IASbaba's Daily Current Affairs Analysis - हिन्दी
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(PRELIMS Focus)
श्रेणी: राजनीति एवं शासन
प्रसंग:
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारत में प्रवेश देने के नए आदेश से असम समझौते की 1971 की समय-सीमा का उल्लंघन होता है।
असम समझौते के बारे में:
- हस्ताक्षरकर्ता: असम समझौता 15 अगस्त 1985 को भारत सरकार, असम सरकार, अखिल असम छात्र संघ (AASU) और अखिल असम गणसंघ्राम परिषद के बीच हस्ताक्षरित हुआ था।
- उद्देश्य: इस समझौते का उद्देश्य 24 मार्च 1971 के बाद राज्य की सीमा में आए सभी प्रवासियों का पता लगाना और उन्हें निर्वासित करना था।
- उपलब्धि: इसने 1979–1985 के बीच चले 6 वर्ष लंबे आंदोलन — असम आंदोलन — को समाप्त किया, जिसका उद्देश्य असम से विदेशियों को निकालना था।
- कट-ऑफ़ तिथि: विदेशियों के पता लगाने और नाम हटाने हेतु 1 जनवरी 1966 को कट-ऑफ तिथि निर्धारित किया गया। इस तिथि से पहले “निर्धारित क्षेत्र” से आए सभी व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान की गई।
- Foreigners Act, 1946 का प्रयोग: 1 जनवरी 1966 से लेकर 24 मार्च 1971 (मध्यरात्रि) तक आने वालों का पता Foreigners Act, 1946 और Foreigners Tribunal Order, 1939 के अंतर्गत लगाया जाएगा।
- मतदाता सूची से नाम हटाना: ऐसे विदेशी जिनका पता चल जाए, उनके नाम तत्कालीन मतदाता सूचियों से हटाए जाएंगे। उन्हें Registration of Foreigners Act, 1939 तथा Registration of Foreigners Rules, 1939 के अनुसार अपने-अपने जिलों के पंजीकरण अधिकारियों के समक्ष पंजीकरण कराना होगा।
- मताधिकार संबंधी प्रावधान: समझौता उनके निर्वासन की बात नहीं करता, लेकिन उन्हें विदेशी घोषित किए जाने के 10 वर्ष बाद ही मतदान का अधिकार मिलेगा। 25 मार्च 1971 के बाद आने वाले विदेशियों का पता लगाया जाएगा और कानून के अनुसार निर्यातित किया जाएगा।
- धारा 6: यह असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषाई पहचान व विरासत की सुरक्षा, संरक्षण और प्रोत्साहन हेतु संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक उपायों का आश्वासन देता है।
- महत्त्व: ये सुरक्षा उपाय राज्य की जनसांख्यिकीय एवं सांस्कृतिक संरचना को संरक्षित करने के उद्देश्य से हैं।
स्रोत:
Hindustan Times
श्रेणी: रक्षा एवं सुरक्षा
प्रसंग:
- भारत–इंडोनेशिया संयुक्त विशेष बल अभ्यास गरुड़ शक्ति के 10वें संस्करण की शुरुआत हिमाचल प्रदेश के बकलोह स्थित स्पेशल फोर्सेज ट्रेनिंग स्कूल में हुई।
अभ्यास गरुड़ शक्ति के बारे में:
- शामिल देश: भारत और इंडोनेशिया के विशेष बलों के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास।
- उद्देश्य: दोनों देशों के विशेष बलों के बीच आपसी समझ, सहयोग और इंटरऑपरेबिलिटी को मजबूत करना।
- महत्त्व: यह रक्षा सहयोग को बढ़ाता है तथा दोनों देशों के मैत्रीपूर्ण संबंधों को और गहरा करता है।
- भारतीय प्रतिनिधित्व: भारतीय दल पैरा रेजिमेंट (स्पेशल फोर्सेज) के सैनिकों द्वारा प्रतिनिधित्व करता है, जबकि इंडोनेशियाई दल इंडोनेशियाई स्पेशल फोर्सेज से है।
- परिधि: काउंटर-टेररिज़्म वातावरण में टुकड़ी स्तर की रणनीति, तकनीक, बिना हथियार लड़ाई, कॉम्बैट शूटिंग, स्नाइपिंग, हेलिबोर्न ऑपरेशन, ड्रोन/काउंटर-UAS और लोइटर-म्यूनिशन से संबंधित गतिविधियाँ शामिल हैं।
मुख्य फोकस क्षेत्र:
- हथियार, उपकरण और संचालन संबंधी तकनीकों पर विशेषज्ञता का आदान-प्रदान
- वास्तविक परिस्थितियों के समान परिदृश्य पर संयुक्त प्रशिक्षण का सत्यापन
- दोनों दलों की सहनशक्ति, समन्वय और युद्ध तत्परता की जांच
स्रोत:
- PIB
श्रेणी: पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी
प्रसंग:
मानसून में भारी वर्षा के बाद प्रवासी पक्षी — सारस, पेलिकन, पेंटेड स्टॉर्क, बार-हेडेड गीज़ — केवला देवी राष्ट्रीय उद्यान लौटे।
केवला देवी राष्ट्रीय उद्यान के बारे में:
- स्थान: राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित।
- नामकरण: पहले भरतपुर पक्षी अभयारण्य कहलाता था। यहां स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर केवला देव के नाम पर इसे नया नाम दिया गया।
- इतिहास: 19वीं सदी के अंत में भरतपुर के महाराजा सूरज मल द्वारा शिकारगाह के रूप में स्थापित, और 1956 में पक्षी अभयारण्य घोषित।
- राष्ट्रीय उद्यान स्थापना: 1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।
- क्षेत्रफल: लगभग 29 वर्ग किलोमीटर।
- विशिष्टता: यह भारत में एकमात्र ऐसा राष्ट्रीय उद्यान है जो 2 मीटर ऊँची सीमा दीवार से घिरा हुआ है ताकि अतिक्रमण रोका जा सके।
- महत्ता: यह एक रामसर स्थल और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
- वनस्पति: शुष्क पर्णपाती वन, दलदली क्षेत्र और घासभूमि प्रमुख हैं।
- मुख्य वृक्ष: कदम्ब, जामुन, बबूल, कांडी, बेर, कैर और पीलू।
- जीव-जंतु: पाइथन, अन्य सर्प, हिरण, सांभर, ब्लैकबक, सियार, मॉनिटर लिज़र्ड और फिशिंग कैट पाए जाते हैं।
- माइग्रेटरी फ्लाईवे: यह सेंट्रल एशियन फ्लाईवे के मध्य में स्थित होने के कारण प्रवासी पक्षियों का प्रमुख पड़ाव है। यहाँ 360+ प्रजातियाँ मिलती हैं।
- महत्त्वपूर्ण पक्षी: अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, चीन, साइबेरिया से आने वाले- गैडवाल, शवलर, टील, टफ्टेड डक, पिंटेल, व्हाइट स्पूनबिल, ओरिएंटल आइबिस, एशियन ओपन-बिल स्टॉर्क, और दुर्लभ साइबेरियन क्रेन।
स्रोत:
ETV Bharat
श्रेणी: सरकारी योजनाएँ
प्रसंग:
डाक विभाग ने Post Office Act, 2023 में संशोधन का मसौदा जारी किया है, जिसका उद्देश्य इंटरऑपरेबल, मानकीकृत और उपयोगकर्ता-अनुकूल DHRUVA प्रणाली लागू करना है।
ध्रुव प्रणाली के बारे में:
- पूरा नाम: Digital Hub for Reference and Unique Virtual Address
- विकास: डाक विभाग द्वारा विकसित; देशव्यापी डिजिटल एड्रेस DPI की नींव।
- उद्देश्य: एक मानकीकृत, इंटरऑपरेबल, जियोकोडेड डिजिटल ऐड्रेसिंग सिस्टम बनाना, जिसमें सुरक्षित और सहमति-आधारित एड्रेस शेयरिंग हो।
- DIGIPIN पर आधारित: यह Digital Postal Index Number (DIGIPIN) — राष्ट्रीय एड्रेसिंग ग्रिड – पर आधारित है।
- AaaS से संबंधित: Address-as-a-Service (AaaS) – एड्रेस डेटा प्रबंधन सेवाओं का एक ढांचा, जिससे सरकार, निजी क्षेत्र और नागरिकों के बीच सुगम लेन-देन संभव हो।
- महत्त्व: डिजिटल एड्रेस को आधार और UPI जैसी संरचना के समान महत्व देकर ई-गवर्नेंस, ई-कॉमर्स, शहरी नियोजन और आपातकालीन सेवाओं को सरल करेगा।
- उपयोगकर्ता-केंद्रित डिज़ाइन: नागरिकों को यह नियंत्रित करने का अधिकार कि उनका एड्रेस डेटा कैसे उपयोग और साझा किया जाए।
- डेटा नियंत्रण: नागरिक अपने डिजिटल एड्रेस को अपडेट, साझा, और एक्सेस नियंत्रित कर सकेंगे।
- अन्य विशेषताएँ: बहुभाषी इंटरफेस, मोबाइल-फर्स्ट ऐक्सेस, आधार से एकीकरण आदि।
स्रोत:
The Hindu
श्रेणी: अर्थव्यवस्था
प्रसंग:
तरलता की परिस्थितियों को देखते हुए RBI ने ₹1,00,000 करोड़ की सरकारी प्रतिभूतियों की OMO खरीद की घोषणा की।
G-Secs के बारे में:
- स्वरूप: केंद्र या राज्य सरकार द्वारा जारी एक ट्रेडेबल ऋण साधन।
- उद्देश्य: राजकोषीय घाटे को पूरा करने हेतु सरकार जनता से धन उधार लेती है।
अवधि:
- लघु अवधि — ट्रेजरी बिल (91, 182, 364 दिन)
- दीर्घ अवधि — सरकारी बॉन्ड (1 वर्ष से 40 वर्ष तक)
जारीकर्ता:
- केंद्र सरकार — T-bills और Dated Securities
- राज्य सरकार — केवल SDLs (State Development Loans)
महत्त्व:
G-Secs लगभग जोखिम-मुक्त माने जाते हैं — इसलिए gilt-edged instruments कहलाते हैं।
G-Secs के प्रकार:
- ट्रेजरी बिल (T-bills): ज़ीरो-कूपन; ब्याज नहीं देते, डिस्काउंट पर जारी होते हैं और फेस वैल्यू पर रिडीम होते हैं।
- Cash Management Bills (CMBs): 2010 में सरकार व RBI द्वारा शुरू; अल्पकालिक नकदी असंतुलन को संभालने हेतु।
- Dated Securities: निश्चित या परिवर्तनीय ब्याज; अर्धवार्षिक भुगतान; 5–40 वर्ष की अवधि।
- State Development Loans (SDLs): राज्य सरकारों द्वारा जारी दीर्घकालिक प्रतिभूतियाँ।
जारी करने की प्रक्रिया: RBI ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) करता है —
- G-Secs बेचकर बाजार से तरलता निकालता है
- G-Secs खरीदकर तरलता बढ़ाता है
- आवृत्ति: मुद्रास्फीति और बैंकिंग तरलता संतुलित रखने हेतु समय-समय पर।
- जनता से सीधा लेन-देन नहीं: RBI केवल बैंकों के माध्यम से OMO करता है।
स्रोत:
The Hindu
(MAINS Focus)
(जीएस पेपर–II एवं III – सुशासन, श्रम विनियमन, विमानन नीति, संस्थागत चुनौतियाँ, सुरक्षा मानक, परिवहन क्षेत्र में नियामक ढाँचा।)
प्रस्तावना
हाल ही में इंडिगो एयरलाइंस में बड़ी संख्या में फ्लाइट कैंसलेशन और देरी ने भारत के उड्डयन क्षेत्र में Flight Duty Time Limitations (FDTL) से जुड़े गहरे संरचनात्मक मुद्दों को उजागर किया है। यह समस्या केवल इंडिगो तक सीमित नहीं है बल्कि संपूर्ण भारतीय विमानन क्षेत्र के कार्य-संस्कृति, नियामक ढांचे और सुरक्षा मानकों पर प्रश्न उठाती है।
FDTL क्या है?
- FDTL (Flight Duty Time Limitations) वह नियामक ढांचा है जो पायलटों के कार्य-घंटे, विश्राम अवधि और अधिकतम उड़ान संचालन का निर्धारण करता है।
- DGCA इसका क्रियान्वयन करता है ताकि फैटिग/ थकान, मानव-त्रुटि और उड़ान सुरक्षा जोखिम को कम किया जा सके।
वर्तमान संकट की मुख्य वजहें
- सर्वाधिक शिकायत पायलटों द्वारा अत्यधिक कार्यभार और अनुचित शेड्यूलिंग को लेकर की गई।
- क्रू फैटिग/ थकान बढ़ने से सुरक्षा जोखिमों की आशंका।
- एयरलाइंस बढ़ती मांग के अनुरूप पर्याप्त स्टाफिंग नहीं कर पाईं।
- DGCA द्वारा प्रस्तावित FDTL संशोधनों पर एयरलाइंस का विरोध — विशेषकर नाइट ड्यूटी आवर्स को कम करने पर।
- व्यापक प्रशासनिक चुनौतियाँ
- श्रमिक अधिकार व कार्य-जीवन संतुलन: निजी क्षेत्र में पायलटों पर उच्च कार्य दबाव।
- नियामक प्रवर्तन में कमी: DGCA के पास सीमित मानव संसाधन।
- विमानन मांग बनाम स्टाफिंग: तेज़ी से बढ़ते हवाई यातायात के अनुरूप स्टाफ वृद्धि नहीं।
- डेटा आधारित नीति-निर्माण का अभाव: उचित स्टाफ अध्ययन, मनोवैज्ञानिक अध्ययन और जोखिम मूल्यांकन का सीमित उपयोग।
- आगे की राह
- वैज्ञानिक मॉडल अपनाना।
- DGCA को अधिक स्वायत्तता व स्टाफ प्रदान करना।
- एयरलाइंस में रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम (FRMS) अनिवार्य करना।
- पायलटों की शिकायत निवारण प्रणाली को पारदर्शी बनाना।
- प्रस्तावित FDTL में जन-सुरक्षा को प्राथमिकता देना।
निष्कर्ष
इंडिगो संकट भारतीय विमानन नीति के उस वर्ग को उजागर करता है जहाँ आर्थिक दक्षता और सुरक्षा के बीच संतुलन अनिवार्य है। समय रहते FDTL सुधार लागू करना, सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देना और क्रू-वेलबीइंग सुनिश्चित करना भारत के उड्डयन भविष्य को सुरक्षित बनाएगा।
Mains Questions
“भारतीय विमानन क्षेत्र में FDTL सुधारों की आवश्यकता पर प्रकाश डालें। हालिया इंडिगो संकट को उदाहरण सहित समझाएँ।” (250 शब्द)
(जीएस पेपर–II – अंतरराष्ट्रीय संबंध, द्विपक्षीय सहयोग, रणनीतिक साझेदारी, रक्षा सहयोग, भू-राजनीति तथा भारत की विदेश नीति)
प्रस्तावना
भारत और रूस के बीच संबंध स्वतंत्रता-पूर्व दौर से चले आ रहे हैं। हाल के वैश्विक भू-राजनीतिक बदलावों—यूक्रेन युद्ध, अमेरिका-चीन तनाव—ने इस साझेदारी को नए सिरे से प्रासंगिक बना दिया है। दोनों देश वर्तमान में रणनीतिक स्वायत्तता और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को बढ़ावा देने में साथ खड़े हैं।
संबंधों के प्रमुख स्तंभ
- रक्षा सहयोग: 60–70% रक्षा उपकरण रूस-निर्मित। ब्रह्मोस, परमाणु पनडुब्बी, S-400 मिसाइल सिस्टम इसका आधार।
- ऊर्जा क्षेत्र: सखालिन-1, रोसनेफ्ट की भागीदारी, सस्ती रूसी कच्चे तेल की आपूर्ति।
- अंतरिक्ष सहयोग: मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान हेतु तकनीकी सहयोग।
- नये क्षेत्र: फार्मा, साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस।
हालिया प्रगति
- दोनों देशों ने 2030 तक 100 बिलियन डॉलर व्यापार का लक्ष्य तय किया।
- पूर्वी आर्थिक गलियारा व चेन्नई–व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग पर चर्चाएँ।
- यूक्रेन युद्ध के बावजूद भारत ने रणनीतिक संतुलन कायम रखा।
चुनौतीपूर्ण पक्ष
- रूस का चीन की ओर झुकाव।
- भारत–अमेरिका संबंधों के कारण संतुलन की आवश्यकता।
- भुगतान व्यवस्था और लॉजिस्टिक बाधाएँ।
- तकनीकी निर्भरता को कम करने की आवश्यकता।
आगे की राह
- ऊर्जा, आर्कटिक सहयोग एवं रक्षा सह-विकास पर ध्यान।
- व्यापार के लिए रुपया–रूबल तंत्र को मजबूती।
- विज्ञान, शिक्षा और स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में साझेदारी का विस्तार।
निष्कर्ष
भारत-रूस संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। बदलती वैश्विक राजनीति में यह साझेदारी न केवल भारत की सामरिक स्वायत्तता को मजबूत करती है, बल्कि बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को भी गति देती है।
Mains Questions
“बदलते वैश्विक शक्ति-संतुलन के संदर्भ में भारत-रूस संबंधों के महत्व का विश्लेषण करें।” (250 शब्द)
Source: https://epaper.thehindu.com/reader










