्षेत्रों की पहचान कर बेहतर तैनाती सुनिश्चित करता है।
- पूरक, प्रतिस्थापन नहीं: इंडोनेशिया के गांव शासन मॉडल से स्पष्ट है कि तकनीक सहायक है, उत्तरदायित्व का आधार स्थानीय संस्थाएँ ही हैं।
आगे की राह
- संस्थागत मजबूती: फिलीपींस के मॉडल की तरह स्थानीय निकायों और सामाजिक ऑडिट को सशक्त बनाना आवश्यक है।
- कार्यकर्ताओं में निवेश: थाईलैंड के कम्युनिटी हेल्थ वॉलंटियर्स की तरह प्रशिक्षण और सहयोगी निगरानी जिम्मेदारी बढ़ाती है।
- अंतिम-मील के बोझ कम करना: एस्टोनिया ने डिजिटाइजेशन से पहले कार्यप्रवाह सरल किए; भारत में भी अनावश्यक फोटो और कागज़ी काम कम करना होगा।
- संदर्भ-विशिष्ट तकनीक: युगांडा की mHealth परियोजनाएँ ऑफलाइन ऐप्स से सफल हुईं; भारत को कम नेटवर्क वाले क्षेत्रों के लिए यही दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
- एथिकल एवं गोपनीयता ढाँचा: EU का GDPR और केन्या का डेटा प्रोटेक्शन एक्ट दिखाते हैं कि बायोमेट्रिक व फोटो डेटा पर सीमाएँ ज़रूरी हैं।
- सहभागी तकनीक: जापान का मॉडल, जिसमें फ्रंटलाइन कार्यकर्ता ऐप डिज़ाइन में शामिल होते हैं, जवाबदेही बढ़ाता है।
निष्कर्ष
कल्याणकारी योजनाओं में तकनीकी निगरानी उत्तरदायित्व का भ्रम पैदा करती है, पर संस्थागत सुधारों के अभाव में हेरफेर के नए रूप जन्म लेते हैं। वास्तविक उत्तरदायित्व दंडात्मक नियंत्रण नहीं, बल्कि जिम्मेदारी, पेशेवर आचरण और विश्वास से आता है। तकनीक इस यात्रा को सक्षम कर सकती है — इसे संचालित नहीं कर सकती।
UPSC Mains Question
- “डिजिटल गवर्नेंस उपकरण उत्तरदायित्व का वादा करते हैं लेकिन अक्सर बहिष्करण और अनुचित निगरानी (exclusion and surveillance) पैदा करते हैं।” भारत में कल्याणकारी योजनाओं में तकनीक-आधारित मॉनिटरिंग ऐप्स की भूमिका का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द)
(UPSC GS Paper II – “अंतरराष्ट्रीय संबंध: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैशिक समूह; भारत की विदेश नीति”)
प्रसंग (भूमिका)
पश्चिम–रूस तनाव के बीच 2025 में राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा यह दिखाती है कि भारत अपनी बहु-संरेखण (multi-alignment) नीति को जारी रखना चाहता है। भारत रूस के साथ आर्थिक संबंध मजबूत करना चाहता है, लेकिन जिसे अमेरिका और यूरोप को नाराज़ किए बिना रखना चाहता है।
मुख्य बिंदु
- ऐतिहासिक गहराई: भारत–रूस रक्षा और रणनीतिक साझेदारी 25 वर्षों के वार्षिक शिखर सम्मेलनों में दिखती है। पश्चिमी प्रतिबंधों और ICC वारंट के बावजूद दोनों पक्ष राजनीतिक संदेश देते रहे हैं।
- आर्थिक पुनः-संपर्क: श्रम गतिशीलता समझौता और यूरिया संयंत्र MoU जैसी पहलें दिखाती हैं कि घटते तेल आयात के बावजूद भारत आर्थिक संबंध बनाए रखना चाहता है।
- कनेक्टिविटी दृष्टि: मैरीटाइम कॉरिडोर योजना और राष्ट्रीय मुद्रा भुगतान प्रणाली से व्यापार को प्रतिबंधों के दबाव से बचाने की कोशिश की जा रही है।
- राजनीतिक संकेत: मोदी द्वारा पुतिन को व्यक्तिगत रूप से स्वागत करना दिखाता है कि भारत पश्चिम की इच्छानुसार रूस को अलग-थलग नहीं करेगा।
- शांतिवार्ता की भूमिका: भारत यूक्रेन संघर्ष पर वार्ता आधारित समाधान की वकालत करता है, जो रूस की खुली आलोचना से बचते हुए है।
चुनौतियाँ / आलोचनाएँ
- पश्चिम की संवेदनशीलता: रक्षा, परमाणु और अंतरिक्ष से जुड़े समझौते जानबूझकर टाले गए ताकि अमेरिका–EU के साथ FTA वार्ता और टेक साझेदारी प्रभावित न हों।
- व्यापार सीमाएँ: तेल आयात न बढ़ाने के निर्णय से 100 बिलियन डॉलर व्यापार लक्ष्य को नुकसान पहुँचा है।
- प्रतिबंधों की जटिलता: अमेरिकी–यूरोपीय प्रतिबंध भुगतान तंत्र को जटिल बनाते हैं और भारतीय कंपनियों पर दंडात्मक जोखिम बढ़ाते हैं।
- रूस–चीन की निकटता: रूस की चीन पर बढ़ती निर्भरता भारत की रणनीतिक जगह कम करती है।
- डगमगाती कूटनीति की छवि: रूस और पश्चिम के बीच लगातार झूलना भारत की विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकता है।
आगे की राह
- संस्थागत बहु-संरेखण: फ्रांस की तरह रणनीतिक स्वायत्तता को नीति ढांचे में संस्थागत रूप देना।
- रक्षा स्रोतों का विविधीकरण: जापान की तरह व्यापक रक्षा साझेदारियाँ बनाना।
- ऊर्जा वास्तुकला स्थिर करना: दक्षिण कोरिया की तरह बहु-स्रोत ऊर्जा रणनीति अपनाना।
- व्यापार का पृथक्करण: तुर्की के मॉडल की तरह रूस-संबंधित व्यापार के लिए अलग नियामक रास्ते बनाना।
- सुसंगत शांतिवार्ता कूटनीति: ब्राज़ील की तरह “सिद्धांत आधारित तटस्थता” का संदेश देना।
निष्कर्ष
रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए भारत को दलीय संतुलन से आगे बढ़कर रूस और पश्चिम दोनों के साथ संरचित, सिद्धांत-आधारित, स्थिर संबंध बनाना होंगे। प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि पूर्वानुमानित और सुसंगत नीति ही भारत के दीर्घकालिक हितों की रक्षा करेगी।
UPSC Mains Question
- रूस–पश्चिम तनाव के बीच भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता कैसे बनाए रख सकता है? भारत की बहु-संरेखित विदेश नीति को आकार देने वाले अवसरों और बाधाओं का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। (250 शब्द)










