श्रेणी: पर्यावरण और पारिस्थितिकी
प्रसंग:
- भारत की एक और आर्द्रभूमि, बिहार के कटिहार जिले में स्थित गोगाबील झील को रामसर स्थल के रूप में अंतर्राष्ट्रीय महत्व का दर्जा मिला है, जिससे देश में ऐसे संरक्षित स्थलों की कुल संख्या 94 हो गई है।

गोगाबील झील के बारे में :
- प्रकृति: गोगाबील अब बिहार का छठा रामसर स्थल है, जो गोकुल जलाशय और उदयपुर झील जैसे अन्य स्थलों में शामिल हो गया है ।
- स्थान: यह बिहार के कटिहार जिले में गंगा और महानंदा नदियों के बीच स्थित एक गोखुर झील है।
- विशिष्टता: यह बिहार का पहला सामुदायिक रिजर्व है और बाढ़ क्षेत्र के रूप में कार्य करता है, जो मानसून के दौरान दोनों नदियों से प्राकृतिक रूप से जुड़ जाता है।
- संबंधित त्यौहार: इस आर्द्रभूमि में सिरवा, अद्रा, छठ जैसे स्थानीय सांस्कृतिक पारंपरिक त्यौहार मनाए जाते हैं।
- वनस्पति: इन प्राकृतिक परिदृश्यों में ज्यादातर उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन शामिल हैं।
- जीव-जंतु: यह स्मूथ कोटेड ओटर (लुट्रोगेल पर्सिपिसी लता) और हेलीकॉप्टर कैटफ़िश (वा लागो अट्टू) का निवास स्थल है। यह संकटग्रस्त मछली प्रजाति वालागो अट्टू के लिए प्रजनन स्थल के रूप में कार्य करता है।
- महत्व: यह प्रवासी पक्षियों के लिए एक प्रमुख आवास और जलीय प्रजातियों के प्रजनन स्थल के रूप में कार्य करता है। यह जलीय वनस्पतियों, मछलियों और आर्द्रभूमि पर निर्भर प्रजातियों सहित समृद्ध जैव विविधता का पोषण करता है। यह गंगा के मैदानों में बाढ़ नियंत्रण, भूजल पुनर्भरण और जलवायु नियंत्रण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
स्रोत:
(MAINS Focus)
संयुक्त प्रभाव: दक्षिण-पूर्व एशियाई स्कैम ठिकानों को समन्वित प्रतिक्रिया की आवश्यकता
(जीएस पेपर 3: साइबर सुरक्षा, मनी लॉन्ड्रिंग और संगठित अपराध)
संदर्भ (परिचय)
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल घोटालों की व्यापक जांच के आह्वान ने दक्षिण-पूर्व एशिया में औद्योगिक स्तर पर फैले धोखाधड़ी नेटवर्क को उजागर कर दिया है, जहां आधुनिक स्कैम /घोटाले ठिकानों में भारतीय नागरिक पीड़ित और अपराधी दोनों हैं।
मुख्य तर्क
- औद्योगिक साइबर अपराध नेटवर्क: डिजिटल घोटाले व्यक्तिगत साइबर धोखाधड़ी से संगठित, सीमा पार "घोटाला परिसरों" में विकसित हो गए हैं, विशेष रूप से म्यांमार, कंबोडिया और लाओस में, जो शासन की मिलीभगत से संचालित सिंडिकेट द्वारा संचालित होते हैं।
- मानव तस्करी और जबरन श्रम: हजारों भारतीयों और अन्य नागरिकों को धोखाधड़ी वाली नौकरी की पेशकश और वीजा-मुक्त मार्गों के माध्यम से इन परिसरों में तस्करी कर लाया जाता है, जहां उन्हें हिंसा, यौन दुर्व्यवहार और जबरन डिजिटल श्रम का सामना करना पड़ता है।
- संघर्ष-प्रेरित अपराध अर्थव्यवस्थाएं: म्यांमार में तख्तापलट के बाद की अस्थिरता और कमजोर शासन ने मिलिशिया और सीमा सुरक्षा बलों को घोटाले केंद्र कराधान के माध्यम से स्वयं को वित्तपोषित करने में सक्षम बनाया है, तथा आपराधिक उद्यम को उग्रवादियों के वित्तपोषण के साथ मिला दिया है।
- क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से वित्तीय शोधन: "पिग बुच्रिंग (pig butchering)" (रोमांस-सह-क्रिप्टो घोटाले) से प्राप्त धन को पारंपरिक नियामक निरीक्षण से बचते हुए, मनी म्यूल, संदिग्ध डिजिटल वॉलेट (जैसे, ह्यूओन पे) और क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से शोधित किया जाता है।
- भारत की दोहरी भेद्यता: भारत को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है - नागरिकों को साइबर गुलामी में विदेश ले जाया जा रहा है और घरेलू स्तर पर लाखों लोगों को इन्हीं घोटालों के कारण ठगा जा रहा है, जिससे साइबर जागरूकता, कानून प्रवर्तन और वित्तीय ट्रैकिंग में अंतराल उजागर हो रहा है।
आलोचनाएँ / कमियाँ
- कमजोर अंतर्राष्ट्रीय तंत्र: वर्तमान द्विपक्षीय ढांचे राजनीतिक रूप से अस्थिर या मिलीभगत वाले राज्यों में संचालित शिथिल नेटवर्क वाले सिंडिकेटों के खिलाफ अपर्याप्त हैं।
- सीमित घरेलू तैयारी: भारत की साइबर अपराध जांच क्षमताएं और अंतर-एजेंसी समन्वय अभी भी अविकसित हैं, तथा परिष्कृत डिजिटल धोखाधड़ी के बारे में सार्वजनिक साक्षरता भी कम है।
- कूटनीतिक बाधाएं: म्यांमार की सैन्य सरकार और कंबोडिया के सत्तावादी शासन के साथ भारत की सीमित स्थिति, प्रत्यक्ष हस्तक्षेप या बचाव कार्यों में बाधा डालती है।
- विनियामक विलंब: क्रिप्टोकरेंसी और फिनटेक विनियम प्रतिक्रियात्मक बने हुए हैं, जिससे वित्तीय गुमनामी को बढ़ावा मिलता है।
- खंडित वैश्विक कार्रवाई: डिजिटल जबरन श्रम को आधुनिक गुलामी मानने वाले एकीकृत वैश्विक कानूनी ढांचे का अभाव जवाबदेही को कमजोर करता है।
सुधार और नीतिगत उपाय
- जन जागरूकता और डिजिटल साक्षरता: आरबीआई, CERT-In और राज्य पुलिस को धोखाधड़ी वाली नौकरी की पेशकश और "डिजिटल गिरफ्तारी" घोटालों के खिलाफ चेतावनी देते हुए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाना चाहिए।
- साइबर अपराध अवसंरचना को सुदृढ़ बनाना: गृह मंत्रालय और राज्य साइबर इकाइयों के अंतर्गत विशेष साइबर अपराध कार्यबल और फोरेंसिक क्षमताएं स्थापित करना।
- क्षेत्रीय सहयोग ढांचा: भारत को खुफिया जानकारी साझा करने, प्रत्यर्पण तंत्र और संयुक्त कार्रवाई के लिए आसियान सदस्यों, चीन और इंटरपोल के साथ समन्वय करना चाहिए।
- राजनयिक और मानवीय चैनल: यूएनओडीसी, आईओएम और यूएनएचआरसी के माध्यम से घोटाले वाले परिसरों को जबरन श्रम और मानव तस्करी के स्थलों के रूप में वर्गीकृत करना ।
- क्रिप्टो-लेनदेन निगरानी: सीमा पार वित्तीय प्रवाह का पता लगाने के लिए एक्सचेंजों पर एफएटीएफ के यात्रा नियम और सख्त केवाईसी/एएमएल मानदंडों जैसे वैश्विक मानकों को लागू करना।
निष्कर्ष:
दक्षिण-पूर्व एशियाई घोटालेबाज़ों का प्रसार एक संकर खतरे का प्रतिनिधित्व करता है—जिसमें साइबर अपराध, मानव तस्करी और भू-राजनीतिक अस्थिरता का मिश्रण है। भारत को एक समग्र सरकारी और क्षेत्रीय कूटनीतिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए जो इन नेटवर्कों को न केवल डिजिटल अपराध बल्कि मानवता के विरुद्ध अपराध के रूप में देखे, और साइबर-मानवाधिकार ढाँचे के तहत वैश्विक सहयोग की गारंटी दे।
मुख्य परीक्षा प्रश्न:
प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल घोटालों का उदय साइबर अपराध और मानव तस्करी के नए आयामों को उजागर करता है। भारत की कमजोरियों और समन्वित क्षेत्रीय प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)
स्रोत: द हिंदू