IASbaba's Daily Current Affairs Analysis - हिन्दी
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(PRELIMS Focus)
श्रेणी: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
प्रसंग: वैज्ञानिकों ने अब तक देखे गए सबसे बड़े ब्लैक होल विलय से गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाया है।
इन तरंगों की भविष्यवाणी सबसे पहले आइंस्टीन के जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी (1915) द्वारा की गई थी, जिन्हें 2015 में LIGO (लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी) की मदद से सीधे तौर पर देखा गया था।
प्रमुख बिंदु:
- गुरुत्वाकर्षण तरंगें अंतरिक्ष-समय में उत्पन्न होने वाली लहरें हैं जो ब्लैक होल विलय जैसी विशाल ब्रह्मांडीय घटनाओं के कारण उत्पन्न होती हैं।
- इस नई खोजी गई घटना में सूर्य से 100-150 गुना बड़े ब्लैक होल शामिल थे, जो वर्तमान सिद्धांतों को चुनौती देता है, क्योंकि ऐसे आकार के ब्लैक होल के अस्तित्व की उम्मीद नहीं थी।
- इनमें से एक ब्लैक होल अत्यंत तीव्र गति से घूम रहा था, जो सामान्य सापेक्षता सिद्धांत द्वारा निर्धारित सीमा के करीब था।
- इस घटना में सूर्य के द्रव्यमान से 225 गुना बड़ा एक ब्लैक होल सम्मिलित हुआ, जिसने पिछले रिकार्डों को पार कर लिया।
महत्व:
- यह खोज ब्लैक होल निर्माण, तारा विकास और ब्रह्मांड संरचना के बारे में सिद्धांतों को परिष्कृत कर सकती है।
- यह ब्लैक होल निर्माण के कारण तारकीय विकास की वर्तमान समझ में मौजूद अंतराल को उजागर करता है।
LIGO और वैश्विक सहयोग:
- LIGO ने पहली बार 2015 में गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाया था।
- सहयोगियों में अब विर्गो/ Virgo (इटली) और काग्रा/ KAGRA (जापान) शामिल हैं।
- भारत (महाराष्ट्र) में एक नई LIGO वेधशाला की योजना बनाई गई है, जिसके अप्रैल 2030 तक बन जाने की उम्मीद है, जिससे वैश्विक संसूचन क्षमताओं में वृद्धि होगी।
Learning Corner:
ब्लैक होल:
- ब्लैक होल अंतरिक्ष में एक ऐसा क्षेत्र है जहां गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल होता है कि कुछ भी – यहां तक कि प्रकाश भी – उससे बच नहीं सकता।
- इसका निर्माण तब होता है जब विशाल तारे अपने जीवन चक्र के अंत में अपने ही गुरुत्वाकर्षण के कारण ढह जाते हैं।
- घटना क्षितिज (event horizon) वह सीमा है जिसके आगे कुछ भी वापस नहीं आ सकता/ परावर्तित नहीं हो सकता।
- ब्लैक होल विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं: तारकीय द्रव्यमान, मध्यम द्रव्यमान और अतिभारी (आकाशगंगाओं के केन्द्र में पाए जाने वाले)।
- सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार, ब्लैक होल स्पेसटाइम को विकृत कर देते हैं, जिससे निकटवर्ती पदार्थ और प्रकाश प्रभावित होते हैं।
LIGO (लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्ज़र्वेटरी):
- LIGO एक बड़े स्तर का भौतिकी प्रयोग और वेधशाला है जिसे गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है – जो ब्लैक होल या न्यूट्रॉन तारों जैसे बड़े पैमाने पर त्वरित वस्तुओं के कारण स्पेसटाइम में उत्पन्न होने वाली लहरें हैं।
- यह लेजर इंटरफेरोमेट्री का उपयोग करके गुजरती गुरुत्वाकर्षण तरंगों के कारण होने वाली अत्यंत सूक्ष्म विचलनों को मापता है।
- 2015 में, LIGO ने गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पहला प्रत्यक्ष पता लगाया, जिससे आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत की एक प्रमुख भविष्यवाणी की पुष्टि हुई।
- यह संकेत लगभग 1.3 अरब प्रकाश वर्ष दूर स्थित दो ब्लैक होल के विलय से प्राप्त हुआ था।
ब्लैक होल और LIGO के बीच संबंध:
- विलयित ब्लैक होल गुरुत्वाकर्षण तरंगों के सबसे शक्तिशाली स्रोतों में से एक हैं।
- LIGO वैज्ञानिकों को ऐसी ब्रह्मांडीय घटनाओं के दौरान उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाकर अप्रत्यक्ष रूप से ब्लैक होल का निरीक्षण करने की अनुमति देता है।
- इसने ब्रह्मांड में अदृश्य घटनाओं के अध्ययन के लिए एक नई खिड़की खोलकर खगोल भौतिकी में क्रांति ला दी है।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
श्रेणी: अर्थशास्त्र
संदर्भ: विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने 2025 की पहली छमाही के दौरान भारतीय इक्विटी बाजारों से शुद्ध ₹77,901 करोड़ निकाले।
मुख्य तथ्य:
- क्षेत्रवार बहिर्वाह (वर्ष 2025 की पहली छमाही):
- उच्चतम बहिर्वाह:
- सूचना प्रौद्योगिकी: ₹30,600 करोड़
- एफएमसीजी: ₹18,178 करोड़
- विद्युत /बिजली: ₹15,422 करोड़
- शुद्ध अंतर्वाह:
- दूरसंचार: ₹26,685 करोड़
- वित्तीय सेवाएँ: ₹13,717 करोड़
- सेवाएँ: ₹7,294 करोड़
- उच्चतम बहिर्वाह:
- एफपीआई शेयरधारिता:
- 30 जून 2025 तक बाजार पूंजीकरण घटकर 16.09% रह जाएगा, जो दिसंबर 2024 में 16.11% था।
- माहवार इक्विटी बिक्री (Q1 2025):
- जनवरी: ₹35,474 करोड़
- फरवरी: ₹34,574 करोड़
- मार्च: ₹3,973 करोड़
- अप्रैल-जून 2025: एफपीआई शुद्ध खरीदार बने:
- अप्रैल: +₹4,223 करोड़
- मई: +₹19,860 करोड़
- जून: +₹14,590 करोड़
- बेचने का कारण:
- कुछ क्षेत्रों में अधिक मूल्यांकन (Overvaluation), मुनाफावसूली और पुनःआवंटन ने 2025 की शुरुआत में एफपीआई के बाहर निकलने में योगदान दिया।
Learning Corner:
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई):
- परिभाषा: किसी देश की वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे स्टॉक, बांड, म्यूचुअल फंड और अन्य विपणन योग्य प्रतिभूतियों में विदेशी संस्थाओं द्वारा निवेश।
- प्रकृति: अल्पकालिक और अस्थिर; अक्सर “हॉट मनी” कहा जाता है।
- नियंत्रण: निवेशकों को उन कंपनियों के व्यावसायिक संचालन पर सीधा नियंत्रण नहीं मिलता जिनमें वे निवेश करते हैं।
- उदाहरण: स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों के शेयर खरीदना।
- नियामक: सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) द्वारा नियंत्रित।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई):
- परिभाषा: किसी विदेशी संस्था द्वारा किसी अन्य देश में भौतिक परिसंपत्तियों या कंपनी के स्वामित्व में निवेश।
- प्रकृति: दीर्घकालिक एवं स्थिर।
- नियंत्रण: निवेशकों को कंपनी पर नियंत्रण, प्रबंधन अधिकार या महत्वपूर्ण प्रभाव प्राप्त होता है।
- उदाहरण: एक विदेशी ऑटोमोबाइल कंपनी भारत में विनिर्माण संयंत्र स्थापित कर रही है।
- नियामक: डीपीआईआईटी (उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग) और आरबीआई द्वारा विनियमित।
मुख्य अंतर:
विशेषता | प्रत्यक्ष विदेशी निवेश | एफपीआई |
---|---|---|
निवेश का प्रकार | भौतिक/व्यावसायिक परिसंपत्तियों में प्रत्यक्ष | वित्तीय परिसंपत्तियों में पोर्टफोलियो |
अवधि | दीर्घकालिक | लघु अवधि |
कंपनी में नियंत्रण | हाँ | नहीं |
अस्थिरता | कम | उच्च |
नियामक निकाय | डीपीआईआईटी, आरबीआई | सेबी |
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
श्रेणी: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
संदर्भ: भारत ने अपनी प्रतिरोधक क्षमता और परिचालन तत्परता का प्रदर्शन करते हुए कई सामरिक मिसाइलों का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
प्रमुख मिसाइल परीक्षण:
- आकाश प्राइम (Akash Prime)
- परीक्षण स्थान: लद्दाख
- ऊँचाई: 4,500 मीटर से अधिक पर संचालित होता है
- उद्देश्य: उच्च ऊंचाई वाली वायु रक्षा, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास हाल ही में भारत-चीन तनाव के बाद परीक्षण किया गया
- संस्करण: भारतीय सेना के लिए उन्नत आकाश मिसाइल
- भाग: ऑपरेशन सिंदूर
- पृथ्वी-II और अग्नि-I
- परीक्षण स्थान: एकीकृत परीक्षण रेंज, चांदीपुर, ओडिशा
- क्षमताएं:
- पृथ्वी-II: ~350 किमी रेंज, 500 किलोग्राम पेलोड
- अग्नि-I: 700-900 किमी रेंज, 1,000 किलोग्राम पेलोड
- प्रकार: कम दूरी की, परमाणु-सक्षम बैलिस्टिक मिसाइलें
- उपयोग: भारत के सामरिक परमाणु निवारक का हिस्सा
Learning Corner:
आकाश प्राइम (Akash Prime)
आकाश प्राइम, आकाश सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली का स्वदेशी रूप से विकसित उन्नत संस्करण है, जिसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा भारतीय सेना के लिए डिजाइन और निर्मित किया गया है।
प्रमुख विशेषताऐं:
- उद्देश्य: लड़ाकू विमान, ड्रोन और हेलीकॉप्टर जैसे हवाई खतरों के विरुद्ध उच्च ऊंचाई पर हवाई रक्षा।
- रेंज: लघु से मध्यम दूरी (आकाश के समान: ~25-30 किमी)
- ऊंचाई क्षमता: 4,500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर संचालित करने के लिए विशेष रूप से कॉन्फ़िगर किया गया, लद्दाख और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) जैसे क्षेत्रों में तैनाती के लिए आदर्श।
- मार्गदर्शन: मूल आकाश मिसाइल की तुलना में बेहतर सटीकता, विश्वसनीयता और कम तापमान पर संचालन क्षमता से लैस।
- वारहेड: पारंपरिक और परमाणु दोनों प्रकार के वारहेड ले जा सकता है।
- गतिशीलता: मोबाइल प्लेटफॉर्म से लॉन्च किया जा सकता है, जिससे सामरिक लचीलापन बढ़ता है।
- हालिया परीक्षण: ऑपरेशन सिंदूर के तहत जुलाई 2025 में लद्दाख में सफल परीक्षण किया गया।
पृथ्वी-II मिसाइल
- प्रकार: कम दूरी की सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल
- एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (आईजीएमडीपी) के तहत डीआरडीओ द्वारा विकसित
- रेंज: लगभग 350 किमी
- वारहेड क्षमता: 500 किलोग्राम तक, पारंपरिक और परमाणु दोनों प्रकार के वारहेड ले जा सकता है
- मार्गदर्शन प्रणाली: उन्नत जड़त्वीय नेविगेशन प्रणाली (Advanced inertial navigation system)
- प्रक्षेपण प्लेटफ़ॉर्म: मोबाइल/ गतिशील लॉन्चर
- उपयोगकर्ता: भारतीय सेना की सामरिक बल कमान द्वारा संचालित
- उद्देश्य: युद्धक्षेत्र में उपयोग के लिए सामरिक प्रहार मिसाइल
- हालिया परीक्षण: 17 जुलाई 2025 को एकीकृत परीक्षण रेंज, ओडिशा से सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया
अग्नि-1 मिसाइल
- प्रकार: कम दूरी की परमाणु-सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल
- विकसितकर्ता: डीआरडीओ
- रेंज: 700 से 900 किमी
- वारहेड क्षमता: 1,000 किलोग्राम तक, परमाणु पेलोड ले जाने में सक्षम
- मार्गदर्शन प्रणाली: उच्च सटीकता के साथ परिष्कृत नेविगेशन और नियंत्रण प्रणाली
- प्रक्षेपण प्लेटफार्म: सड़क/रेल मोबाइल लांचर
- उपयोगकर्ता: सामरिक बल कमान (Strategic Forces Command)
- भूमिका: भारत की परमाणु निवारण और द्वितीय-आक्रमण क्षमता का हिस्सा
- हालिया परीक्षण: 17 जुलाई 2025 को ओडिशा के चांदीपुर से पृथ्वी-II के साथ इसका भी परीक्षण किया गया।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
श्रेणी: इतिहास
संदर्भ: रज़िया सुल्तान और नूरजहाँ को कक्षा 8 की नई एनसीईआरटी इतिहास की पाठ्यपुस्तक से हटा दिया गया
प्रमुख परिवर्तन:
- रजिया सुल्तान (शासनकाल 1236-1240): पहले उसे अपने भाइयों की तुलना में “अधिक योग्य और सक्षम” बताया गया था; अब उसका उल्लेख नहीं किया गया है।
- नूरजहाँ: पहले उन्हें अपने नाम पर सिक्के चलवाने और मुहरें जारी करवाने का श्रेय दिया जाता था; अब उनका नाम हटा दिया गया है।
- नई पुस्तक में दिल्ली सल्तनत या मुगल काल की किसी भी महिला शासक या रानी का कोई उल्लेख नहीं है।
- टीपू सुल्तान और हैदर अली: इन्हें भी हटा दिया गया है, एनसीईआरटी ने कहा है कि नई पुस्तकें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2023 के अनुरूप हैं, न कि पुरानी विषय-वस्तु संरचनाओं के अनुरूप।
नये शामिल व्यक्तित्व:
- रानी दुर्गावती (गोंड रानी): 1564 में अकबर के अधीन मुगल हमलों का विरोध करने के लिए जानी जाती हैं।
- ताराबाई (मराठा रानी): एक “निडर योद्धा रानी” के रूप में वर्णित, जिन्होंने औरंगजेब का विरोध किया।
Learning Corner:
रज़िया सुल्तान
रजिया सुल्तान (शासनकाल: 1236-1240 ई.) दिल्ली सल्तनत की पहली और एकमात्र महिला शासक थीं और मध्यकालीन इस्लामी इतिहास में स्वतंत्र रूप से शासन करने वाली कुछ महिलाओं में से एक थीं।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- राजवंश: गुलाम राजवंश (मामलुक राजवंश)
- पिता: इल्तुतमिश, जिसने अपने पुत्रों पर उसकी योग्यता के कारण उसे अपना उत्तराधिकारी नामित किया।
- शासनकाल: 1236–1240 ई.
- पुरुष शासकों के साथ समानता स्थापित करने के लिए “सुल्ताना ” की नहीं, बल्कि “सुल्तान” की उपाधि धारण की।
- प्रशासन: कुलीनता की अपेक्षा योग्यता को बढ़ावा देने तथा प्रमुख पदों पर गैर-तुर्कों की नियुक्ति के लिए जाना जाता है, जिससे तुर्की कुलीन वर्ग नाराज हो जाता था (चहलगानी)।
- चुनौतियाँ: महिला होने और रूढ़िवादी मानदंडों को तोड़ने के कारण कुलीन वर्ग के विरोध का सामना करना पड़ा।
- पतन: राजनीतिक अस्थिरता और विद्रोह के बाद पदच्युत कर दिया गया और अंततः मार दिया गया।
नूरजहाँ
नूरजहाँ (1577-1645) मुगल इतिहास की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक थीं, जो अपने पति सम्राट जहाँगीर के शासनकाल के दौरान अपनी राजनीतिक शक्ति, सांस्कृतिक योगदान और प्रशासनिक भूमिका के लिए जानी जाती थीं।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- जन्म का नाम: मेहर-उन-निस्सा
- 1611 ई. में जहांगीर से विवाह के बाद उन्हें “नूरजहाँ” की उपाधि दी गई जिसका अर्थ “संसार का प्रकाश” था।
- राजनीतिक भूमिका:
- जहाँगीर के साथ सक्रिय रूप से सह-शासन किया, विशेषकर जब उसका स्वास्थ्य खराब हो गया।
- शाही फरमान (आदेश) जारी किए गए – जो मुगल साम्राज्ञी के लिए दुर्लभ है।
- उसके नाम के सिक्के ढाले गए – जो उसके अधिकार की असाधारण मान्यता थी।
- प्रशासन:
- न्यायालय की नियुक्तियों और विदेश नीति को प्रभावित किया।
- व्यापार और वास्तुकला को बढ़ावा दिया, तथा विधवाओं और अनाथ लड़कियों की सहायता की।
- पारिवारिक प्रभाव:
- उनके पिता इतिमादुद्दौला और भाई आसफ खान प्रमुख पदों पर थे।
- उन्होंने अपनी भतीजी मुमताज महल का विवाह राजकुमार खुर्रम (बाद में शाहजहाँ) से तय किया।
रानी दुर्गावती
- मध्य भारत (वर्तमान मध्य प्रदेश) में गढ़ा मंडला के गोंड साम्राज्य की एक राजपूत रानी थीं।
- चंदेला राजपूत वंश में जन्मी, उन्होंने गोंड शासक दलपत शाह से विवाह किया और उनकी मृत्यु के बाद प्रशासन संभाला।
- अपने साहस, प्रशासनिक कौशल और सैन्य नेतृत्व के लिए प्रसिद्ध, उन्होंने अपने राज्य को प्रभावी ढंग से संचालित किया और इसकी सुरक्षा को मजबूत किया ।
- 1564 में, उन्होंने सम्राट अकबर के अधीन सेनापति आसफ खान के नेतृत्व वाली मुगल सेना के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी।
- हार का सामना करते हुए, उन्होंने आत्मसमर्पण करने के बजाय अपने ही खंजर से मरना चुना, और भारतीय इतिहास में वीरता और प्रतिरोध का प्रतीक बन गईं।
- उन्हें मुगल साम्राज्यवाद का डटकर विरोध करने वाली सबसे प्रारंभिक महिला योद्धा शासकों में से एक माना जाता है।
ताराबाई
- ताराबाई भोसले (1675-1761) एक प्रमुख मराठा रानी और छत्रपति शिवाजी की पुत्रवधू थीं।
- वह शिवाजी के छोटे पुत्र राजाराम प्रथम की पत्नी थीं और 1700 में उनकी मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य की शासक के रूप में सत्ता संभाली।
- ताराबाई को मराठा इतिहास के एक महत्वपूर्ण चरण के दौरान उनके सैन्य नेतृत्व और प्रशासन के लिए याद किया जाता है, विशेष रूप से मुगल सम्राट औरंगजेब के खिलाफ प्रतिरोध का नेतृत्व करने के लिए।
- उनके नेतृत्व में मराठा सेनाओं ने खोए हुए क्षेत्रों को पुनः प्राप्त किया और गुरिल्ला युद्ध जारी रखा, जिससे दक्कन में मुगलों की प्रगति को सफलतापूर्वक रोका जा सका।
- उन्हें अक्सर एक “निडर योद्धा रानी” के रूप में वर्णित किया जाता है और संकट की अवधि के दौरान मराठा संप्रभुता को संरक्षित करने में वे एक केंद्रीय व्यक्ति थीं।
- बाद में, उन्होंने मराठा दरबार की राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें उत्तराधिकार संघर्ष के दौरान नियंत्रण बनाए रखने के प्रयास भी शामिल थे।
स्रोत : द हिंदू
(MAINS Focus)
परिचय (संदर्भ)
नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर स्विच करने और जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करने की वैश्विक पहल के हिस्से के रूप में, जैव ईंधन उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिसमें बायोएथेनॉल एक आशाजनक विकल्प के रूप में उभरा है।
विश्लेषण किया जा रहा है कि क्या यह जीवाश्म ईंधन का विकल्प बन सकता है।
जैव ईंधन क्या है?
- बायोमास/ जैवभार (पादपों या जीवों से प्राप्त कार्बनिक पदार्थ) से प्राप्त ईंधन है जिसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
- जैव ईंधन के स्रोत :
-
- पहली पीढ़ी: गन्ना, चुकंदर का रस, मक्का, चावल, मक्का, अन्य अनाज।
- दूसरी पीढ़ी: कृषि अपशिष्ट जैसे डंठल, भूसी, लकड़ी, खोई।
- तीसरी पीढ़ी (उभरती हुई): शैवाल आधारित जैव ईंधन।
जैव ईंधन के प्रकार:
- बायोएथेनॉल: मक्का, गन्ना और गेहूँ जैसी फसलों से प्राप्त शर्करा और स्टार्च के किण्वन से प्राप्त एक जैव ईंधन। इसे घास और लकड़ी जैसे सेल्युलोसिक बायोमास से भी बनाया जा सकता है।
- बायोडीजल: वनस्पति तेलों, पशु वसा या पुनर्चक्रित ग्रीस से ट्रांसएस्टरीफिकेशन नामक प्रक्रिया के माध्यम से बनाया गया जैव ईंधन।
- बायोगैस: पशु अपशिष्ट, खाद्य अपशिष्ट और मल जैसे कार्बनिक पदार्थों के अवायवीय पाचन से उत्पन्न एक जैव ईंधन। इसमें मुख्य रूप से मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड होते हैं।
- बायोहाइड्रोजन: गैसीकरण और जलीय चरण सुधार जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से विभिन्न बायोमास स्रोतों से उत्पादित जैव ईंधन।
तरल ईंधन के रूप में इथेनॉल
गुण :
- -114°C से 78°C के बीच तरल अवस्था में रहता है।
- फ़्लैश बिंदु: 9°C (आसान प्रज्वलन)
- ऊर्जा घनत्व पेट्रोल से कम है , लेकिन यह अच्छी तरह जलता है, तथा समान माइलेज देता है।
वाहनों में उपयोग :
- E5 मिश्रण (5% इथेनॉल) इंजन परिवर्तन के बिना काम करता है।
- E10 या E15 को मामूली ट्यूनिंग की आवश्यकता हो सकती है लेकिन कोई बड़ा संशोधन नहीं।
गठन:
- खमीर और ई. कोलाई बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीव शर्करा को इथेनॉल में परिवर्तित करते हैं।
- 10% से अधिक सांद्रता पर इथेनॉल इन जीवों के लिए विषाक्त हो जाता है , इसलिए अतिरिक्त शुद्धिकरण की आवश्यकता होती है।
- सह-किण्वन (कई सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके) उत्पादन में सुधार करने में मदद करता है।
इसलिए, ईंधन-ग्रेड बायोएथेनॉल के उत्पादन में छह प्रमुख चरण शामिल हैं: बायोमास चयन, पूर्व उपचार, सैकरिफिकेशन, किण्वन, आसवन और निर्जलीकरण, और उप-उत्पाद पुनर्प्राप्ति।
चुनौती:
एज़ियोट्रोपिक इथेनॉल (Azeotropic ethanol) में लगभग 4.4 प्रतिशत पानी होता है। चूँकि पानी पेट्रोल के साथ मिश्रणीय नहीं होता और आमतौर पर वाहनों के ईंधन टैंकों की तली में कीचड़ के रूप में जमा हो जाता है। जब उच्च इथेनॉल मिश्रित ईंधन मिलाया जाता है, तो पानी इथेनॉल अंश में घुल जाता है, जिससे ईंधन असंशोधित इंजनों में उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।
बायोमास और कार्बन चक्र में इसकी भूमिका
प्रकृति में बायोमास
- बायोमास पृथ्वी पर मौजूद सभी कार्बनिक पदार्थ (पौधे, पेड़, फसलें, आदि) हैं।
- हर साल लगभग 250 गीगाटन (Gt) शुष्क बायोमास जीवमंडल से होकर गुजरता है।
- इसमें से 100 गीगाटन कार्बन है , जो प्रकाश संश्लेषण, श्वसन, भोजन और अपघटन जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से प्रसारित होता है ।
- प्रकाश संश्लेषण में सौर ऊर्जा की एक बड़ी मात्रा (विश्व स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 2 × 10²¹ जूल) प्राप्त होती है तथा CO₂ को पादप पदार्थ में परिवर्तित किया जाता है।
- मनुष्य कुल बायोमास का केवल 0.5% ही प्रबंधित करता है , मुख्यतः खाद्य फसलों के रूप में।
बायोमास और कार्बन चक्र
- बायोमास कार्बन चक्र में एक “गतिशील स्थिर अवस्था” बनाए रखता है:
- पौधों की वृद्धि के दौरान अवशोषित कार्बन, ईंधन के रूप में उपयोग किए जाने पर उत्सर्जित कार्बन के बराबर होता है। हालाँकि, जीवाश्म ईंधन लाखों वर्षों से भूमिगत रूप से संग्रहीत “प्राचीन कार्बन” को मुक्त करते हैं , जिससे वायुमंडल में अतिरिक्त CO₂ की वृद्धि होती है।
- इथेनॉल जैसे जैव ईंधन पर स्विच करने से प्राकृतिक चक्र में मौजूद कार्बन का उपयोग होता है। इसके विपरीत, जीवाश्म ईंधन के जलने से विकिरण बल बढ़ता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है और जैव विविधता को नुकसान पहुँचता है।
जैव ईंधन का उत्पादन और चुनौतियाँ
- इथेनॉल सूक्ष्मजीवों (जैसे खमीर और बैक्टीरिया) द्वारा थोड़ी अम्लीय परिस्थितियों (पीएच 4-5) में बनाया जाता है। सूक्ष्मजीव मुख्य रूप से दो प्रमुख श्वसन मार्गों के माध्यम से ऊर्जा उत्पन्न करते हैं: वायवीय श्वसन, जिसके लिए आणविक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, और अवायवीय श्वसन, जिसके लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती।
पहली पीढ़ी का जैव ईंधन
- बायोएथेनॉल को गन्ना, चुकंदर के रस, मक्का, चावल या अन्य अनाजों से आसानी से उत्पन्न किया जा सकता है।
- वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों के बीच इस बात पर विवाद जारी है कि इस तरह के विचलन से गरीबी में रहने वाली आबादी, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, के लिए खाद्य आपूर्ति की कमी का खतरा पैदा हो सकता है।
दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन
- दूसरी पीढ़ी की जैव ईंधन परियोजनाओं का उद्देश्य अपशिष्ट बायोमास की बड़ी मात्रा, जैसे डंठल, भूसी, लकड़ी और खोई को किण्वनीय शर्करा के स्रोतों में परिवर्तित करना है।
- हालाँकि, इस दृष्टिकोण की प्रमुख चुनौती इन अत्यधिक जटिल और अत्यंत स्थिर जैव तंतुओं से शर्करा का निष्कर्षण है।
- इसके लिए गैर-नवीकरणीय और पर्यावरण के लिए हानिकारक रसायनों जैसे संक्षारक अम्ल या क्षार का उपयोग करके पूर्व-उपचार की आवश्यकता होती है, जो बहुत महंगा है।
जैव ईंधन का महत्व
- जीवाश्म ईंधन के विपरीत, जैव ईंधन पौधों और शैवाल जैसे नवीकरणीय बायोमास स्रोतों से प्राप्त होते हैं, जो उन्हें एक सतत विकल्प बनाता है।
- जलाए जाने पर जैव ईंधन आमतौर पर जीवाश्म ईंधन की तुलना में कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रयासों में योगदान मिलता है।
- जैव ईंधन आयातित जीवाश्म ईंधन के लिए घरेलू स्तर पर उत्पादित विकल्प प्रदान करते हैं, जिससे देश की ऊर्जा स्वतंत्रता बढ़ती है और वैश्विक तेल बाजार में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलता कम होती है।
- जैव ईंधन उत्पादन से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजित हो सकते हैं, कृषि अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित किया जा सकता है, तथा किसानों को उनकी फसलों के लिए नए बाजार उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
- ग्रीनहाउस गैसों में कमी के अलावा, जैव ईंधन से सल्फर डाइऑक्साइड और वायु विषाक्त पदार्थों जैसे अन्य प्रदूषकों का उत्सर्जन कम हो सकता है, जिससे वायु की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
- जैव ईंधन, विशेष रूप से इथेनॉल और बायोडीजल, मौजूदा वाहनों में उपयोग के लिए उपयुक्त हैं, जिससे वे परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के लिए एक व्यावहारिक विकल्प बन जाते हैं।
- जैव ईंधन का उत्पादन विभिन्न अपशिष्ट और अवशिष्ट पदार्थों से किया जा सकता है, जिससे अपशिष्ट प्रबंधन और संसाधन दक्षता में योगदान मिलता है।
पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताएँ
- भूमि उपयोग में परिवर्तन से वनों की कटाई और जैव विविधता की हानि होती है।
- उर्वरक और सड़ते हुए बायोमास से N₂O और CH₄ उत्सर्जित होते हैं, जो CO₂ से अधिक हानिकारक हैं।
- इससे स्वदेशी लोगों का विस्थापन हो सकता है तथा जलवायु पैटर्न बिगड़ सकता है।
- एकल कृषि से जैव विविधता कम हो जाती है और इसे उलटना कठिन होता है।
- बड़ी मात्रा में मीठे पानी की आवश्यकता होती है, जिससे जल की कमी हो जाती है।
निष्कर्ष
जैव ईंधन एक आशाजनक नवीकरणीय विकल्प प्रदान करते हैं, लेकिन जीवाश्म ईंधनों को पूरी तरह से प्रतिस्थापित करने की उनकी क्षमता तकनीकी, पर्यावरणीय और सामाजिक बाधाओं के कारण सीमित है। जैव ईंधन के सतत विकास के लिए ऊर्जा आवश्यकताओं, खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिक स्वास्थ्य के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन आवश्यक है।
मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
भारत में बायोएथेनॉल उत्पादन की चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा करें। (250 शब्द, 15 अंक)
स्रोत: https://indianexpress.com/article/upsc-current-affairs/upsc-essentials/can-biofuel-really-replace-fossil-fuels-10133043/
परिचय (संदर्भ)
मई 2025 में, ट्रंप प्रशासन ने चीन को ईडीए सॉफ्टवेयर निर्यात पर कड़े नियंत्रण लगाए थे, जिसके तहत कैडेंस, सिनोप्सिस और सीमेंस जैसी कंपनियों से क्रिटिकल चिप डिज़ाइन उपकरणों की बिक्री के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिया गया था। हालाँकि, अब अमेरिकी सरकार ने चीन द्वारा अमेरिका को दुर्लभ मृदा तत्वों के निर्यात को मंज़ूरी देने की प्रतिबद्धता के बदले में अपना रुख बदल दिया है।
यह कदम वैश्विक सेमीकंडक्टर गतिशीलता को नया आकार दे सकता है, जिससे भारत की सेमीकंडक्टर विकास योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं।
सेमीकंडक्टर /अर्धचालक क्या है?
अर्धचालक एक ऐसा पदार्थ है जिसमें विद्युत चालकता एक चालक (जैसे तांबा) और एक कुचालक (जैसे कांच) के बीच होती है।
सबसे अधिक उपयोग किये जाने वाले अर्धचालक पदार्थ सिलिकॉन, जर्मेनियम और गैलियम आर्सेनाइड हैं।
अनुप्रयोग
- माइक्रोप्रोसेसर और कंप्यूटर चिप्
- मेमोरी डिवाइस (RAM, फ़्लैश स्टोरेज)
- सेंसर, डायोड और ट्रांजिस्टर
- स्मार्टफोन, लैपटॉप, ऑटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक मशीनें, सौर सेल
इसका प्रयोग लगभग रोजमर्रा की जिंदगी में किया जाता है।
ईडीए क्या है?
- इलेक्ट्रॉनिक डिजाइन ऑटोमेशन (ईडीए) चिप् और अर्धचालक उपकरणों के डिजाइन के लिए सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और आवश्यक सेवाओं का एक समूह है।
- यह एक आभासी दुनिया है जहां सर्किट और डिजाइनों की कल्पना की जाती है और वास्तविक दुनिया में लाने से पहले उनका विश्लेषण किया जाता है।
- ईडीए उपकरणों के बिना, आधुनिक माइक्रोचिप्स में शामिल अरबों ट्रांजिस्टरों के कारण चिप डिजाइन लगभग असंभव हो जाता है।
प्रतिबंध हटने के बाद भारत के लिए चुनौतियाँ और अवसर
चुनौतियां
- इससे पहले, अमेरिकी सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक डिज़ाइन ऑटोमेशन सॉफ़्टवेयर निर्माताओं, जिनमें कैडेंस, सिनोप्सिस और सीमेंस शामिल हैं, को चीन को अपनी तकनीक की आपूर्ति बंद करने को कहा था, जिससे चीन के सेमीकंडक्टर उद्योग पर असर पड़ा था। अब, प्रतिबंध हटा लिया गया है।
- चीनी कंपनियाँ अब अत्याधुनिक ईडीए उपकरणों तक पूरी पहुँच फिर से हासिल कर सकती हैं, जिससे उनकी चिप डिज़ाइन क्षमताएँ और बाज़ार में प्रतिस्पर्धात्मकता में तेज़ी आ सकती है। इससे वैश्विक सेमीकंडक्टर बाज़ारों में प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, जहाँ भारतीय कंपनियाँ अपनी जगह बनाना चाहती हैं।
अवसर
- हाल ही में अमेरिकी प्रतिबंध से पता चला है कि भारत विदेशी ईडीए सॉफ्टवेयर (चिप डिजाइनिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले) पर बहुत अधिक निर्भर है। इससे यह बात उजागर होती है कि भारत को दीर्घकाल में आत्मनिर्भर बनने के लिए अपने स्वयं के ईडीए उपकरण विकसित करने होंगे।
- अमेरिका-चीन व्यापार में अनिश्चितता के कारण, कंपनियाँ अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को विभिन्न देशों तक फैलाने का प्रयास करेंगी। इससे भारतीय कंपनियों को अधिक व्यापार प्राप्त करने में मदद मिल सकती है।
- बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ चीनी आपूर्तिकर्ताओं पर अपनी निर्भरता कम करना चाहती हैं। इसका मतलब है कि वे भारतीय कंपनियों के साथ काम करने या भारत में निवेश करने में ज़्यादा दिलचस्पी ले सकती हैं।
- जैसे-जैसे कंपनियाँ अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत और सुरक्षित बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, वे विश्वसनीय आपूर्तिकर्ताओं को अधिक भुगतान करने को तैयार हो सकती हैं। इससे सेमीकंडक्टर क्षेत्र की भारतीय कंपनियों का मुनाफ़ा बढ़ सकता है।
भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग की स्थिति
- इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सेमीकंडक्टर एसोसिएशन (आईईएसए) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का सेमीकंडक्टर बाजार 2024 में 4,50,164 करोड़ रुपये (52 बिलियन अमेरिकी डॉलर) से बढ़कर 2030 तक 8,95,134 करोड़ रुपये (103.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तक पहुंचने का अनुमान है।
- इस वृद्धि का श्रेय मोबाइल हैंडसेट, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), दूरसंचार, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोटिव, एयरोस्पेस और रक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों को जाता है। अकेले मोबाइल हैंडसेट, आईटी और औद्योगिक अनुप्रयोग सेमीकंडक्टर उद्योग के राजस्व में लगभग 70% का योगदान करते हैं।
- वैश्विक सेमीकंडक्टर निर्माण में भारत की वर्तमान भूमिका अपेक्षाकृत मामूली मानी जाती है। 2025 तक, वैश्विक वेफर निर्माण क्षमता का केवल 0.1 प्रतिशत ही देश के पास होगा, और सेमीकंडक्टर उपकरणों पर वार्षिक वैश्विक पूंजीगत व्यय का लगभग 1 प्रतिशत भारत द्वारा वहन किया जाएगा।
- देश का सेमीकंडक्टर बाजार, जिसका मूल्य 2023 में 35.18 बिलियन डॉलर था, 2030 तक 27.2 प्रतिशत की उल्लेखनीय सीएजीआर से बढ़ने की उम्मीद है।
- टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स ने उपकरण और सेवाओं के लिए टोक्यो इलेक्ट्रॉन के साथ रणनीतिक साझेदारी पर हस्ताक्षर किए हैं, जो कार्यबल प्रशिक्षण और अनुसंधान एवं विकास संवर्द्धन पर केंद्रित है।
Value addition: सरकारी पहल
- सरकार ने देश में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिए ₹76,000 करोड़ के कुल परिव्यय वाले सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम को मंज़ूरी दे दी है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सेमीकंडक्टर, डिस्प्ले निर्माण और डिज़ाइन पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश करने वाली कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
- इलेक्ट्रॉनिक घटकों और अर्धचालकों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना (एसपीईसीएस) इलेक्ट्रॉनिक घटकों, ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण, यांत्रिकी, सूक्ष्म/नैनो-इलेक्ट्रॉनिक घटकों, सौर फोटोवोल्टिक (एसपीवी) पॉलीसिलिकॉन, एसपीवी वेफर्स और सौर कोशिकाओं, विशेष उप-संयोजनों और उपरोक्त वस्तुओं के विनिर्माण के लिए पूंजीगत वस्तुओं के लिए पूंजीगत व्यय पर 25% का वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं सेमीकंडक्टर पैकेजिंग सहित मोबाइल फोन मूल्य श्रृंखला में निवेश आकर्षित करने के लिए, बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिए उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) अधिसूचित की गई है। यह योजना भारत में निर्मित और लक्षित खंडों, जैसे मोबाइल फोन और निर्दिष्ट इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, के अंतर्गत आने वाली वस्तुओं की वृद्धिशील बिक्री (आधार वर्ष की तुलना में) पर पात्र कंपनियों को 5 वर्षों की अवधि के लिए 3% से 6% तक का प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निधि (ईडीएफ) ईएसडीएम क्षेत्र के भीतर महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के घटकों के विकास को सुनिश्चित करता है।
भारत के लिए आगे की राह
- उद्योग-अकादमिक सहयोग से अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करना ।
- स्वदेशी अर्धचालक डिजाइन और निर्माण क्षमताओं का विकास करना ।
- व्यापार करने में आसानी और उच्च तकनीक विनिर्माण के लिए बुनियादी ढांचे को बढ़ाना ।
- प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और बाजार पहुंच के लिए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियां बनाना ।
- विशेष अर्धचालक इंजीनियरिंग कार्यक्रमों के माध्यम से कुशल कार्यबल पाइपलाइन का निर्माण करना ।
निष्कर्ष
भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग में कुशल कार्यबल के साथ-साथ निर्माण संबंधी बुनियादी ढाँचे का भी अभाव है। निरंतर सरकारी सहयोग, रणनीतिक वैश्विक साझेदारियों और त्वरित घरेलू क्षमता निर्माण के साथ, भारत बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक सेमीकंडक्टर आयातक से एक विश्वसनीय वैश्विक सेमीकंडक्टर भागीदार के रूप में उभर सकता है।
मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
हाल ही में अमेरिकी निर्यात नीति में बदलाव के भारत की सेमीकंडक्टर महत्वाकांक्षाओं पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिए। वैश्विक नीतिगत अस्थिरता के बीच भारत अपने सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे मज़बूत कर सकता है? (250 शब्द, 15 अंक)